छत्रपति शिवाजी महाराज भाग – 4

1657 ई. के सितम्बर माह में शाहजहां की तबियत बिगड़ गई और उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हो गया। इस वर्ष औरंगज़ेब ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर ली, जिससे शिवाजी महाराज के लिए समस्या खड़ी हो गई। 1658 ई. में शिवाजी महाराज ने औरंगज़ेब को संकट के समय 500 घुड़सवार देने का वादा किया, लेकिन औरंगज़ेब को उन पर विश्वास नहीं हुआ।

औरंगज़ेब ने बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह को पत्र लिखा कि “इस मुल्क की हिफाज़त करना, शिवाजी ने कितने ही किलों पर चोरी से दख़ल कर लिया है। उसको उन सबसे हटा दो और उसको अपने मातहत रखना चाहो, तो उसको कर्नाटक में कोई जागीर दे दो, ताकि वो बादशाही मुल्क से अलग रहे और दख़ल न दे सके।”

शिवाजी महाराज ने उत्तराधिकार संघर्ष के मौके का फायदा उठाकर 1658-59 के बीच में अहमदनगर के बादशाही इलाकों को लूटा। उन्होंने कल्याण नगर, भिवंडी, सूरगढ़, बिरवाड़ी, तला, घोसालगढ़, सुधागढ़, कांगोरी आदि इलाकों पर कब्जा कर लिया।

शिवाजी महाराज ने कोलाबा का आधा भाग अबीसिनिआईयों से छीन लिया। इसी समय मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने भी अपने क्षेत्र में बगावत कर दी व मुगल इलाकों में लूटमार शुरु कर दी, जिससे बादशाही मुल्क दोनों ओर से बर्बाद होने लगा। इन्हीं दिनों औरंगजेब अपने पिता शाहजहां को कैद कर मुगल बादशाह बना।

1659 ई., 5 सितम्बर को राजगढ़ दुर्ग में शिवाजी महाराज की पहली पत्नी 26 वर्षीय सईबाई जी निम्बालकर का देहान्त हुआ। सईबाई जी निम्बालकर सम्भाजी को जन्म देने के बाद से लगातार बीमार रहने लगीं थी, जिससे इनका देहान्त हुआ। राजगढ़ दुर्ग में इनकी समाधि स्थित है। जीजाबाई जी ने सम्भाजी के लिए एक धाय की नियुक्ति कर दी। इस वर्ष शिवाजी महाराज के कुल किलों की संख्या 40 हो गई।

छत्रपति शिवाजी महाराज

20 नवम्बर, 1659 ई. – अफजल खां का वध :- बीजापुर की तरफ से अफजल खां को शिवाजी महाराज के खिलाफ भेजा गया। अफजल खां 10000 की फौज समेत रवाना हुआ। अफ़ज़ल खां ने सौगंध खाई कि “मैं घोड़े पर बैठे-बैठे ही शिवाजी को बांध कर लाऊंगा”।

शिवाजी महाराज और अफजल खां के बीच पत्र व्यवहार हुआ, जिसके तहत दोनों ने मिलकर समझौता करना स्वीकार किया। शिवाजी महाराज ने पेशवा और सेनापति नेताजी पालकर के नेतृत्व में 2 बड़ी फ़ौजों को प्रतापगढ़ के जंगलों में छिपे रहने का आदेश दिया। कृष्णजी भास्कर ने अफजल खां की योजना पहले ही शिवाजी महाराज को बता दी।

अफ़ज़ल खां के डेरे के निकट जाने के बाद शिवाजी महाराज ने संदेशा भिजवाकर कहलवाया कि “भेंट की जगह से सैयद बांदा को हटाना होगा।” फिर वैसा ही किया गया। शिवाजी महाराज भीतर गए, जहां दोनों पक्षों के 4-4 लोग थे। खुद नेता, 2-2 शरीर रक्षक और 1-1 ब्राम्हण दूत।

जब दोनों पक्षों में मुलाकात हुई, तब शिवाजी महाराज दिखने में शस्त्रहीन लग रहे थे, परन्तु अफ़ज़ल खां ने तलवार लटका रखी थी। शामियाने के बीच में चबूतरे के ऊपर अफ़ज़ल खां बैठा था। शिवाजी महाराज चबूतरे पर चढ़े। शिवाजी महाराज का कद अफ़ज़ल खां के कंधे तक ही पहुंचता था।

जब गले मिलने का वक्त आया तो अफजल खां ने बाएं हाथ से शिवाजी महाराज का गला जोर से दबाया और दाहिने हाथ से कटार निकालकर शिवाजी महाराज की बाई बगल में भोंक दी, लेकिन शिवाजी महाराज ने पहले ही अन्दर एक कवच पहन रखा था, जिससे अफजल खां का वार खाली गया।

शिवाजी महाराज ने बाघनखा से उसकी आँतें चीर डालीं और दूसरे हाथ से बिछवा निकालकर अफजल खां की बगल में घोंप दिया। अफ़ज़ल खां कराह उठा और चिल्लाकर कहने लगा कि “मार डाला, मार डाला, मुझको धोखा देकर मार डाला”।

अफ़ज़ल खां के वध का दृश्य

शिवाजी महाराज मंच से कूदकर अपने आदमियों की तरफ दौड़े। तभी सैयद बांदा ने हमला कर शिवाजी महाराज के तुरबन (पगड़ी) के 2 टुकड़े कर दिए। शिवाजी महाराज ने पहले ही पगड़ी के भीतर लोहे की एक टोपी पहन रखी थी, इसलिए सिर में घाव नहीं लगा। इतने में जीव महाला ने सैयद बांदा का एक हाथ काट दिया और अगले ही वार में सैयद बांदा कत्ल हुआ।

अफजल खां के आदमियों ने जख्मी अफजल खां को पालकी में बिठाया और ले जाने लगे, लेकिन शम्भूजी कावजी ने अनुचरों के पैरों पर चोट करके पालकी गिरा दी और अफजल खां का सिर काटकर शिवाजी महाराज के पास हाजिर हुए। शिवाजी महाराज ने प्रतापगढ़ किले में जाकर तोप चलाकर अपने सैनिकों को संकेत दिया, जिससे मोरो त्रिम्बक और नेताजी पालकर ने हजारों की फौज समेत बीजापुर की फौज को घेर लिया।

बीजापुरी फौज के कईं ऊँट, हाथी व 3000 सैनिक कत्ल हुए। शिवाजी महाराज की सेना ने 65 हाथी, 4000 घोड़े, कई ऊँट, 2000 कपड़ों के गट्ठर, 10 लाख का धन और जेवर लूट लिए। अफजल खां के 2 बेटे, 2 मददगार मराठा ज़मीदार और एक बड़े ओहदे का सिपहसालार कैद कर लिए गए।

अफ़ज़ल खां की स्त्रियां और उसका बड़ा बेटा फ़ज़ल खां भागने में सफल रहे। ये शिवाजी महाराज की अब तक की सबसे बड़ी विजय थी और इस विजय ने समूचे भारतवर्ष में शिवाजी महाराज का रुतबा फैला दिया। उन्होंने विजेताओं और वीरगति को प्राप्त होने वालों के परिवार वालों को धन, इनाम आदि दिए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!