राणपुर दर्रे की लड़ाई :- राणपुर दर्रे में महाराणा अमरसिंह के ज्येष्ठ पुत्र कुंवर कर्णसिंह और अब्दुल्ला खां की फौज में लड़ाई हुई। अचानक हुई इस लड़ाई में कुँवर कर्णसिंह को पीछे हटना पड़ा। कुंवर कर्णसिंह पराजित होकर दर्रे से निकले और राणपुर में दोबारा पूरी तैयारी के साथ मुगलों से युद्ध किया।
राणपुर का भीषण युद्ध :- रणकपुर को ही पहले राणपुर के नाम से जाना जाता था। रणकपुर वर्तमान में राजस्थान के पाली जिले में स्थित है। मुगल रणकपुर के जैन मन्दिरों को नुकसान पहुंचा रहे थे। ये ख़बर जब कुँवर कर्णसिंह को मिली, तो कुंवर कर्ण सिंह के नेतृत्व में मेवाड़ी फौज ने मुगलों पर आक्रमण कर दिया।
ये लड़ाई महाराणा अमरसिंह व अब्दुल्ला खां के बीच संघर्ष के लिए निर्णायक साबित हुई। मेवाड़ी बहादुरों ने लहू की अंतिम बूंद तक लड़ते हुए इन मंदिरों की रक्षार्थ अपना सर्वस्व लूटा दिया। मेवाड़ के बड़े-बड़े योद्धा इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए, परन्तु मेवाड़ को विजयश्री दिला गए। मेवाड़ की तरफ से इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धाओं की सूची :-
देवगढ़ के रावत दूदा चुण्डावत :- इन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में भी भाग लिया था। राणपुर के युद्ध में इनके हाथों मुगल सिपहसालार महमूद अली मारा गया। इस विषय पर ये दोहा बना :- श्याम काम सुधार मुकुंद भुजां बल महपति। महमदअली न मार पछे आप रण पोढिया।। अर्थात महमूद अली को मारने के बाद रावत दूदा भी रणभूमि में लीन हो गए।
झाड़ौल के राजराणा झाला देदा :- ये हल्दीघाटी के महान योद्धा वीरवर झाला मानसिंह जी के पुत्र थे। झाला देदा की छतरी राणपुर की नाल में अब तक मौजूद है। वर्तमान में इस छतरी की दशा अत्यंत दयनीय है। राजराणा झाला देदा जी के वंशजों व स्थानीय निवासियों को इस तरफ ध्यान देकर छतरी का जीर्णोद्धार करवाना चाहिए।
झाला देदा एक वीर पिता की वीर संतान थे। झाला देदा ने जहांगीर के विरुद्ध कई लड़ाइयों में महाराणा अमरसिंह का साथ दिया। महाराणा अमरसिंह ने झाला देदा के पुत्र व अपने भाणेज श्याम सिंह झाला को झाड़ौल का पट्टा जागीर में दे दिया, जबकि श्यामसिंह झाला देदा के छोटे पुत्र थे।
मुकुंददास जयमलोत मेड़तिया :- ये वीरवर जयमल मेड़तिया के 5वें पुत्र थे। इस समय इनकी आयु 72 वर्ष थी। इस आयु में भी मुकुंददास जी काल बनकर मुगलों पर टूट पड़े। स्वयं परलोक सिधार गए, परन्तु मंदिरों को नुकसान नहीं पहुँचने दिया। वीरवर जयमल मेड़तिया के छठे पुत्र हरिदास मेड़तिया राठौड़ भी इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
महाराज पुरणमल शक्तावत :- ये महाराज शक्तिसिंह के पौत्र व महाराज भाण के पुत्र थे। ये भींडर के दूसरे रावत साहब थे। इनके ज्येष्ठ पुत्र सबल सिंह भींडर के तीसरे रावत साहब बने और छोटे पुत्र छतरसाल शक्तावत को कूँथवास जागीर में मिला।
सादड़ी के झाला भोपत, नारायणदास सोनगरा चौहान, बेदला के केशवदास चौहान, केसरीदास कछवाहा, आसकरण, सूरजमल आदि अनेक नामी योद्धाओं ने धर्म की रक्षार्थ लड़े गए इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
इसी युद्ध में मेवाड़ के कुँवर भीमसिंह का मुकाबला अब्दुल्ला खां से हो गया। कुँवर भीमसिंह ने अब्दुल्ला खां को बुरी तरह पीट दिया, लेकिन अब्दुल्ला खां जैसे-तैसे बच निकला। अब्दुल्ला खां के पूरे जीवनकाल में उसकी इतनी फ़ज़ीहत कभी न हुई थी।
कई महत्वपूर्ण योद्धाओं के बलिदानों के कारण मेवाड़ ने इस युद्ध में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की व गोडवाड़ पर फिर से मेवाड़ का अधिकार हो गया। मेवाड़ की जिस ख्याति को चावंड पर अब्दुल्ला खां के कब्जे के कारण क्षति पहुंची थी, उसकी क्षतिपूर्ति इस युद्ध से हो गई।
रणकपुर के जैन मंदिरों की ख्याति उनकी शिल्पकला और विशालता के कारण आज सारे संसार भर में है, परन्तु इन मंदिरों की रक्षार्थ अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान देने वाले इन वीरों की समाधियों को साफ करने वाला तक कोई नहीं है। ये राजपूताने की विडंबना है।
अब्दुल्ला खां को मेवाड़ में 2 वर्ष बीत चुके थे। इस समयकाल में महाराणा अमरसिंह ने उसको काफी फौजी नुकसान पहुंचाया। मेवाड़ के विरुद्ध इस सैन्य अभियान के साथ अब्दुल्ला खां का सारा फ़ौज खर्च समाप्त हो गया। फिर जहांगीर ने उसके लिए और फ़ौज खर्च भेजा, परन्तु वह मेवाड़ का कुछ न कर सका।
जुलाई, 1611 ई. में जहांगीर ने अब्दुल्ला खां को मेवाड़ अभियान से हटाकर गुजरात की तरफ भेज दिया। जिस सैन्य अभियान में अब्दुल्ला खां बड़े ही घमंड के साथ कूद पड़ा था, उसे 2 वर्षों बाद इस तरह अपमानित होकर जाना पड़ा। तुजुक-ए-जहांगीरी में जहाँगीर लिखता है “राणा अमर के खिलाफ जैसी लड़ाई की उम्मीद थी, वैसी लड़ाई ना होने से मैंने अब्दुल्ला खां को गुजरात भेज दिया”।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
रणकपुर एक पर्यटन स्थल है उस पर एक चिलालेग लगाना चाहिए कि इस मंदिर की मुगलों से रक्षा करते हमारे महाराणा अमरसिंह जी के योध्दाओं के नाम अंकित करके उनकी छतरियों कि ओर आकर्षित करना चाहिए जिससे श्रद्धालु उस पावन भूमि को चुम्म के अपने आप को धन्य कर सके🙏🙏