सम्राट पृथ्वीराज चौहान (भाग – 7)

राजा जयचंद गहड़वाल पर गद्दारी का झूठा आरोप :- कहा जाता है कि राजा जयचंद ने शहाबुद्दीन गौरी को सम्राट पर हमला करने के लिए आमंत्रित किया। इस कारण आज राजा जयचंद गद्दारी का पर्याय बन चुके हैं। वास्तव में राजपूतों के इतिहास पर कुछ दाग तो जान बूझकर लगाए गए हैं। इसी तरह बाद में राणा सांगा द्वारा बाबर को भारत में आमंत्रित करने का झूठ भी बहुत फैलाया गया।

पृथ्वीराज विजय, हमीर महाकाव्य, रंभा मंजरी, प्रबंध कोश जैसे प्राचीन व समकालीन ग्रंथों में तथा फ़ारसी तवारीखों में कहीं भी ये उल्लेख नहीं है कि राजा जयचंद ने गौरी को आमंत्रित किया। राजा जयचंद तो स्वयं 1194 ई. में चन्दावर की लड़ाई में गौरी से लड़े और वीरगति पाई।

तिलोत्तमा (संयोगिता) हरण :- पृथ्वीराज विजय में तिलोत्तमा, रासो में संयोगिता व सुरजन चरित में कान्तिमयी नाम दिया गया है, जो कि राजा जयचंद की पुत्री बताई जाती है। ये ग्रंथ बताते हैं कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने कन्नौज की राजकुमारी तिलोत्तमा पर मुग्ध होकर उनका स्वयंवर से ही अपहरण कर लिया और फिर अजमेर आकर विवाह किया।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान व संयोगिता

इस घटना के पक्ष में तर्क :- सबसे बड़ा तर्क पक्ष में ये है कि जयानक ने इस घटना का वर्णन किया है, जो कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबारी थे। इसके अलावा भी यह घटना कई ग्रंथों में लिखित है। फ़ारसी तवारीख अकबरनामा में भी संयोगिता का वर्णन है।

प्रसिद्ध इतिहासकार सी वी वैद्य, दशरथ शर्मा, गोपीनाथ शर्मा आदि ने संयोगिता हरण की घटना को सत्य माना है।इसके अलावा एक तथ्य ये भी है कि संयोगिता हरण वाली लड़ाई में कनकराय बड़गूजर का सम्राट की तरफ से लड़ते हुए वीरगति पाना बताया जाता है।

विपक्ष में तर्क :- कई विद्वान इतिहासकारों ने इस घटना को पूर्णतः काल्पनिक सिद्ध किया है। उनका मानना है कि कई बार राजा-महाराजाओं के सान्निध्य में लिखने वाले लेखकों ने अपने राजा की अत्यधिक वीरता दिखाने के लिए कई मनगढ़ंत किस्से-कहानियां लिखे हैं, जो पक्षपात भरी होती हैं।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान

इस घटना के विपक्ष में सर्वाधिक प्रबल तर्क ये है कि यह घटना तराइन की पहली लड़ाई के बाद की बताई जाती है, जबकि तराइन के बाद सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने सरहिंद की लड़ाई के लिए 13 महीनों तक घेरा डाल रखा था। सरहिंद की लड़ाई के ठीक बाद तराइन की दूसरी लड़ाई हुई।

इसके अलावा एक तर्क ये भी है कि इस अपहरण के बाद सम्राट और राजा जयचंद की फ़ौजों में प्रत्यक्ष रूप से कोई बड़ी लड़ाई होने का साक्ष्य नहीं मिलता। कन्नौज के गहड़वालों की वंशावली में संयोगिता, तिलोत्तमा, कान्तिमयी नाम की किसी भी कन्या का कोई उल्लेख नहीं है।

रोमिला थापर, आर एस त्रिपाठी, डॉक्टर गौरीशंकर हीराचन्द ओझा जैसे प्रख्यात इतिहासकारों ने संयोगिता हरण की घटना पर संदेह व्यक्त किया है। बहरहाल, पक्ष और विपक्ष के तर्कों के बावजूद निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी, क्योंकि बड़े-बड़े नामी इतिहासकारों ने पक्ष और विपक्ष में तर्क दिए हैं। आशा है इस प्रकरण में भविष्य में कोई शोधपूर्ण निष्कर्ष निकले।

संयोगिता से संबंधित एक घटना आजकल सोशल मीडिया पर बहुत वायरल होती है, जिसमें बताया जाता है कि संयोगिता को कैद करके ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के सामने फेंक कर अपमानित किया जाता है। यह नितांत कोरी कल्पना है, जो कि राजपूताने के गौरवशाली इतिहास की छवि को धूमिल करने का प्रयास है। इस घटना का एक भी ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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