मेवाड़ महाराणा अमरसिंह (भाग – 17)

भंवर जगतसिंह का जन्म :- 14 अगस्त, 1607 ई. को कुँवर कर्णसिंह के पुत्र भँवर जगतसिंह का जन्म हुआ, जो आगे चलकर मेवाड़ के महाराणा बने। संघर्ष के भीषण समय में भंवर जगतसिंह के जन्म पर मेवाड़ में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। महाराणा अमरसिंह को अपने पौत्र के जन्म पर बड़ी प्रसन्नता हुई।

राव दुर्गा सिसोदिया का देहांत :- इसी वर्ष अकबर और जहांगीर के बेहद खास सिपहसलार राव दुर्गा सिसोदिया का देहांत हुआ। राव दुर्गा सिसोदिया मालवा में रामपुरा के शासक थे, जो पहले कभी महाराणा उदयसिंह के सामन्त हुआ करते थे। राव दुर्गा सिसोदिया मेवाड़ के राणा भुवनसिंह के पुत्र चंद्रा जी के वंशज थे।

इन्होंने महाराणा उदयसिंह के पक्ष में भी कई युद्ध लड़े। अकबर के चित्तौड़ आक्रमण के समय राव दुर्गा ने अपनी एक सैनिक टुकड़ी चित्तौड़गढ़ के राजपूतों का साथ देने के लिए भेजी थी। राव दुर्गा ने महाराणा प्रताप के मालवा पर आक्रमण के समय भामाशाह जी की सहायता की थी।

1567 ई. में जब अकबर ने चित्तौड़ पर हमला किया, उसके बाद राव दुर्गा ने बादशाही मातहती कुबूल कर ली थी। 1567 ई. से 1607 ई. तक के 40 वर्षों तक राव दुर्गा मुगल सल्तनत की तरफ रहे। इस दौरान इनको महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध एक सैन्य अभियान में भी भेजा गया था, हालांकि यह सैन्य अभियान हो नहीं पाया था।

रामपुरा स्थित राव दुर्गा सिसोदिया के महल

जहांगीर ने राव दुर्गा के बारे में लिखा कि “मेरे पिता की सेवा में आने का सौभाग्य प्राप्त करने से पहले राव दुर्गा राणा उदयसिंह का विश्वसनीय सेवक था। मेरे पिता के समय इसको अमीर के पद पर रखा गया, जो कि धीरे-धीरे 4 हज़ार का मनसबदार बन गया। 29 तारीख को उसकी मृत्यु हो गई। वह अच्छा सैनिक था।”

1608 ई. में जहांगीर ने परवेज़ को मेवाड़ में एक शहर बसाने की आज्ञा दी। जहांगीर लिखता है कि “मैंने परवेज़ के लिए एक मोतियों का हार और एक लाख के खर्च समेत एक हुक्म भिजवाया कि अपने भाईयों के लिए राणा के मुल्क में ही बनारस के बराबर एक शहर परवेज़ाबाद के नाम से बसाए”

परवेज़ द्वारा मेवाड़ में परवेज़ाबाद बसाना नामुमकिन था। देबारी के युद्ध ने परवेज़ को पहले ही झकझोर कर रख दिया था। उसके लिए मेवाड़ में महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई करनी मुश्किल प्रतीत हो रही थी। परवेज़ मेवाड़ में जहां भी मुगल थाना कायम करता, वह मुगल थाना कुछ ही दिनों में महाराणा अमरसिंह के सैनिक हटा देते थे।

इसी वर्ष जसवन्त सोनगरा चौहान जागीर छीनने की नाराजगी के चलते मारवाड़ नरेश का साथ छोड़ मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह के पास आ गए। जसवन्त सोनगरा महाराणा प्रताप के मामा मानसिंह सोनगरा के पुत्र थे, जो कि महाराणा प्रताप के शासनकाल में ही मारवाड़ चले गए थे।

बदीउज्ज़मा प्रकरण :- महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध 1600 ई. में अकबर के मेवाड़ अभियान का नेतृत्व करने वाले मिर्जा शाहरुख की मृत्यु हो गई। 1608 ई. में मिर्जा शाहरुख के बेटे बदीउज्ज़मा ने मालवे में फसाद करके मुगल सल्तनत से बगावत कर दी।

बदीउज्ज़मा महाराणा अमरसिंह का ताबेदार बनने मेवाड़ गया और महाराणा से हाथ मिला लिया। परवेज़ की फौज इस दौरान मेवाड़ में तैनात थी, फिर भी जहांगीर ने अब्दुल्ला खां को एक और फौज समेत बदीउज्ज़मा को कैद करने व महाराणा को सबक सिखाने मेवाड़ भेजा।

