मांडल के शाही थाने पर महाराणा अमरसिंह का आक्रमण :- 1604 ई. में मांडल के शाही थाने पर आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा के काका जगन्नाथ कछवाहा को फ़ौजी टुकड़ी समेत तैनात किया गया। महाराणा अमरसिंह ने फ़ौज समेत मांडल की तरफ कूच किया। इसी दौरान जगन्नाथ कछवाहा किसी कारणवश मांडल का थाना किसी मुगल को सौंपकर आगरा की तरफ रवाना हो गए।
महाराणा अमरसिंह ने मांडल से कुछ कोस दूर जाकर पड़ाव डाला और रात के वक्त मांडल पर आक्रमण कर दिया। अचानक हुए इस हमले को मुगल सेना भांप नहीं सकी और कई मुगल इस लड़ाई में मारे गए। देखते ही देखते महाराणा अमरसिंह ने पुनः मुगलों से वो सब क्षेत्र वापिस ले लिया जो मुगलों ने उनके शासनकाल में छीना था। केवल मांडलगढ़ दुर्ग व चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर ही मुगल सेना का कब्ज़ा था।
8 अप्रैल, 1604 ई. को अकबर के बेटे दानियाल मिर्जा की 32 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई, जिससे अकबर को गहरा आघात लगा। अकबर ने दानियाल की शराब की लत छुड़ाने के लिए उसे कमरे में बंद कर दिया था। दानियाल ने अपने मित्र से बन्दूक की नाल में शराब भरकर मंगवाई और पी ली, जिससे शराब के साथ-साथ जंग भी गले उतर गया और उसकी दर्दनाक मृत्यु हुई।
इसी वर्ष अकबर को एक और आघात सहन करना पड़ा। 29 अगस्त, 1604 ई. को अकबर की माँ मरियम मकानी हमीदा बानो बेगम का 80 वर्ष की उम्र में इन्तकाल हुआ। इस प्रकार के आघात और पेचिश की बीमारी ने अकबर को धीरे-धीरे जकड़ना शुरू कर दिया।
अकबर द्वारा मेवाड़ विजय का अन्तिम प्रयास :- अकबर अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव तक पहुंच चुका था, परन्तु फिर भी उसके मन में मेवाड़ विजय की उम्मीद शेष रह गई थी, जिसे वो पूरा करना चाहता था। इस बार वो सलीम को मेवाड़ भेजकर अपना मन नहीं बहलाना चाहता था।
अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए इस बार हज़ारों जंगी सवारों की जर्रार फ़ौज एकत्र की और इस फौज की कमान अपने पोते और जहांगीर के सबसे बड़े बेटे खुसरो को सौंपी। सलीम के विद्रोह करने के कारण अकबर खुसरो को उत्तराधिकारी बनाने की भी सोच रहा था। इस अभियान की कमान खुसरो को दिए जाने पर सलीम मन ही मन ये जान चुका था कि उसके और मुगल साम्राज्य के तख़्त के बीच उसी का बेटा खुसरो खड़ा है।
इस फ़ौज के साथ खुसरो का सबसे खास सिपहसालार बनाया गया मेवाड़ के सागरसिंह सिसोदिया को। वह महाराणा उदयसिंह और रानी धीरबाई भटियाणी का बेटा था और जगमाल का छोटा भाई था। सागरसिंह ने 1583 ई. के बाद मुगल अधीनता स्वीकार कर ली थी।
अकबर ने सागरसिंह को बुलाकर कहा कि “तुम खुसरो के साथ जाओ, हम तुम्हें मेवाड़ का राणा बना देंगे, क्योंकि तुम्हारे भाई जगमाल की यही मुराद थी, जो पूरी नहीं हुई। अब तुम्हारे भाई का अधूरा काम तुम पूरा करो और राणा अमरसिंह को अपना ताबेदार बनाओ। आज से हमने तुमको राणा का ख़िताब दिया।”
अकबर ने सागरसिंह को दिलासा तो दे दिया, परन्तु इस प्रकार पदवी देकर मेवाड़ का राणा हर कोई नहीं बन सकता था। मेवाड़ की गद्दी पर बैठने वाला तो स्वयं एकलिंग नाथ जी का दीवान कहलाता था। भला मेवाड़ की प्रजा सागरसिंह को क्यों राणा मानती। प्रजा ने महाराणा अमरसिंह को ही अपना स्वामी माना।
इस सैन्य अभियान में 60 प्रमुख सिपहसालार भाग लेने वाले थे, इस तथ्य की पुष्टि इकबालनामा से होती है। यह निश्चित ही एक बहुत बड़ा सैन्य अभियान था, परन्तु ये अभियान मेवाड़ के लिए आगरा से रवाना न हो सका, क्योंकि इससे पूर्व ही अकबर की मृत्यु हो गई। 15 अक्टूबर, 1605 ई. को पेचिश की बीमारी व इलाज करने वालों की लापरवाही के कारण अकबर इस संसार से चल बसा।
मेवाड़ फतह करने की उसकी आरज़ू अधूरी ही रह गई। अकबर ने अपने जीवनकाल में मेवाड़ के 3 शासकों के विरुद्ध कई सैन्य अभियान भेजे, परन्तु उसे कभी वो सफलता नहीं मिली, जिसकी उसे ज़रूरत थी। अकबर द्वारा यूं तो मेवाड़ के विरुद्ध कई बार फ़ौजें भेजी गईं, परन्तु उसके द्वारा भेजे गए या खुद के नेतृत्व में किए गए महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों की सूची इस तरह है :-
