महाराणा अमरसिंह द्वारा कुँवर कर्णसिंह को मुगल खज़ाना लूटने के लिए भेजना :- यह घटना 1611 ई. की है। इन दिनों महाराणा अमरसिंह अपने सामन्तों सहित अम्बाव के पहाड़ों में रहा करते थे। वहीं एक दिन महाराणा अमरसिंह को खबर मिली कि अहमदाबाद से ऊँटों पर लदा खज़ाना आगरा जा रहा है।
हालांकि खजाने के साथ मुगल फौज भी भारी संख्या में थी। महाराणा अमरसिंह ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कुंवर कर्ण सिंह को 2 हज़ार मेवाड़ी घुड़सवारों के साथ उस खजाने को लूटने और मुगल फौज पर हमला करने के लिए भेजा। इस लड़ाई में मेवाड़ राजघराने की 3 पीढ़ियों ने भाग लिया।
कुंवर कर्ण सिंह के साथ इस अभियान में भाग लेने वाले मेवाड़ी योद्धा :- राजपरिवार के सदस्यों में महाराणा उदयसिंह के पुत्र माधवसिंह, महाराणा उदयसिंह के पुत्र शार्दूल सिंह, महाराणा प्रताप व रानी फूल कँवर के पुत्र शैखासिंह, महाराणा प्रताप व रानी पुरबाई सोलंकिनी के पुत्र रावत साहसमल, महाराणा अमरसिंह के पुत्र कुंवर बाघसिंह, महाराणा अमरसिंह के पुत्र कुंवर अर्जुनसिंह ने इस अभियान में भाग लिया।
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शत्रुसाल झाला मानावत :- ये महाराणा प्रताप के भाणजे थे। इनके पिता देलवाड़ा के मानसिंह झाला थे। शत्रुसाल झाला व महाराणा प्रताप में तकरार हुई थी, तब उन्होंने कसम खाई थी कि महाराणा के जीते-जी मेवाड़ में नहीं आएंगे। इसलिए महाराणा अमरसिंह के समय जब-जब आवश्यकता पड़ी, तब-तब वे मेवाड़ आए।
रूपनगर के वीरमदेव सोलंकी, घाणेराव के कुँवर किशनसिंह राठौड़ गोपालदासोत, हरिदास राठौड़ बलुओत, माधवसिंह सिसोदिया, सींधल बीदो, सींधल अमरा भांडावत, सींधल तोगा भांडावत, सींधल सांवलदास बीदावत, राठौड़ माला भीमकर्णोत, देवड़ा पत्ता कलावत आदि योद्धाओं ने भी इस अभियान में भाग लिया।
पाली के सोनगरा चौहान वंश से केशवदास सोनगरा ने इस युद्ध में भाग लिया, जो कि महाराणा प्रताप के मामा भाण सोनगरा के पुत्र थे। राव भाण सोनगरा 1583 ई. में कुम्भलगढ़ पर हुए शाहबाज़ खां के आक्रमण में काम आए थे।
केशवदास सोनगरा के साथ खजाना लूटने वाले अभियान में सावंतसिंह सोनगरा ने भी भाग लिया, जो कि नारायणदास सोनगरा के पुत्र थे। नारायणदास सोनगरा ने स्वयं भी इस अभियान में हिस्सा लिया था। नारायणदास सोनगरा भी भाण सोनगरा के पुत्र थे।
देवगढ़ के रावत दूदा चुंडावत भी इस अभियान का हिस्सा बने, जो कि हल्दीघाटी में काम आने वाले रावत सांगा चुंडावत के पुत्र थे। इस सैन्य अभियान में महाराणा कर्णसिंह के साथ जाने वाले डोडिया राजपूतों में गोपालदास डोडिया, सादा डोडिया, सूजा डोडिया, अगरा डोडिया, जगमाल डोडिया आदि वीर योद्धा भी थे।
कुँवर कर्णसिंह की पराजय :- कुँवर कर्णसिंह ने अपने लक्ष्य तक पहुंचने में देरी कर दी, जिस वजह से खज़ाना पहले ही निकल गया। फिर कुँवर कर्णसिंह ने मारवाड़ के दुनाड़े गांव तक पीछा किया, पर खज़ाना हाथ नहीं आया। खज़ाना अजमेर तक पहुंच चुका था। कुँवर कर्णसिंह को अपनी इस देरी का खामियाजा भी भुगतना पड़ा।
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अब्दुल्ला खां ने मेवाड़ी फौज पर हमला करने के लिए अपनी कुल फौज जमा कर दी। कई मुगल थानों की फौजें मिलती गई और एक बड़ी फौज तैयार हुई। नाडौल से मारवाड़ के कुँवर गजसिंह ने गोविन्ददास भाटी को अपनी 2 हज़ार की सेना समेत मुगल फौज का साथ देने भेजा।
भाद्राजूण और मालगढ़ के बीच मूलेवां गांव में राठौड़ राजपूतों व मुगलों की मिली-जुली फौज से मेवाड़ी राजपूतों का जमकर युद्ध हुआ। संख्या में ज्यादा होने की वजह से फतह का झंडा बादशाही फौज वालों के हाथ रहा। कुंवर कर्णसिंह ने पराजित होकर पहाड़ियों में प्रवेश किया।
