मेवाड़ महाराणा अमरसिंह की जीवनी

16 मार्च, 1559 ई. को महाराणा प्रताप व महारानी अजबदे बाई के पुत्र कुँवर अमरसिंह का जन्म हुआ। 1573 ई. में राजा मानसिंह से सन्धि के वार्तालाप हेतु कुँवर अमरसिंह को भेजा गया था। 1576 ई. में हुए हल्दीघाटी युद्ध के दौरान कुँवर अमरसिंह को जनाने की सुरक्षा हेतु उदयपुर राजमहलों में तैनात किया गया था।

1582 ई. में हुए दिवेर के भीषण युद्ध में कुँवर अमरसिंह ने मेवाड़ की एक सैनिक टुकड़ी का नेतृत्व किया और मुगल सेनापति सुल्तान खां को उसके कवच व घोड़े समेत भाले से कत्ल किया। इस विजय ने कुँवर अमरसिंह की ख्याति समूचे राजपूताने में प्रसिद्ध कर दी।

1587 ई. में कुँवर अमरसिंह ने गुजरात के किसी शाही थाने पर आक्रमण करके दंड वसूल किया। 1597 ई. में महाराणा प्रताप के देहांत के बाद उनका अंतिम संस्कार करके राजगद्दी पर बैठे। महाराणा अमरसिंह ने मेवाड़ में कई सुधार कार्य करवाए और मेवाड़ को सुदृढ़ किया।

1599 ई. में अकबर ने राजा मानसिंह कछवाहा और अपने बेटे जहांगीर को फौज सहित महाराणा अमरसिंह के खिलाफ मेवाड़ भेजा। जहांगीर ने उदयपुर पर हमला किया। महाराणा अमरसिंह ने मुगल फौज को आमेर तक खदेड़ दिया व मालपुरा को लूटते हुए मेवाड़ आए।

महाराणा अमरसिंह

महाराणा अमरसिंह ने अपने हाथों से सुल्तान खां खोरी को मारकर बागोर पर अधिकार किया व इसी तरह रामपुरा पर भी अधिकार किया। 1600 ई. में अकबर ने मिर्जा शाहरुख को फौज समेत मेवाड़ भेजा, पर महाराणा ने हार नहीं मानी।

1600 ई. में महाराणा अमरसिंह ने अपने हाथों से ऊँठाळा दुर्ग में तैनात कायम खां को मारकर दुर्ग पर अधिकार किया। 1603 ई. में अकबर ने जहांगीर को दोबारा मेवाड़ भेजा, पर महाराणा अमरसिंह से मिली पिछली पराजय से घबराकर वह मेवाड़ अभियान छोड़कर गुजरात चला गया।

1605 ई. में जहांगीर मुगल बादशाह बना व उसने आसफ खां और शहजादे परवेज को 50 हज़ार की सेना सहित मेवाड़ भेजा। 1606 ई. में हुए देबारी के युद्ध में महाराणा अमरसिंह ने शहजादे परवेज को पराजित किया।

1608 ई. में जहांगीर ने शहजादे परवेज को बुलाकर महाबत खां को 15000 की फौज समेत मेवाड़ भेजा। महाराणा अमरसिंह ने महाबत खां को भी छापामार युद्ध नीति से पराजित किया।

महाराणा अमरसिंह

1609 ई. में महाराणा अमरसिंह ने सेना भेजकर मांडल के थाने पर आक्रमण किया, जहां मुगल सेनापति जगन्नाथ कछवाहा की घावों के चलते कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई। 1609 ई. में जहांगीर ने फौज समेत अब्दुल्ला खां को मेवाड़ भेजा।

1611 ई. में रणकपुर के युद्ध में महाराणा अमरसिंह ने अब्दुल्ला खां को पराजित किया। 1611 ई. में जहांगीर ने अब्दुल्ला खां को बुलाकर राजा बासु को मेवाड़ भेजा। 1613 ई. में महाराणा अमरसिंह ने शाहबाद थाने पर आक्रमण किया, जिसमें राजा बासु की मृत्यु हो गई।

1613 ई. में जहांगीर ने फौज समेत मिर्जा अजीज कोका को मेवाड़ भेजा, पर वह भी महाराणा अमरसिंह को परास्त न कर सका। 1613 ई. में जहांगीर स्वयं अजमेर पहुंचा और वहां से उसने शाहजहां को कुल हिन्दुस्तान की फौज समेत मेवाड़ भेजा।

1615 ई. में मेवाड़ के बन्दी नागरिकों की रक्षा की खातिर महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से सन्धि कर ली। सन्धि के बाद चित्तौड़ पर महाराणा अमरसिंह का अधिकार हुआ। 1615 ई. से 1620 ई. तक महाराणा अमरसिंह उदयपुर में एकान्तवास में रहे।

महाराणा अमरसिंह

26 जनवरी, 1620 ई. को महाराणा अमरसिंह का देहान्त हो गया। एक ऐसे योद्धा, जिन्होंने अपने जीवनकाल में महाराणा बनने के बाद 18 वर्षों तक संघर्ष करते हुए 17 बड़ी लड़ाईंयों में बहादुरी दिखाई व 100 से अधिक मुगल थानों पर विजय प्राप्त की।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

3 Comments

  1. Amit Kumar
    August 13, 2021 / 11:21 am

    जय महावीर महाराणा अमर सिंह जी।

  2. देवराज
    August 13, 2021 / 6:29 pm

    Jai ho rana ji ki .. काश दुनिया इनके बारे में भी अच्छे से जानती ।। महान लोग।।

  3. Sahil Gupta
    August 16, 2021 / 3:02 pm

    His greatness is no less than his father. A worthy sucessor of Great Mahrana Pratap.

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