मुईज़ुलमुल्क को इस नई फौज का बख्शी बनाया गया। अब्दुल्ला खां ने बदीउज्ज़मा के कई साथियों का कत्ल कर उसे कैद कर लिया, लेकिन ये फौज महाराणा अमरसिंह के खिलाफ कार्रवाई में असफल हुई।

निराश होकर अब्दुल्ला खां बदीउज्ज़मा को साथ लेकर आगरा चला गया, जहां बदीउज्ज़मा ने बादशाही मातहती कुबूल की। 1608 ई. में जहांगीर ने मेवाड़ में तैनात अब्दुर्रज्ज़ाक मअमूरी को आगरा बुला लिया। ये मुगल फ़ौज का बख्शी था। मुईज़ुलमुल्क नए बख्शी के तौर पर मेवाड़ में रहा।

महाराणा अमरसिंह जी का स्कैच, जो कि मेरे निवेदन पर श्याम सुंदर सोनी जी ने तैयार किया

बेबार के दर्रे की लड़ाई :- बेबार के दर्रे में परवेज़ व महाराणा अमरसिंह की सेना में युद्ध हुआ। परवेज़ की सेना से लड़ते हुए बेदला के रामचन्द्र चौहान वीरगति को प्राप्त हुए। सबल सिंह चौहान बेदला की गद्दी पर बैठे। कोठारिया के रावत धर्मांगद भी वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला।

खमनौर की लड़ाई :- हल्दीघाटी से कुछ ही दूर खमनौर नामक गाँव में परवेज़ व महाराणा अमरसिंह की फौज के बीच फिर लड़ाई हुई, जिसमें परवेज़ ने करारी शिकस्त खाई। इस लड़ाई का वर्णन कर्नल जेम्स टाॅड ने किया है। हल्दीघाटी का विश्वप्रसिद्ध युद्ध भी इसी गांव में लड़ा गया था। जिस स्थान पर महान पिता ने महान युद्ध में शौर्य दिखाया, उसी स्थान को महान पुत्र ने भी अपनी तलवार से पवित्र कर दिया।

शहज़ादे परवेज़ की असफलता :- परवेज़ 1605 से 1608 ई. तक मेवाड़ में ही रहा पर कुछ हासिल नहीं कर सका। कर्नल एलेक्जेंडर डाऊ लिखता है कि “जहांगीर ने परवेज़ से बहुत नाराज़ होकर उसको वली अहदी के हक़ से ख़ारिज कर दिया और शाही मुलाज़िमाें ने जुदी-जुदी चिट्ठियाँ बादशाह को लिखीं, जिनमें एक-दूसरे का कुसूर ज़ाहिर किया”

कर्नल जेम्स टॉड लिखता है कि “शहज़ादा परवेज़ शिकस्त खाकर आगरा चला गया”। खुद जहांगीर अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी में लिखता है कि “राणा के खिलाफ इस बड़ी मुहिम में परवेज़ को कामयाबी नहीं मिली और राणा अमर को संभलने का मौका मिल गया”

3 वर्षों में महाराणा अमरसिंह व परवेज़ की सेनाओं के बीच कई लड़ाइयां हुईं। मेवाड़ के कई वीर वीरगति को प्राप्त हुए, तो मुगलों की तरफ से भी कई मारे गए। परवेज़ अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका, इसलिए जहांगीर ने परवेज़ को आगरा बुला लिया। ये केवल एक अभियान की समाप्ति थी, ना कि जहांगीर के मेवाड़ विजय के स्वप्न का अंत।

शहज़ादा परवेज़

महाराणा अमरसिंह द्वारा योग हेतु किए गए कार्य :- संघर्ष के युग में भी मेवाड़ के महाराणाओं ने योग को बढ़ावा दिया, जो कि प्रशंसनीय है। महाराणा प्रताप व महाराणा अमरसिंह ने योग के लिए आसन्न, धूणियों और मठों को भूमिदान व ग्रामदान देकर विशेषाधिकार दिए, जिनमें खेड़ी, जहाजपुर, गोरख्या, मांडल, भमराज, करधर आदि प्रमुख हैं।

चित्रांगढ़ हद सोह चाढ़वा, सोह हमीर सरीखां। लाखाहरा नकूं लेखवियो, तथ मेले तारीखां।। अर्थात हे महाराणा लाखा के वंश वाले महाराणा अमरसिंह, आपने चित्तौड़ की शोभा को और महाराणा हम्मीर जैसे पुरुषों की शोभा को इस हद तक बढ़ाने के लिए तिथि के साथ यवनों की तारीखें लगाकर कभी हिसाब नहीं किया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!