मेवाड़ महाराणा अमरसिंह (भाग – 4)

जनवरी, 1597 ई. में महाराणा अमरसिंह का राजतिलक मेवाड़ की राजधानी चावंड में सम्पन्न हुआ। राजतिलक के समय महाराणा अमरसिंह की आयु 37 वर्ष थी। पिछली कई पीढ़ियों से मेवाड़ में उत्तराधिकार संघर्ष चला आ रहा था, जो महाराणा अमरसिंह के राज्याभिषेक के समय नहीं हुआ। उनके किसी भी भाई ने गद्दी का कोई दावा नहीं किया।

महाराणा अमरसिंह के राज्याभिषेक के बारे में राणा रासो ग्रंथ में लिखा है कि “पृथ्वीपति राजराजेश्वर महाराणा अमरसिंह के सिंहासनारूढ़ होने पर हिंदुओं के हृदय में सुख हुआ और यवन कांप उठे, यवनों के घरों में दुःख ने स्थान जमा लिया। पृथ्वी पुनः सुख और प्रसन्नता का अनुभव करने लगी।”

महाराणा अमरसिंह के राज्याभिषेक के समय मेवाड़ की स्थिति :- इस समय चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ को छोड़कर शेष समस्त मेवाड़ पर मेवाड़ी पताका फहरा रही थी। 1582 ई. में शुरू हुए विजय अभियान के बाद मेवाड़ ने किसी पराजय का सामना नहीं किया।

1588 ई. से 1597 ई. तक तो कोई बड़ी लड़ाई भी नहीं हुई। इस समयकाल का महाराणा प्रताप ने सदुपयोग किया और मेवाड़ को हर दृष्टि से सुदृढ़ किया। मुगल थानों पर आक्रमण, सूरत की छावनी पर आक्रमण व मालवा आदि क्षेत्रों पर मेवाड़ी फ़ौजों के धावों से धन संपदा भी अच्छी मात्रा में हाथ लगी।

इसका नतीजा ये हुआ कि महाराणा अमरसिंह के राज्याभिषेक के समय मेवाड़ की सेना में सैंकड़ों हाथी, 16 हज़ार घुड़सवार व 40 हज़ार पैदल सिपाही हो गए। महाराणा अमरसिंह ने अपनी फ़ौज का बेहतर संचालन किया। मेवाड़ के दुर्गों में जगह-जगह आवश्यक फ़ौजें तैनात की गईं।

ग्रंथ वीरविनोद में लिखा है कि “महाराणा अमरसिंह ने गद्दी पर बैठने के वक़्त से ही तलवार से लड़ने के सिवाय दूसरे सब काम मुल्तवी रखे।” वीरविनोद का यह कथन उचित नहीं है, क्योंकि महाराणा अमरसिंह गद्दी पर बैठते ही मुगलों पर बिना विचारे नहीं टूट पड़े थे। उन्होंने मुगलों से होने वाले युद्धों से पहले कई आवश्यक कार्य सम्पन्न किए।

महाराणा अमरसिंह द्वारा राजगद्दी पर बैठने के बाद किए गए महत्वपूर्ण कार्य :- महाराणा ने मेवाड़ के कुछ किलों व थानों, उदयपुर के राजमहल वगैरह को सुदृढ़ बनाया। महाराणा अमरसिंह ने कुम्भलगढ़ क्षेत्र में कुछ उजड़े हुए कस्बे और सायरा नामक गाँव फिर से बसाये।

महाराणा ने जहांजपुर क्षेत्र में अपने नाम से अमरगढ़ दुर्ग बनवाया, जो कि पूर्व में शाही प्रदेश के निकट पड़ता था। जैसी तैयारी चल रही थी, उससे लग रहा था कि महाराणा अमरसिंह केवल सुरक्षात्मक ही नहीं, आक्रामक रणनीति भी अपनाने वाले हैं।

अमरगढ़

महाराणा अमरसिंह ने सामन्तों की दो श्रेणियां बनाई :- उमराव और सरदार। महाराणा ने यह परम्परा तोड़ दी कि एक सामन्त की जागीर सदा उसी की रहेगी। जागीरें वंश परम्परा के अनुसार ना देकर, सामन्तों के दायित्व के अनुसार दी गई। ऐसे मौके भी आए जब किसी एक सामंत के देहांत के बाद या उसके द्वारा उचित कार्य न करने के कारण वह जागीर उसके उत्तराधिकारी को न देकर किसी अन्य योग्य सामंत को दी गई।

मेवाड़ के बेगूं, रतनगढ़, बेदला, देलवाड़ा, बदनोर आदि ऐसे ठिकाने थे, जो महाराणा अमरसिंह ने एक सामंत से लेकर दूसरे सामंत को कई बार दिए। इसका परिणाम ये हुआ कि सामंत अपने स्वामी के प्रति अधिक आश्रित हुए और सेवा की भावना को बल मिला। सामन्तों को लगने लगा कि दायित्य-हीनता का परिणाम जागीर में क्षति हो सकता है।

महाराणा अमरसिंह ने बाहर से नए हथियार वगैरह खरीदे और स्थानीय तौर पर जो हथियार बन सकते थे, वो मेवाड़ में ही बनवाए। महाराणा ने गोडवाड़ व मुलतान से कुछ तोपचियों को बुलवाया। महाराणा ने हरिदास झाला को प्रधान सेनापति नियुक्त किया। महाराणा ने भीलों से अच्छे व्यवहार बनाये रखे। भीलों ने महाराणा अमरसिंह का साथ उसी प्रकार दिया, जिस प्रकार महाराणा प्रताप का साथ दिया था।

हरिदास झाला

महाराणा अमरसिंह के समय पानरवा ठिकाने के राणा पूंजा वृद्ध हो चुके थे, इसलिए भील सेना का नेतृत्व राणा पूंजा के पुत्र राणा रामा ने किया। महाराणा अमरसिंह ने भूमि बंदोबस्त पर भी ध्यान दिया। कृषि भूमि का प्रबन्ध फिर से कराकर नई दरों पर लगान निर्धारित किया गया।

महाराणा अमरसिंह ने दरबारी परम्परा और वेशभूषा में बदलाव किए। उन्होंने अपने नाम से एक विशेष पगड़ी प्रचलित की, जो ‘अमरशाही पगड़ी’ के नाम से जानी गई और पीढ़ियों तक इस तरह की पगड़ी पहनी गई। हालांकि जो सामन्त मेवाड़ के बाहर से आए हुए थे, उन्हें अपनी इच्छा से पगड़ी पहनने की छूट दी गई।

महाराणा अमरसिंह ने विद्वानों को आश्रय देने में कोई कमी न रखी। महाराणा की छत्रछाया में रहते हुए पंडित जीवधर ने ‘अमरसार’ नामक ग्रन्थ लिखा। महाराणा अमरसिंह ने ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्धित ‘अमरभूषण’ ग्रन्थ भी लिखवाया। महाराणा प्रताप के समकालीन प्रकांड विद्वान पंडित चक्रपाणि मिश्र के पुत्र कल्याण मिश्र को महाराणा अमरसिंह ने अपना विश्वासपात्र बनाया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!