शाहजहां द्वारा चित्तौड़गढ़ की दीवारें गिराने के समय महाराणा राजसिंह को माधवसिंह सिसोदिया के नेतृत्व में एक हज़ार सैनिकों को दक्षिण में भेजना पड़ा था। ये सेना दक्षिण अभियानों में तैनात औरंगज़ेब की मदद ख़ातिर भेजी गई थी। महाराणा राजसिंह ने यहां एक कूटनीतिक चाल चली।
महाराणा राजसिंह ने माधवसिंह सिसोदिया के फौजी दस्ते के साथ-साथ उदयकर्ण चौहान और शंकर भट्ट को औरंगज़ेब के पास गुप्त वार्ता के लिए भेजा। महाराणा ने औरंगज़ेब को यह विश्वास दिलवा दिया कि जब भी उत्तराधिकार संघर्ष होगा, मेवाड़ तुम्हारा साथ देगा।
औरंगज़ेब के लिए तो ये बड़ी खुशी की बात थी। उसने उदयकर्ण चौहान और शंकर भट्ट को उपहार आदि देकर विदा किया। फिर औरंगज़ेब ने अपने विश्वासपात्र इंद्र भट्ट को एक हीरे की अंगूठी और खिलअत देकर महाराणा राजसिंह के पास भेजा। फिर औरंगज़ेब ने फिदवी ख़्वाजा को मेवाड़ भेजकर महाराणा को एक हाथी भेंट किया।
जब शाहजहां के चारों पुत्रों दाराशिकोह, औरंगज़ेब, मुराद और शुजा में उत्तराधिकार संघर्ष शुरू हुआ, उस दौरान औरंगज़ेब ने भी महाराणा राजसिंह से फौजी मदद पाने के लिए बराबर उनसे पत्र व्यवहार जारी रखा।
औरंगज़ेब द्वारा महाराणा राजसिंह को लिखा गया पहला पत्र यहां हूबहू पोस्ट किया जा रहा है :- “उम्दा सरदार राणा राजसिंह की अर्ज़ कुबूल करके उदयकर्ण और शंकर भट्ट को उनके आदमियों समेत रुख़सत दे दी गई है और माधवसिंह सिसोदिया फ़ौज समेत फतहमंद लश्कर में शामिल हो चुका है।
इन्द्रभट्ट, जो हमारी नामदार सरकार का पुराना नौकर है, उसको भी हमराह भेज दिया गया है कि उस खैरख्वाह (महाराणा राजसिंह) को खास इनायत और मिहरबानियों से, जो ज़बानी कह दी गई हैं, खबरदार करे।
इस वक्त उम्दा खिलअत और जड़ाऊ उर्वसी उस (महाराणा राजसिंह) के वास्ते इनायत फर्माई गई। बादशाही मिहरबानी और बख्शीशों को अपनी बाबत रोज़-ब-रोज़ ज्यादा समझे और खैरख्वाही और साफ़ दिली का तरीका हाथ से न देकर पुराने दस्तूर बर्ताव पर कायम रहे।”
औरंगज़ेब द्वारा महाराणा राजसिंह को भेजा गया दूसरा पत्र यहां हूबहू पोस्ट किया जा रहा है :- “उम्दा सरदार, बराबरी वालों से बेहतर, वफ़ादार खैरख्वाहों का बुज़ुर्ग, बलन्द इरादा बहादुरों का पेशवा राणा राजसिंह, बेहद मिहरबानी और खास तवज्जु से खुश होकर जाने कि क़दीमी मुहब्बत पर नज़र रखकर इन्द्रभट्ट को, जो एतिबार के लायक है, हमने उस बुज़ुर्ग सरदार (महाराणा राजसिंह) के पास भेजा है कि जो बातें उस (इन्द्रभट्ट) से कही गई हैं, ज़ाहिर करे और जवाब जल्दी लावे।
यकीन है कि बिहतरी की उम्मीद और बेफिक्री के साथ साफ और दुरुस्त जवाब ज़ाहिर करके अपने इकरारों के मुवाफिक बर्ताव रखे और इसे (इन्द्रभट्ट को) तीन दिन से ज्यादा न ठहरावे, हुज़ूर में रुख़सत करे (अर्थात इन्द्रभट्ट से खास बातचीत करके उसको 3 दिन के भीतर लौटने की आज्ञा दे दी जावे)। एक खासा खिलअत और एक हीरे की अंगूठी उसके हाथ भेजी है व खासा हाथी सामान समेत फिदयी ख़्वाजा मंज़ूर के हवाले करके भिजवाया है।”
