मेवाड़ महाराणा अमरसिंह (भाग – 6)

1597 ई. में मेवाड़ के सामन्त रुपनगर (देसूरी) के ठाकुर देवराज सिंह का देहान्त हुआ। ठाकुर वीरमदेव रुपनगर की गद्दी पर बैठे। महाराणा अमरसिंह ने मेवाड़ को सुदृढ़ करने के प्रयास करने के बाद मेवाड़ के बाहर तैनात मुगल थानों पर आक्रमण करना शुरु कर दिया। महाराणा ने गुजरात, सिरोंज और मालपुरा पर आक्रमण करके मुगल थानों को लूट लिया।

1598 ई. में अकबर ने अपनी राजधानी लाहौर से आगरा स्थानांतरित कर दी। अकबर को दक्षिण में चढ़ाई करने के लिए जाना था, परन्तु उसके पहले वह महाराणा अमरसिंह को परास्त करना चाहता था, क्योंकि महाराणा द्वारा मुगल अधीन प्रदेशों पर आक्रमण की ख़बर उस तक पहुंच चुकी थी।

अकबर ने खुद मुगल फौज की कमान अपने हाथों में ली और मेवाड़ फतह करने के इरादे से अजमेर पहुंचा। वहां कुछ समय रुककर मेवाड़ में प्रवेश किया। अकबर ने इस अभियान का नेतृत्व स्वयं इसलिए किया, क्योंकि उसे लगा कि जो कार्य वह तीस वर्षों में ना कर सका (1567 ई. – 97 ई.), उसे वह महाराणा अमरसिंह के समय में पूरा करे।

अकबर अपने पूरे जीवनकाल में 3 बार मेवाड़ आया :- १) 1567 ई. में महाराणा उदयसिंह के समय २) 1576 ई. में महाराणा प्रताप के समय ३) 1598 ई. में महाराणा अमरसिंह के समय। “या धरती है रणबांकुरा री, मुगलां रै आंख्यां में खटकै। अकबर करै चढाई तीसरी, पण राणो अमर राज करै बेखटकै।। अकबर मेवाड़ में जगह-जगह मुगल थाने बिठाता हुआ आगे बढ़ता रहा।

महाराणा अमरसिंह जी

महाराणा अमरसिंह इस समय उदयपुर के महलों में थे। महाराणा ने फौरन उदयपुर के महलों को खाली करवाकर वहां की प्रजा व समस्त सैनिकों के साथ पहाड़ियों में प्रवेश किया। अकबर मुगल थाने बिठाता हुआ उदयपुर पहुंचा, जहां उसे सिवाय खाली पड़े महलों के कुछ हाथ न लगा। महाराणा अमरसिंह अपने पिता के समय से ही कईं छापामार लड़ाईयाँ लड़ चुके थे, इसलिए वे मेवाड़ के पहाड़ी मार्गों से अच्छी तरह परिचित थे।

प्रजा की सुरक्षा तय करने के पश्चात् महाराणा अमरसिंह मेवाड़ी फौज और भीलों की फौजी टुकड़ियों के साथ पहाड़ियों से निकले और उदयपुर के अलावा जितने भी मुगल थाने अकबर ने बिठाए, उन सभी पर तेजी से आक्रमण करते हुए एक हफ्ते के अन्दर सारे मुगल थाने उखाड़ फेंके।

अकबर उदयपुर में था, तब उसे खबर मिली की दक्षिण भारत में मुगलों के खिलाफ गद्र ने तेजी पकड़ ली, जिसके चलते अकबर ने उदयपुर में मुगल थाना बिठाकर दक्षिण में कूच किया। महाराणा अमरसिंह ने उदयपुर के महलों में तैनात मुगलों को मार-भगाकर अधिकार स्थापित किया। इस घटना के बाद अकबर ने मेवाड़ पर फौजें जरुर भेजीं, लेकिन खुद जीते-जी कभी मेवाड़ नहीं आया।

इस घटना को वीरविनोद के लेखक कविराजा श्यामलदास इस तरह लिखते हैं कि “महाराणा अमरसिंह का जोर-शोर बादशाह ने बहुत दिनों तक सुना, तो मेवाड़ पर चढाई की। महाराणा भी सामना करने की तैयारी में मशगूल हुए। पहिले बादशाह ने फौज भेजी और फिर ख़ुद उदयपुर की तरफ चला। महाराणा ने बादशाही फौज पर कई बार हमले किए और बहुत से बादशाही परगने लूटकर पहाड़ों में चले आए। बादशाही फौज के काबू में महाराणा नहीं आए।”

1599 ई. में अकबर के बेटे मुराद की 29 वर्ष की आयु में नशे की लत से मृत्यु हुई। इसी वर्ष महाराणा प्रताप से लगातार युद्ध करने वाले शाहबाज़ खां की बीमारी के चलते अजमेर में मृत्यु हो गई। इसी वर्ष अकबर ने राजा मानसिंह कछवाहा के बेटे जगतसिंह को बंगाल अभियान में भेजा, जहां जगतसिंह का देहांत हो गया।

जगतसिंह के पुत्र महासिंह हुए। महासिंह का विवाह मेवाड़ के शक्तिसिंह जी की पुत्री दमियन्ती बाई से हुआ। मेवाड़ के भाण शक्तावत का विवाह जोधपुर महाराजा सूरसिंह की बहन राजकंवर बाई से हुआ। इन्हीं दिनों शक्तिसिंह जी की बेटी मनोरथ दे का विवाह जोधपुर महाराजा सूरसिंह से हुआ।

राजनगर के पास की पहाड़ियों के मध्य होकर गोमती नदी गुजरती थी। महाराणा अमरसिंह ने वहां एक विशाल तालाब बनवाने का विचार कर एक बाँध बनवाना शुरू किया था। परंतु ये बाँध नदी के वेग के कारण टिक न सका।

बाद में महाराणा अमरसिंह के प्रपौत्र महाराणा राजसिंह ने इसी स्थान पर राजसमन्द झील बनवाई थी। “अमर राण इँहि आइके, किन्नौ हौ कमठान। परि सरिता पय पूर तें, बन्ध्यो नहीं बंधान।।”

एक जनश्रुति के अनुसार महाराणा अमरसिंह ने स्थानीय निवासियों के लिए जल की समस्या को दूर करने हेतु उदयपुर के पास तुला मारूवास कुम्भलगढ़ रोड़ पर एक तालाब बनवाकर उसका नाम अमरचंदिया रखा।

अमरचंदिया तालाब

ग्रंथ राणा रासो में लिखा है कि “राणा अमरसिंह का शरीर ऊंचा था। वह आजानबाहु था। वीर अमर को देखकर शत्रु इस प्रकार दब जाते थे, जैसे सिंह को देखकर मृग। वह ब्राम्हणों के दुःख दारिद्र्य का नाशक था। तैंतीस कोटि देवताओं में वह गणेश के समान मनुष्यों में वरेण्य था।”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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