मेवाड़ महाराणा राजसिंह (भाग – 25)

देसूरी की लड़ाई :- औरंगज़ेब का बेटा शहज़ादा अकबर, जो की इस समय अपने सैन्य सहित मारवाड़ के सोजत में था। 27 सितम्बर, 1680 ई. को औरंगज़ेब ने उसको आदेश दिया कि पाली से होते हुए कुम्भलगढ़ पर हमला करो।

शहज़ादे अकबर ने अपने सेनापति तहव्वर खां को खत लिखकर नाडौल पहुंचने का हुक्म दिया। तहव्वर खां को अपनी पिछली पराजय याद थी, इसलिए वो दोबारा मेवाड़ नहीं आना चाहता था।

तहव्वर खां खरवे में पहुँचकर रुक गया और अपनी फौज को धीरे-धीरे चलने का हुक्म दिया, जिससे 1 माह बाद वह नाडौल पहुंचा, जहां उसने आगे जाने से इनकार कर दिया। शहज़ादे अकबर द्वारा दबाव बनाने के बाद तहव्वर खां हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ा और देसूरी की नाल तक पहुंचा।

महाराणा राजसिंह के पुत्र कुंवर भीमसिंह ने देसूरी की नाल पर तैनात तहव्वर खां पर आक्रमण कर मुगलों को भारी नुकसान पहुंचाया। इस लड़ाई के बाद तहव्वर खां ने वहीं डेरा डाल दिया और उससे आगे नहीं बढ़ा।

महाराणा राजसिंह

महाराणा राजसिंह ने अपने पुत्र कुँवर गजसिंह को बेगूं भेजा, जहां कुँवर ने बेगूं की मुगल चौकियों को तहस-नहस कर दिया। महाराणा राजसिंह ने कुछ कूटनीतिक प्रयास भी किए। वे औरंगज़ेब के बेटे को उसके खिलाफ़ करना चाहते थे। महाराणा राजसिंह और वीर दुर्गादास राठौड़ ने मिलकर एक योजना बनाई।

महाराणा ने शहज़ादे मुअज्ज़म को बादशाह बनने का प्रलोभन दिया और उसको कई ख़त लिखकर अपनी तरफ़ मिलाने की कोशिशें की, पर शहज़ादे की माँ नवाब बाई के प्रभाव के कारण महाराणा की योजना असफल हुई। नवाब बाई ने अपने सिपहसालारों से यहां तक कह दिया था कि राणा राजसिंह का कोई भी खत शहज़ादे तक नहीं पहुंचना चाहिए।

जब महाराणा राजसिंह मुअज्ज़म को औरंगज़ेब के खिलाफ़ करने में असफल रहे, तब उन्होंने शहज़ादे अकबर को प्रलोभन दिए। अकबर को पहले भी कुछ बार औरंगज़ेब की तरफ से खरीखोटी सुनने को मिली थी, इसलिए अकबर औरंगज़ेब से खफा तो था ही। वह महाराणा राजसिंह की बातों में आ गया, लेकिन इस कूटनीतिक प्रयास को मूर्त रूप देने से पहले ही महाराणा राजसिंह का स्वर्गवास हो गया।

स्वाभिमानी महाराणा राजसिंह जी का विश्वासघात की भेंट चढ़ना :- रोज़-रोज़ के छुटपुट हमलों को फिज़ूल समझते हुए महाराणा राजसिंह ने शहज़ादे आज़म को एक पत्र लिखा। पत्र में महाराणा ने लिखा कि “अपनी तमाम फौजी ताकत के साथ कोठारिया से पहले वाले चौगान में पहुँचकर जितनी बहादुरी दिखा सको दिखलाओ”

समय ने ठीक वैसा ही रुख किया जो महाराणा सांगा का अंतिम समय था। जिस प्रकार महाराणा सांगा द्वारा दोबारा मुगलों से आमने-सामने लड़ने की बात कुछ गद्दारों को सहन न हुई, ठीक वैसे ही महाराणा राजसिंह की ये बात भी कुछ गद्दारों को रास नहीं आई और उन्होंने महाराणा को ख़त्म करने का इरादा किया।

महाराणा राजसिंह कुम्भलगढ़ के लिए निकले। मार्ग में परगने नला के गाँव ओडा में पड़ाव डाला। यहां महाराणा राजसिंह दधिवाड़िया चारण खेमराज के पुत्र आसकरण के साथ भोजन करने बैठे। खिचड़ी में विष मिला हुआ था, जिसके चलते दोनों का देहान्त हुआ।

इस तरह महाराणा राजसिंह का 51 वर्ष की आयु में देहान्त हुआ। प्राण त्यागते समय महाराणा ने कहा कि मुसलमानों को मैं बुलवा चुका हूं, उनके सामने अब मैं झूठा पड़ जाऊंगा, ऐसे में कोठारिया रावत रुक्मांगद ने महाराणा से कहा कि मैं उनसे लड़ने जाऊंगा और आपका मान रखुंगा।

