सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ई. अर्थात विक्रम संवत 1223 में ज्येष्ठ माह की 12वीं तिथि को गुजरात के अन्हिलपाटन में हुआ। कई इतिहासकार सम्राट के जन्म का वर्ष 1149 ई. बताते हैं, जो निश्चित रूप से गलत है, क्योंकि जयानक ने सम्राट के राज्याभिषेक के समय उनको एक बालक बताया है।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर देव थे, जो कि चौहान शासक अर्णोराज व रानी कंचन देवी के पुत्र थे। सम्राट पृथ्वीराज चौहान की माता कर्पूरी देवी जी थीं, जो कि चेदिदेश की राजधानी त्रिपुरी के हैहय कलचुरी वंश के राजा अचलराज की पुत्री थी।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान को कई नामों से पुकारा जाता था। उन्हें सपादलक्षेश्वर भी कहा जाता था, क्योंकि सपादलक्ष में चौहान वंश का शासन रहा। सम्राट को रायपिथौरा भी कहा जाता था, अधिकतर फ़ारसी तवारीखों में सम्राट को इसी नाम से सम्बोधित किया गया है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान को उनके दरबारी लेखक जयानक ने भारतेश्वर की उपाधि दी थी।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान को 6 भाषाओं का ज्ञान था, जो कि संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंस, पैशाची, मागधी व शूरसेनी हैं। सम्राट के दरबारी विद्वानों में जयानक, चंदबरदाई, बागीश्वर, जनार्दन, जिनपाल सूरी, पद्मप्रभा सूरी, आशाधर, विद्यापति आदि नाम मुख्य हैं, हालांकि कई इतिहासकार चंदबरदाई को उस ज़माने का न मानकर 16वीं सदी का मानते हैं।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जन्म के कुछ वर्ष बाद उनको दशावतार मुद्रित कण्ठाभरण अर्थात कण्ठ का एक आभूषण और दुष्टग्रहों से रक्षा के लिए व्याघ्रनख से निर्मित आभरण पहनाया गया।
अब यहां कुछ वर्णन शहाबुद्दीन गौरी का किया जा रहा है। गज़नी और हिरात के बीच गोर का एक छोटा सा राज्य था, जिसकी राजधानी थी फ़िरोज़कोह। इस वक़्त फिरोज़कोह पर बहाउद्दीन मुहम्मदशाह के बड़े बेटे गयासुद्दीन का राज़ था।
गयासुद्दीन ने अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन गौरी को सेनापति नियुक्त कर रखा था। गयासुद्दीन गौरी ने गजों को हराकर गज़नी जीता। उसने गज़नी का राज शहाबुद्दीन गौरी को सौंपा और ख़ुद फिरोज़कोह आ गया। शहाबुद्दीन गौरी का दूसरा नाम मुईजुद्दीन मुहम्मद बिन साम था।
शहाबुद्दीन गौरी का जन्म 1149 ई. में हुआ था। 1174 ई. में शहाबुद्दीन गौरी ने कुर्देज़ का मुल्क फ़तह किया। 1175 ई. में शहाबुद्दीन गौरी ने करामितह को शिकस्त देकर मुल्तान पर फ़तह हासिल की। इस तरह शहाबुद्दीन गौरी का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा था।
इन्हीं दिनों गुजरात के अजयपाल जी ने चौहानों पर आक्रमण किया और सोमेश्वर देव को कर देने हेतु विवश किया। यह घटना प्रबंध चिंतामणि ग्रंथ में लिखी है। 1176 ई. में शहाबुद्दीन गौरी ने सनकरान वालों को शिकस्त दी।

1178-79 ई. में अजमेर के चौहान शासक सोमेश्वर देव का देहांत हो गया। सोमेश्वर देव ने अपने शासनकाल में वैद्यनाथ के विशाल मंदिर का निर्माण करवाया व 5 अन्य विशाल मंदिर बनवाए। सोमेश्वर देव के देहांत के बाद 1178-79 ई. में अजयमेरु दुर्ग में बालक पृथ्वीराज चौहान का राज्याभिषेक हुआ।
जयानक द्वारा रचित ग्रंथ पृथ्वीराज विजय के अनुसार सम्राट पृथ्वीराज चौहान की दिनचर्या :- दिन के पहले पहर में सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्नान आदि करके प्रातःकालीन प्रार्थना करते थे। दूसरे पहर में सम्राट दरबार का आयोजन करते थे। दरबार में राज्य प्रशासन पर विचार विमर्श, नीति निर्धारण, अपराधों पर निर्णय, विदेशी राजदूतों से भेंट और उनसे उपहार प्राप्त किए जाते थे।
तीसरे पहर में सम्राट विश्राम व मन बहलाने के लिए चित्रशाला जाते थे। दोपहर के पश्चात पुनः राजकाज के कार्य करते थे। फिर मल्लयुद्ध आदि का आनंद लेते व संगीतज्ञों से संगीत सुनते।
रात में राजमहल हज़ारों लैम्पों से रोशन होता था। शास्त्रार्थ, संगीत, नृत्य आदि का प्रदर्शन होता था, जिसके बाद सम्राट शयन कक्ष की ओर प्रस्थान करते। पृथ्वीराज विजय के अनुसार सम्राट के शासनकाल में नमक से साम्राज्य को बहुत आय होती थी। घोड़ों का भी काफी क्रय-विक्रय किया जाता था।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सामंत व मंत्री :- सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य में अमात्य के पद पर वामन नामक एक सुयोग्य व्यक्ति थे। सेनापति व महादण्डनायक स्कंद थे। स्कंद वामन के भाई थे। ये गुजरात के नागर ब्राह्मण थे।
सम्राट पृथ्वीराज के मुख्य सेनापति व संरक्षक कदम्बवास थे, जिनको कैमास नाम से भी जाना गया। ये दाहिमा वंश के थे। सम्राट पृथ्वीराज के भाई हरिराज थे। सम्राट ने इनको हांसी दुर्ग में नियुक्त किया था। सम्राट की माता कर्पूरी देवी जी के काका भुवनैक मल्ल भी बड़े पद पर थे।
रामराय बड़गूजर, कनकराय बड़गूजर, राजौरगढ़ महाराज पृथ्वीपालदेव बड़गूजर के तीसरे पुत्र प्रताप सिंह बड़गूजर, देवती शाखा से संबंधित राजा संग्राम सिंह बड़गूजर आदि बडगूजर राजपूत भी सम्राट के साथी थे।
मायापुर के शासक चंद पुण्डीर सम्राट के साथ थे। सम्राट ने इनको पंजाब सीमा पर नियुक्त किया था। इन्हीं के पुत्र वीरवर धीर पुण्डीर हुए। वीकमपुर के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र फलौदी के शासक महासामंत कतिया सांखला भी सम्राट के साथ थे। फलौदी वर्तमान में जोधपुर जिले में स्थित है।
मेड़ता के सामन्त उदग या उदय, ददरेवा के गोपाल सिंह चौहान, रामदेव, सोमेश्वर, धांधूराय, प्रतापसिंह, पद्मनाम, विजयराय, उदयराज, डाहल देश के शासक मधुदेव परमार के पुत्र राजा सूर परमार आदि भी सम्राट के साथी थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)