छत्रपति शिवाजी महाराज भाग – 9

11 जुलाई, 1665 ई. को आमेर के राजा जयसिंह कछवाहा व शिवाजी महाराज के बीच सन्धि हुई। 20 नवम्बर, 1665 ई. को राजा जयसिंह बीजापुर पर चढ़ाई करने के लिए रवाना हुए। राजा जयसिंह के कहे अनुसार शिवाजी महाराज दो हज़ार घुड़सवार व सात हज़ार पैदल फ़ौज के साथ इस लड़ाई में शामिल हुए।

फल्टन, थाथवड़ा, खाटाव, मंगलविडे आदि बीजापुरी किलों का राज शिवाजी महाराज के कहने मात्र से ही राजा जयसिंह को मिल गया। फिर बीजापुरी फ़ौज से सामना हुआ। शिवाजी महाराज के सौतेले भाई व्यंकोजी इस समय बीजापुरी फ़ौज के साथ थे।

एक दिन शिवाजी महाराज और राजा जयसिंह के बेटे कीरतसिंह कछवाहा मुगलों की आगे की टुकड़ी लेकर बीजापुरी फ़ौज से भिड़ गए और इस फ़ौज को बहादुरी से भेदते हुए आगे तक निकल गए। 29 दिसम्बर, 1665 ई. को राजा जयसिंह बीजापुर किले से दस मील की दूरी तक जा पहुंचे।

वहां जाकर उन्होंने बीजापुर के किले की सुरक्षा व्यवस्था देखी, तो उनके साथ-साथ उनकी समस्त फ़ौज भी हैरान रह गई। किले वालों ने बीजापुर किले से 7 मील तक की दूरी पर सारे पेड़ काट दिए थे, तालाब सुखा दिए थे और गांवों के खेत उजाड़ दिए थे। साथ ही बीजापुरी फ़ौज का एक दल पीछे जाकर बादशाही इलाकों में लूटपाट करने लगा।

छत्रपति शिवाजी महाराज

इस प्रकार बीजापुर पर यह चढ़ाई असफल साबित हुई और राजा जयसिंह 5 जनवरी, 1666 ई. को सेना सहित पुनः पीछे हट गए और परेंडा किले तक पहुंचे। राजा जयसिंह की फ़ौज में शामिल दिलेर खां आदि मुसलमानों ने राजा जयसिंह पर काफी क्रोध किया।

दिलेर खां ने राजा जयसिंह से कहा कि “शिवाजी ने तो कहा था कि आगे बढ़कर चढ़ाई करने से ये किला 10 दिन में हाथ आ जाएगा, पर ऐसा तो नहीं हुआ। हमें शिवाजी को मार डालना चाहिए, क्योंकि शिवाजी के विश्वासघात से ही यह किला नहीं जीता जा सका, जरूर शिवाजी ने पहले ही बीजापुर वालों को सतर्क कर दिया था।”

राजा जयसिंह ने मुसलमानों का क्रोध देखते हुए सोचा कि अब शिवाजी महाराज के प्राण बचाना कठिन है। इसलिए राजा जयसिंह ने 11 जनवरी, 1665 ई. को शिवाजी महाराज को फ़ौज सहित बीजापुर के दक्षिण-पश्चिम के क्षेत्र पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया। जब मुसलमान अफ़सरों ने राजा जयसिंह से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि ऐसा करने से बीजापुरी शत्रुओं का बंटवारा हो जाएगा और मुगल सेना पर भार कम पड़ेगा।

शिवाजी महाराज पन्हाला किले के पास पहुँचे और अकस्मात किले पर धावा बोल दिया, लेकिन किले में शत्रु तैयार बैठे थे। इस लड़ाई में शिवाजी महाराज के एक हज़ार सैनिक काम आए। 16 जनवरी को जब सूर्योदय हुआ, तो पहाड़ पर चढ़ते हुए मराठों पर शत्रुओं ने गोलियों और पत्थरों की बौछारें कर दी।

फिर शिवाजी महाराज ने सेना को पीछे हटने का आदेश दिया और खेलना के किले में लौट गए। मराठा फ़ौज में शिवाजी महाराज के बाद नेताजी पालकर ही सबसे प्रधान सरदार थे। बीजापुर से 4 लाख हूण मिलने पर वे अचानक मुगलों के ही इलाके लूटने लगे।

मामला हाथ से निकलता देखकर राजा जयसिंह ने 20 मार्च, 1666 ई. को सेनापति नेताजी पालकर को 5 हजार की मनसबदारी, एक बड़ी जागीर व 38000 रुपए देकर पुनः अपने पक्ष में कर लिया। चारों ओर से विपत्ति आने पर राजा जयसिंह ने औरंगज़ेब को पत्र लिखकर कहा कि आप शिवाजी से भेंट करने के लिए उनको राजधानी में बुला लीजिए, ताकि मैं दक्षिण में निश्चिन्त रहकर अपना कार्य कर सकूं। औरंगज़ेब राजा जयसिंह की बात से सहमत हो गया।

छत्रपति शिवाजी महाराज

राजा जयसिंह ने शिवाजी महाराज को बहुत कुछ विश्वास दिलाया कि बादशाह आपका कोई अनिष्ट नहीं करेगा। मैंने अपने बड़े लड़के रामसिंह को कह दिया है। वह आपकी हर तरह की हिफ़ाज़त करेगा। दरबार में भी वह आपके साथ उपस्थित रहकर हर तरह की सुरक्षा व्यवस्था व कायदों का ध्यान रखेगा।

शिवाजी महाराज को औरंगज़ेब पर शंका अवश्य थी, इसलिए जाने से पहले उन्होंने अपने राज्य में सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ कर दी, ताकि उनके जाने के बाद भी राज्य भलीभांति चलता रहे। शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई जी राजप्रतिनिधि के रूप में सर्वोच्च पद पर रहीं।

5 मार्च, 1666 ई. को शिवाजी महाराज ने परिवारजनों से विदा ली और रायगढ़ दुर्ग से रवाना हुए। उनके साथ उनके पुत्र शम्भाजी, कुछ विश्वासपात्र मंत्री और एक हज़ार की फ़ौज भी रवाना हुई। राहखर्च हेतु शिवाजी महाराज को 1 लाख रुपए दक्षिण के ख़ज़ाने से पेशगी दिए गए।

शिवाजी महाराज जैसी प्रसिद्ध हस्ती ने औरंगाबाद में कदम रखे, तो वहां की जनता ने आगे बढ़कर उनके दर्शन किए, लेकिन वहां का मुगल अफसर सफ़शिकन खां शिवाजी महाराज के स्वागत के लिए नहीं आया। इस बात से शिवाजी महाराज को बुरा लगा और वे शहर के बीचोंबीच बने एक मकान में जा ठहरे। उन्होंने ऐसा दिखाया जैसे इस शहर का अफ़सर आदमी कहलाने के लायक भी नहीं है। फिर अपनी फ़ज़ीहत होती देखकर सफ़शिकन खां स्वागत के लिए आगे आया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. rasbihari ji Bhagvatachary
    July 6, 2021 / 12:52 am

    बहुत सुन्दर, सजीव इतिहास का वर्णन पढ़कर रोमांच होने लगता है। इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।

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