1671 ई. में शिवाजी महाराज ने 20,000 घुड़सवारों व पैदल फौज के साथ चढाई करके साल्हेर दुर्ग को घेर लिया। साल्हेर दुर्ग का किलेदार फतेहउल्ला खां कत्ल हुआ और किला शिवाजी महाराज के कब्जे में आया। शिवाजी महाराज ने चौरागढ़, तालुलगढ़ वगैरह दुर्ग घेरकर विजय प्राप्त की।
इन्हीं दिनों राजा चम्पतराय बुन्देला के पुत्र वीरवर छत्रसाल जी बुन्देला शिवाजी महाराज से मिलने राजगढ़ आए। ये पहले राजा जयसिंह के कहने पर औरंगजेब के पास चले गए थे, पर फिर बादशाही खिदमत छोड़कर शिवाजी महाराज से मिलने आए।
शिवाजी महाराज द्वारा सूरत में दोबारा लूटमार व बगलाना में लूटमार करने के कारण दक्षिण में महाबत खां को भेजा गया। दिलेर खां, बहादुर खां, दाऊद खां, अमरसिंह चन्दावत वगैरह सिपहसालारों को भी महाबत खां की कमान में भेजा गया।
शिवाजी महाराज ने धोडप का किला घेर लिया, पर किलेदार मुहम्मद जमान ने किले पर मराठों का कब्जा नहीं होने दिया। दाऊद खां ने हाटगढ़ के करीब मराठों पर हमला कर दिया, जिससे 700 मराठे काम आए। दाऊद खां ने अहिवन्त का किला घेरकर मराठों को पराजित किया और किले पर फतह हासिल की।
इस लड़ाई में महाबत खां ने भी दाऊद खां की मदद की, पर दुर्ग जीतने का पूरा श्रेय दाऊद खां ले गया, जिस वजह से महाबत खां नाराज होकर नासिक चला गया। दिलेर खां ने फिर से पूना वगैरह बहुत से इलाके मराठों से छीन लिए। दिलेर खां ने पूना में 9 वर्ष से बड़े लोगों की हत्या करवाई।
जनवरी, 1672 ई. में शिवाजी महाराज की सेना ने साल्हेर दुर्ग की घेराबंदी करने वाली मुगल सेना पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में इखलास खां, अमरसिंह चन्दावत, अमरसिंह का बेटा मुह्कम सिंह वगैरह कुल 30 सिपहसालार मारे गए। फिर शिवाजी महाराज की सेना ने मुल्हेर दुर्ग पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की।
बहादुर खां दक्षिण से बिना कामयाबी के लौट गया। इसके कुछ महीने बाद मुअज्जम भी दक्षिण छोड़कर चला गया। औरंगज़ेब भी इन दिनों अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त हो गया।
5 जून, 1672 ई. को शिवाजी महाराज ने मोरो त्रिम्बक पिंगले को भारी फौज के साथ जौहर के किले पर हमला करने भेजा, जहां किला फतह हुआ और विक्रम शाह पराजित हुए। मराठों ने किले से 17 लाख का धन लूटा।
फिर शिवाजी महाराज ने मोरो पंत त्रिम्बक को 15 हज़ार सवारों समेत रामनगर भेजा। मोरो पंत ने रामनगर पर विजय प्राप्त की। मोरो पंत ने सूरत के किलेदार से 4 लाख के धन सहित हाजिर होने का खत लिखा। किलेदार ने 60 हज़ार का धन देना ही स्वीकार किया।
जुलाई, 1672 ई. में मोरो पंत ने नासिक शहर को लूट लिया। मोरो पंत ने उत्तरी नासिक में एक मुगल थानेदार सिद्दी हलाल को पराजित किया। शिवाजी महाराज ने अपनी भारी फौज रामनगर में जमा की। वहां से एक फौज बरार और तेलंगाना को लूटने भेजी गई।
एक मराठा फौज ने अन्तुर के इलाके में बादशाही सिपहसालार सुजान सिंह बुन्देला की फौजी टुकड़ी पर हमला कर दिया, पर मराठों के बहुत से घोड़े कैद कर लिए गए। औरंगाबाद के पास 750 मराठों का मुकाबला अचानक शुभकर्ण बुन्देला के नेतृत्व में आई मुगल सेना से हो गया। शुभकर्ण बुन्देला के पुत्र दलपत राव जख्मी हुए। 400 मराठे काम आए और शुभकर्ण बुन्देला ने विजय हासिल की।
1673 ई. में शिवाजी महाराज ने पूना के एक किले शिवनेर पर आक्रमण किया। इस किले का कोई सामरिक या राजनीतिक महत्व नहीं था, इस पर हमला इसलिए किया गया, क्योंकि ये शिवाजी महाराज का जन्म स्थान था। इस किले का किलेदार अब्दुल अज़ीज खां था।
शिवाजी महाराज ने अब्दुल अज़ीज से कहा कि मैं आपको इस किले के बदले अपार धन संपदा, स्वर्ण आदि दे सकता हूँ। अब्दुल अज़ीज ने शिवाजी महाराज से कुछ धन ले लिया, पर किला देने के दिन उसने चुपके से ये जानकारी बहादुर खां को बता दी। जिससे वहां भारी संख्या में मुगल आ पहुंचे और शिवाजी महाराज को कईं मराठों की जान का नुकसान उठाकर लौटना पड़ा।
इन्हीं दिनों बीजापुर के सुल्तान अली आदिलशाह द्वितीय की मृत्यु हो गई और चार वर्षीय बालक सिकन्दर को गद्दी पर बिठाया गया, जिससे बीजापुर सल्तनत कमजोर हो गई और शिवाजी महाराज को फायदा हुआ।
6 मार्च, 1673 ई. को शिवाजी महाराज ने कोंडाजी को 60 चुने हुए सिपाही देकर पन्हाला दुर्ग पर हमला करने भेजा। पहाड़ की बड़ी मुश्किल चढ़ाई को भी ये सिपाही पार कर गए और अचानक ऐसा आक्रमण किया कि किलेवालों को सम्भलने का मौका नहीं मिला। किलेदार को कोंडाजी ने खुद अपनी तलवार से मारा।
सितम्बर, 1673 ई. में शिवाजी महाराज ने पारली और सतारा दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया। बीजापुर के इलाकों को लूटने के लिए शिवाजी महाराज ने फौज समेत सेनापति प्रतापराव को भेजा। प्रतापराव ने हुबली वगैरह बहुत से इलाके लूट लिए, पर बीजापुर अफसर बहलोल खां से लड़ाई में बहुत से मराठे वीरगति को प्राप्त हुए। बहलोल खां ने लगातार मराठा फौज को पराजित किया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)