1179 ई. व इसके आसपास हुई घटनाओं का वर्णन :- नागार्जुन से लड़ाई :- वीरवर विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) के पुत्र व सम्राट पृथ्वीराज चौहान के चचेरे भाई नागार्जुन ने बग़ावत करते हुए गुड़पुर दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया। सेनापति कैमास व भुवनैक मल्ल समेत सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने फौज समेत चढ़ाई की।
ये युद्ध सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासन की शुरुआती लड़ाई थी। इस लड़ाई में नागार्जुन की माँ देसलदेवी भी उसके साथ थीं। देसलदेवी दिल्ली के राजा मदनपाल तोमर की पुत्री थीं। इस लड़ाई में हारकर नागार्जुन तो भाग निकला, पर उसके सेनापति देवभट्ट व गुणभट्ट मारे गए।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान नागार्जुन की पत्नी और माता को साथ लेकर अजमेर लौट गए। इस लड़ाई में गुणभट्ट व अन्य सैनिकों के सिरों को काटकर उनकी मुंड माला बनवाकर अजयमेरु दुर्ग के सामने वाले मैदान में लटका दी गई। विद्रोहियों को कठोर दंड दिया गया, ताकि दोबारा कोई बग़ावत करने का साहस ना करे।
उक्त कठोर दंड का उल्लेख पृथ्वीराज विजय में मिलता है, जो कि स्वयं सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि जयानक ने लिखा है। जिन लोगों को ये भ्रम अब भी हो कि सम्राट ने गौरी को 17 बार जीवनदान दिया था, वे उक्त घटना को गौर से पढ़ें और विचार करें कि जब सम्राट अपने संबंधी शत्रुओं का ये हश्र करते थे तो गौरी जैसे शत्रु को जीवनदान क्यों देते।
हांसी पर कार्रवाई :- इन्हीं दिनों सम्राट ने हांसी के सामंत को पद से खारिज करके अपने भाई हरिराज को वहां नियुक्त किया।
शहाबुद्दीन गौरी अन्हिलपाटन के चालुक्यों को पराजित करने से पहले चौहानों को अपने अधीन करना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने अपना एक दूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पास भेजा और अधीनता स्वीकार करने को कहा।
दूत ने अपने सुल्तान का फ़रमान पढ़ते हुए कहा कि “तुम अपने कानों में दासता के ज़ेवर पहनकर सुल्तान के सामने हाज़िर हो जाओ और इस्लाम कुबूल कर लो, तो सुल्तान तुम्हारे सारे गुनाह मुआफ़ कर देंगे।”
यह प्रस्ताव सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने सुना तो क्रोधित होकर दूत से कहा कि “मैंने उस (गौरी) जैसे नरभक्षक का वध करने के लिए ही अपना विजय अभियान प्रारंभ किया है। ये जानते हुए भी उसने उसके दरबार में अधीनता का प्रस्ताव लेकर दूत भेज दिया, जिसे लोग ‘अजयमेरु का सिंह’ कहते हैं।”
यह जवाब गौरी तक पहुंचा, तो उसके क्रोध की कोई सीमा न रही और झुंझलाहट में आकर उसने किराडू के पास स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर को नष्ट कर दिया और फिर नाडौल में तबाही मचाई। किराडू वर्तमान में राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है।
गाडरारघट्ट की लड़ाई :- शहाबुद्दीन गौरी नेहरवाला पहुंचा, जहां सोलंकी राजा मूलराज द्वितीय की माँ नाइकीदेवी ने उसका सामना किया। राजा मूलराज द्वितीय बालक थे, इसलिए फौज का नेतृत्व नाइकीदेवी ने किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस समय राजा भीमदेव का शासन था।
इस आक्रमण की ख़बर सम्राट पृथ्वीराज चौहान को मिली, तो वे सोलंकी राजा की मदद करने को आतुर हो गए। तब सेनापति कैमास ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को ‘सुंदोपसुन्दन्याय’ का उपदेश दिया और उन्हें सोलंकी राजा की मदद हेतु न जाने के लिए समझाया।
बहरहाल, अर्बुद पर्वत के निकट गाडरारघट्ट के रणक्षेत्र में हुई इस लड़ाई में शहाबुद्दीन गौरी का विजय रथ रोकते हुए नाइकीदेवी ने उसको करारी शिकस्त दी। इस लड़ाई में पराजित होकर गौरी को भागना पड़ा।
हिंदुस्तान की स्थिति :- इस समय भारत के बड़े भू-भाग पर चौहानों का राज था, जिसकी राजधानी थी अजमेर। राजपूताने में दूसरा बड़ा राज्य मेवाड़ के गुहिलों का था। दिल्ली में तोमरों, मालवा में परमारों, गुजरात में सोलंकियों, पूर्व में कन्नौज, काशी आदि पर गहड़वालों का और वहां से पूर्व में बंगाल के सेनवंशियों का राज था।
शहाबुद्दीन गौरी ने पेशावर पर हमला किया और फ़तह हासिल की। 1180 ई. में शहाबुद्दीन गौरी ने ख़ुसरो मलिक को गिरफ़्तार करके लाहौर पर फ़तह हासिल की। गौरी ने अली किर्माख को लाहौर का हाकिम नियुक्त किया।
श्योपुर विजय :- सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने सेनापति भुवनैकमल्ल को फौज समेत विदा किया। भुवनैकमल्ल ने चंबल के पश्चिमी भाग पर आक्रमण किया और वहां के एक भाग (वर्तमान मध्यप्रदेश की श्योपुर तहसील) को विजय किया। इस विजय से चौहानों को कई हाथी प्राप्त हुए।
महाराज पृथ्वीपाल देव पर आक्रमण :- अलवर वाला भादानक राज्य का हिस्सा बड़गूजर महाराज पृथ्वीपाल देव के अधिकार में था, जिस पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमण किया। इस लड़ाई में सम्राट की विजय हुई, जिसके बाद महाराज पृथ्वीपाल ने अपने पुत्र रामराय की पुत्री नंदकंवर बड़गूजर का विवाह सम्राट के साथ करवाया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)