औरंगज़ेब द्वारा महाराणा राजसिंह को भेजा गया तीसरा पत्र यहां हूबहू पोस्ट किया जा रहा है, जिसमें औरंगज़ेब ने उत्तराधिकार संघर्ष के दौरान महाराणा राजसिंह से फ़ौजी मदद मांगी थी। इस पत्र में लिखा है कि औरंगज़ेब ने महाराणा राजसिंह को वे परगने पुनः लौटा दिए, जो शाहजहां ने मेवाड़ से छीने थे।
ये पत्र कुछ इस तरह है :- “उम्दा वफ़ादार, बुज़ुर्ग सरदार, बराबरी वालों से बेहतर, खैरख्वाहों का पेशवा, बहुत मिहरबानियों के लायक, साफ़दिल दोस्त, नेकनियत खैरख्वाह, बड़े राजाओं का बुज़ुर्ग राणा राजसिंह शाही मिहरबानियों से खुशखबरी हासिल करके जाने की उस नेक आदत वफ़ादार (महाराणा राजसिंह) ने परगने मांडल वग़ैरह चार जागीरों की बाबत, जिनकी तनख्वाह एक करोड़ तीस लाख दाम होती है, अर्ज़ किया।
ये जागीरें परगने ईडर समेत उन इकरारों के पूरा होने के बाद, जो आपस में करार पाए हैं, बख्शे जाने के लिए मंज़ूर की गई। (अर्थात जब महाराणा राजसिंह औरंगज़ेब तक फौजी मदद भिजवा देंगे, उसके बाद उनको उनके परगने मिल जाएंगे)।
मुनासिब है कि हर तरह से ख़ातिर जमा और मिहरबानियों का उम्मीदवार होकर उस बड़े काम के लिए, जिसका हमने इरादा कर लिया है, कमर बांधे और एक उम्दा फ़ौज किसी नज़दीकी रिश्तेदार के साथ रवाना कर दे कि बुध के रोज इस महीने की तीसवीं तारीख तक हमारे लश्कर के अफ़सर के पास आकर शामिल हो जावे।
बुज़ुर्ग खुदा की मिहरबानी से यकीन है कि बहुत जल्द हम कोशिश का दरिया तैरकर मुराद के किनारे पर पहुंचेंगे। हमने एक खास तलवार और खिलअत उस नेक इरादा खैरख्वाह (महाराणा राजसिंह) के लिए इनायत फरमाई है।
जैसा कि हमने उस (महाराणा राजसिंह) को दूसरी दुनिया का सफ़र करने वाले राणा (महाराणा जगतसिंह) की जगह समझा है, बदले में वह भी हमको इज़्ज़तदार बादशाह और मुल्क का मालिक जानकर रियासत और राणाई की तलवार अपनी कमर पर बांधे। खास खुराक के खरबूजे, जो हमने भिजवाए हैं, उसको नेक शकुन ख्याल करें।
रघुनाथ को फ़ौज के साथ रुख़सत करें। इस कद्र वक़्त नहीं रहा कि आज कल में काम टाले जावें, देरी का हरगिज़ मौका नहीं है। सुस्ती में हर तरह के नुक़सान होना मशहूर बात है। हम शौक़ के साथ ऐसे इंतज़ार में हैं कि अगर फौज जल्द आवे तो भी देरी समझी जावे।”
इस प्रकार महाराणा राजसिंह एक तरफ तो टीका दौड़ की रस्म शुरू करके बादशाही मुल्क लूट रहे थे और दूसरी तरफ शहज़ादे औरंगज़ेब से पत्र व्यवहार करके और फौजी मदद देने का वादा करके उसकी तरफदारी हासिल कर रहे थे। हालांकि महाराणा राजसिंह ने औरंगज़ेब का तीसरा ख़त पाने के बाद भी फौजी मदद नहीं भेजी।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
जय मेवाड़, जय एकलिंग जी,