अकबर ने मेवाड़ के विरुद्ध पहला सैन्य अभियान 1567 ई. में स्वयं के नेतृत्व में किया था। इस समय उसने महाराणा उदयसिंह के विरुद्ध चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई करके सेनानायक जयमल जी मेड़तिया और रावत पत्ता जी चुंडावत से 4 माह की घेराबंदी के बाद दुर्ग जीता था। इस समय उसे भारी कीमत चुकाने पर सफलता मिली, परन्तु मेवाड़ के महाराणा को वह नहीं झुका पाया।
अकबर ने दूसरा बड़ा सैन्य अभियान जून, 1576 ई. में महाराणा प्रताप के विरुद्ध भेजा। इस अवसर पर आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा को फ़ौज सहित भेजा गया और हल्दीघाटी का भीषण युद्ध हुआ, जो कि अनिर्णीत रहा। हालांकि मुगल इसे अपनी विजय बताते हैं व मेवाड़ के कई ग्रंथों में मेवाड़ की विजय बताई जाती है।
अकबर का तीसरा बड़ा सैन्य अभियान भी 1576 ई. में ही रहा, जब अक्टूबर माह में उसने स्वयं 80 हज़ार जंगी सवारों सहित मेवाड़ पर धावा बोला। अकबर 8 माह तक मेवाड़ और उसके आसपास ही रहा और मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर महाराणा प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ की विजय पताका नहीं झुकी। थक-हारकर अकबर को लौटना पड़ा।
अकबर ने चौथा बड़ा सैन्य अभियान शाहबाज़ खां के नेतृत्व में 1577 ई. में भेजा, इस बार मुगलों का लक्ष्य कुम्भलगढ़ दुर्ग था। शाहबाज़ खां ने 6 महीने की घेराबंदी के बाद अप्रैल, 1578 ई. में किला फतह कर लिया। मुगल इस बार अपने लक्ष्य में कामयाब रहे, परन्तु उनकी ये खुशी कुछ दिनों तक ही रही, क्योंकि 1583 ई. में महाराणा प्रताप ने पुनः कुम्भलगढ़ दुर्ग जीत लिया।
1578 ई. में अकबर ने 5वां सैन्य अभियान पुनः शाहबाज़ खां के नेतृत्व में मेवाड़ भेजा। इस बार भी शाहबाज़ खां 6-7 महीनों तक मेवाड़ में रहा और मेवाड़ पर अनेक आक्रमण किए, परन्तु महाराणा प्रताप ने सभी आक्रमणों का वीरतापूर्वक सामना किया और शाहबाज़ खां को खाली हाथ लौटना पड़ा।
अकबर ने 6ठा सैन्य अभियान फिर से शाहबाज़ खां के नेतृत्व में मेवाड़ भेजा। इस बार भी शाहबाज़ खां 7-8 महीनों तक मेवाड़ व मेवाड़ के आसपास रहा। उसने कई मुगल थाने बिठाए, परन्तु अपने मुख्य उद्देश्य में वह सफल नहीं हो पाया और अकबर ने उसको मेवाड़ अभियान से हटा दिया।
अकबर ने 7वां बड़ा सैन्य अभियान अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना के नेतृत्व में 1580 ई. में मेवाड़ भेजा, परन्तु इस बार मुगलों की बड़ी फ़ज़ीहत हुई। कुँवर अमरसिंह ने रहीम की बेगमों को बंदी बनाकर महाराणा प्रताप के समक्ष पेश किया और महाराणा ने क्षात्र धर्म का पालन कर उनको ससम्मान लौटा दिया।
अकबर ने मेवाड़ के विरुद्ध 8वां बड़ा सैन्य अभियान 1584 ई. में आमेर के राजा मानसिंह के काका जगन्नाथ कछवाहा के नेतृत्व में मेवाड़ भेजा। जगन्नाथ कछवाहा 2 वर्ष तक मेवाड़ में रहे। इस दौरान महाराणा प्रताप व उनके बीच कई बार छापामार लड़ाइयां हुईं और हर बार जगन्नाथ कछवाहा को निराशा हाथ लगी। थक-हारकर उन्हें भी लौटना पड़ा।
मेवाड़ के विरुद्ध अकबर का 9वां बड़ा सैन्य अभियान उसके स्वयं के नेतृत्व में था, जब वह महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध 1598 ई. में मेवाड़ आया। अकबर की ये चढ़ाई महाराणा अमरसिंह ने निष्फल कर दी।
मेवाड़ के विरुद्ध अकबर के 10वें सैन्य अभियान हेतु 1600 ई. में शहज़ादे सलीम व राजा मानसिंह कछवाहा को मेवाड़ भेजा गया, परन्तु इस बार सलीम की सेना को महाराणा अमरसिंह ने मालपुरा तक खदेड़कर उसकी बड़ी फ़ज़ीहत की।
मेवाड़ के विरुद्ध अकबर के 11वें सैन्य अभियान का नेतृत्व भी दोबारा सलीम को मिला, परन्तु 1603 ई. का ये सैन्य अभियान सलीम की उदासीनता के कारण मेवाड़ तक पहुंचा ही नहीं।
मेवाड़ के विरुद्ध अकबर का 12वां और अंतिम सैन्य अभियान खुसरो के नेतृत्व में तैयार किया गया, जो कि अकबर की मृत्यु के कारण रद्द हो गया। निसंदेह, मेवाड़ के स्वाभिमान, वीरता, शौर्य और मातृभूमि प्रेम के आगे अकबर अपनी ख्वाहिश मन में ही लेकर इस संसार से विदा हो गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)