1677-1678 ई. की घटनाएं :- जिंजी प्रदेश के दक्षिण में शेर खां लोदी की जागीर थी। शेर खां से किसी ने कह दिया कि शिवाजी की फ़ौज कुछ भी नहीं है। 26 जून को शेर खां छत्रपति शिवाजी महाराज की फौज को रोकने के लिए 8 हज़ार डरपोक और निकम्मे सिपाहियों को लेकर सामना करने गया। छत्रपति की भारी भरकम फ़ौज तटस्थ खड़ी रही। उनका ऐसा हौंसला देखकर शेर खां के कदम रुक गए और पीछे मुड़ गया।
फिर छत्रपति शिवाजी महाराज ने फ़ौज को आक्रमण का आदेश दिया, तो शेर खां तिरुवड़ी के किले में जाकर छिप गया। कुछ समय बाद तिरुवड़ी के किले से चुपके से फरार होकर वह बोनगिरपट्टन नामक एक छोटे किले में घुस गया। उसके 500 घोड़े और बहुत सा सामान मराठों ने छीन लिया।
5 जुलाई को शेर खां ने सन्धि करते हुए अपनी जागीर छत्रपति को दे दी और छत्रपति ने एक लाख रुपए के बदले जागीर छोड़ने की बात कही। शेर खां ने अपने बेटे इब्राहिम खां को छत्रपति शिवाजी महाराज के अधीन कर दिया। 12 जुलाई को छत्रपति ने अपनी फ़ौज सहित तिरुमलवाड़ी में शिविर जमाया।
यहां से 10 मील दक्षिण में उनके सौतेले भाई व्यंकोजी की राजधानी तंजोर थी। छत्रपति द्वारा संदेश पहुंचाने के बाद 15 जुलाई को व्यंकोजी 2000 घुड़सवारों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज से मिलने तिरुमलवाड़ी आए। छत्रपति के पिता शाहजी ने अपने देहांत से पहले कर्नाटक की जागीर में सम्पत्ति आदि सब कुछ व्यंकोजी को सौंप दिया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने उस सम्पत्ति में से तीन चौथाई हिस्से का दावा किया। व्यंकोजी इस बात पर सहमत नहीं हुए, हालांकि उन्होंने कहा कुछ नहीं। शिविर से फरार होकर व्यंकोजी नदी में कूद पड़े और नदी पार करके 23 जुलाई को अपने क्षेत्र में पहुंचे। व्यंकोजी के भागने पर छत्रपति कहने लगे कि वह भागा क्यों, क्या हम उसे पकड़ लेते ? छोटा है पर उसने तो बुद्धि भी छोटी दिखाई।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने कोलेरूण के उत्तर में शाहजी की सम्पूर्ण जागीर पर कब्ज़ा कर लिया। 27 जुलाई को वे तिरुमलवाड़ी से रवाना हुए और सितंबर में आरणी किले पर कब्ज़ा कर लिया। नवम्बर में छत्रपति शिवाजी महाराज एक बड़ी फौज को कर्नाटक में छोड़कर मुख्य पदाधिकारियों की नियुक्ति करके शेष फौज सहित अपने राज्य में लौट आए।
व्यंकोजी ने 14 हज़ार की सेना लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना के सेनापति शांताजी, जो कि 12 हज़ार की सेना सहित कर्नाटक में थे, उन पर आक्रमण कर दिया और शांताजी को पीछे हटा दिया। फिर उचित समय आने पर शांताजी ने पुनः व्यंकोजी की सेना को पीछे हटाया। इस प्रकार की लड़ाइयों की खबर सुनकर छत्रपति ने व्यंकोजी से सन्धि कर ली।
सन्धि के तहत व्यंकोजी ने 6 लाख रुपए छत्रपति को दिए। बदले में छत्रपति ने कर्नाटक के जिंजी और वेलूर प्रदेश को छोड़कर शेष हिस्सा व्यंकोजी को लौटा दिया। सन्धि के बाद हम्बीरराव शेष फ़ौज सहित महाराष्ट्र लौट आए। अब कर्नाटक में दीवान रघुनाथ हनुमन्ते रह गए थे, जिन्होंने छत्रपति की सलाह से कर्नाटक के ही लोगों की 10 हज़ार की फ़ौज बनाई।
अपने राज्य में लौट जाने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने गदग और कोपल के किलों पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। फिर 1678 ई. में उन्होंने वेलारी, चितलदुर्ग आदि किले भी जीत लिए। इसी वर्ष छत्रपति ने शिवनेर किले पर आक्रमण किया, पर इस लड़ाई में किलेदार अब्दुल अज़ीज़ विजयी रहा।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने बेटे शम्भाजी को किसी कुसूर पर पन्हाला किले में कैद करके रखा था, जहां से 13 दिसंबर, 1678 ई. को वे भाग निकले और दिलेर खां से जा मिले। दिलेर खां ने खुशी से ये जानकारी औरंगज़ेब तक पहुंचाई, तो औरंगजेब ने शम्भाजी को सात हजार की मनसबदारी और राजा की उपाधि दे दी। दिलेर खां और शंभाजी ने मिलकर छत्रपति के एक किले भूपालगढ़ को जीत लिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)