मेवाड़ की तरफ से इस युद्ध में गोपालदास डोडिया, सादा डोडिया, सूजा डोडिया, अगरा डोडिया, जगमाल डोडिया आदि वीर वीरगति को प्राप्त हुए। अन्य कई सैनिक भी काम आए। मुगलों व राठौड़ राजपूतों की तरफ से भी कई सैनिक मारे गए, परन्तु उन्हें मेवाड़ की तुलना में कम नुकसान पहुंचा।
ग्रंथ वीरविनोद में इस लड़ाई में वीरगति पाने वालों की सूची में देवगढ़ के रावत दूदा चुंडावत, हरिदास राठौड़ व नारायणदास सोनगरा का नाम भी लिख दिया गया, जो कि गलत है। उक्त तीनों ही वीरों ने इस लड़ाई में भाग अवश्य लिया, परन्तु वे जीवित रहे थे। ये तीनों ही वीर बाद में रणकपुर की लड़ाई में काम आए थे, जिसका वर्णन आगे के भागों में किया जाएगा।
गोविन्ददास भाटी के साथी राजपूत, जिन्होंने इस लड़ाई में मुगल फौज का साथ दिया, उनको अच्छा काम करने के एवज में जहांगीर ने जागीरें दीं। गोपालदास को इस लड़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए जहाँगीर ने खेजड़ला गांव दिया।
मानसिंह को जहाँगीर ने रतनपुरा गांव दिया। ये मानसिंह कछवाहा नहीं, बल्कि कोई और है। इसी तरह राठौड़ खीवा मांडणोत को जहाँगीर ने ईडवा गांव दिया। इस तरह बेहतर प्रदर्शन करने वालों का उत्साहवर्धन किया गया, ताकि अगली बार वे और भी अधिक उत्साह से सैन्य अभियानों में आगे बढ़कर काम करे।
केलवा की लड़ाई :- 1611 ई. में महाराणा अमरसिंह ने मनमनदास राठौड़ मुकुन्ददासोत के नेतृत्व में एक फ़ौज अब्दुल्ला खां की फौज पर हमला करने के लिए रवाना की। केलवा गांव के पास लड़ाई हुई, जिसमें मेवाड़ी फौज की विजय हुई।
इस लड़ाई में मनमनदास जी ने बड़ी बहादुरी दिखाई। मनमनदास वीर जयमल राठौड़ के पौत्र व मुकुन्ददास मेड़तिया के पुत्र थे। केलवा वर्तमान में राजसमंद जिले में स्थित है व राठौड़ राजपूतों का द्वितीय श्रेणी ठिकाना है।
मालगढ़ घाट की लड़ाई :- 1611 ई. में मालगढ़ घाट पर मेवाड़ी फौज व मुगल फौज में लड़ाई हुई, जिसमें मेवाड़ की तरफ से देवगढ़ के रावत दूदा चुंडावत के भाई ठाकुर गोविंददास चुण्डावत वीरगति को प्राप्त हुए।
अब्दुल्ला खां का हावी होना :- इन्हीं दिनों अब्दुल्ला खां ने जगह-जगह मुगल थाने कायम कर दिए और मेवाड़ की पहाड़ियों में वह सफलतापूर्वक कार्य करने लगा। जगह-जगह मेवाड़ी राजपूतों के ठिकानों पर धावे करने लगा। अब्दुल्ला खां ने अपनी फ़ौज सहित मेवाड़ की राजधानी चावंड की तरफ प्रस्थान किया।
महाराणा अमरसिंह इस समय चावंड में ही थे। फ़ौजी कमी के कारण उन्हें चावंड छोड़ना पड़ा। अब्दुल्ला खां ने चावंड पर आक्रमण किया और खाली पड़े महलों पर कब्ज़ा कर लिया। चावंड पर विजय अब्दुल्ला खां की बड़ी सफलता थी, क्योंकि चावंड पिछले 26 वर्षों से मेवाड़ की राजधानी रही।
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महाराणा अमरसिंह मेरपुर पहुंचे, परन्तु अब्दुल्ला खां अपनी फ़ौज सहित मेरपुर भी पहुंच गया। महाराणा अमरसिंह ने सही समय पर मेरपुर भी छोड़ दिया और कहीं अन्यत्र चले गए। अब्दुल्ला खां ने मेरपुर पर भी कब्ज़ा करके वहां एक मुगल थाना बिठा दिया और महाराणा की खोज में निकल पड़ा।
महाराणा अमरसिंह ने इन दिनों जो संघर्ष किया, उस संघर्ष ने महाराणा प्रताप की गौरावगाथाओं का पुनः स्मरण करवा दिया। जिन पहाड़ियों में महाराणा प्रताप ने शौर्य दिखाया था, वे पहाड़ियां महाराणा अमरसिंह के शौर्य व संघर्ष की भी साक्षी बनीं।
परन्तु महाराणा अमरसिंह इस समय बड़े दुःखी हुए, क्योंकि उन्होंने अपनी राजधानी व अपने महान पिता की निर्वाण स्थली चावंड को खो दिया। महाराणा अमरसिंह का हृदय इस पराजय से छिन्न-भिन्न हुआ जा रहा था और आंखें अब्दुल्ला खां से प्रतिशोध लेने को आतुर होकर लाल हो चुकी थीं। महाराणा अमरसिंह ने निश्चय कर लिया कि इस बार अब्दुल्ला खां के डेरों में घुसकर प्रतिशोध लेंगे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)