उधर बादशाही फौज रुक्मगढ़ तक आ पहुंची। कोठारिया रावत रुक्मांगद उनसे लड़ने पहुंचे, जहां मुगल विजयी रहे व रावत रुक्मांगद ज़ख़्मी हालत में लौट आए।

जब महाराणा राजसिंह ने सोए हुए मेवाड़ में फिर से स्वाभिमान की आग जलाई, मुगलों से संघर्ष जब चरम सीमा पर पहुंच चुका था, मुगल मेवाड़ में जहां-तहां पराजित होते जा रहे थे, मेवाड़-मारवाड़ एक हो चुका था, ऐसे समय में विश्वासघात की मात्र एक चिंगारी ने मेवाड़ के विजय अभियान को रोककर सब कुछ स्वाहा कर दिया।

3 नवम्बर, 1680 ई. को महाराणा राजसिंह का देहांत हुआ था। ओडा गांव में उनका देहांत होने के कारण वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया। इसी स्थान पर महाराणा राजसिंह की याद में 4 खम्भों की एक छतरी बनवाई गई।

महाराणा राजसिंह की छतरी

महाराणा राजसिंह की 18 रानियों का विवरण :- 1) महारानी हाड़ी कुंवराबाई (बूंदी के शत्रुशाल हाड़ा की पुत्री) 2) रानी भटियाणी कृष्णकंवर (राव मनोहरदास की पुत्री) 3) रानी राठौड़ आनंद कंवर (राव कल्याणदास की पुत्री) 4) रानी झाली केसर कंवर (झाला विजयराज की पुत्री)

5) रानी पंवार सदा कंवर (बिजोलिया के राव इंद्रभाण की पुत्री) 6) रानी झाली रूप कंवर (झाला विजयराज की पुत्री) 7) रानी वीरपुरी दुर्गावती (जसवंत सिंह की पुत्री) 8) रानी चौहान जगीस कंवर (बेदला के राव रामचंद्र की पुत्री) 9) रानी पंवार बदन कंवर (जुझार सिंह की पुत्री)

10) रानी चौहान रतन कंवर (राव पृथ्वीराज की पुत्री) 11) रानी झाली पैप कंवर (कर्णसिंह झाला की पुत्री) 12) रानी झाली रतन कंवर (सादड़ी के झाला रायसिंह की पुत्री) 13) रानी पंवार आस कंवर (पंवार दयालदास की पुत्री) 14) रानी खीचण सूरज कंवर (राव मानसिंह की पुत्री)

15) रानी राठौड़ हर कंवर (राठौड़ जोधसिंह की पुत्री) 16) रानी राठौड़ चारूमति बाई (कृष्णगढ़ के राजा रूपसिंह की पुत्री) 17) रानी पंवार रामरसदे कंवर (जुझार सिंह की पुत्री) 18) रानी भटियाणी चंद्रमति बाई (जैसलमेर के महारावल सबलसिंह भाटी की पुत्री)

महाराणा राजसिंह के 9 पुत्रों का विवरण :- 1) महाराणा जयसिंह, जो कि रानी पंवार सदा कंवर के पुत्र थे। 2) कुँवर भीमसिंह, जो कि रानी चौहान जगीस कंवर के पुत्र थे। कुँवर भीमसिंह को बनेड़ा की जागीर मिली। 3) कुँवर इंद्रसिंह, जो कि निस्संतान रहे।

4) कुँवर गजसिंह, जिनका कोई पुत्र नहीं हुआ। 5) सगस जी बावजी कुँवर सुल्तानसिंह, जो कि अपने पिता महाराणा राजसिंह के हाथों मारे गए। ये लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। 6) सगस जी बावजी कुँवर सरदार सिंह, जिन्होंने बचपन में आत्महत्या कर ली। ये भी लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं।

महाराणा राजसिंह

7) कुँवर बहादुरसिंह, जिनके वंशजों का ठिकाना भूंणास है। 8) कुँवर सूरतसिंह, जो कि निस्संतान रहे। 9) कुँवर तख्तसिंह, जो कि बचपन में ही गुजर गए। महाराणा राजसिंह व रानी भटियाणी चंद्रमति बाई की पुत्री अजब कंवर बाई का विवाह बांधवगढ़ (रीवां) के बाघेला राजा अनूपसिंह के पुत्र कुँवर भावसिंह के साथ हुआ।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

2 Comments

  1. जामा कोलर
    September 3, 2021 / 5:04 am

    कहाँ दम था मुगलों मे महाराणा जी को झुकाने का
    😥😥🙏दुखद अपने ही घर जला दिया अपना महाराणा जी को विष दे कर
    जय एकलींग जी

  2. Hazari prasad singh
    September 27, 2021 / 5:47 am

    Treachery is weakness of Indian history.

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