छत्रपति शिवाजी महाराज (भाग – 6)

1663 ई. में जब शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खां की उंगलियां काट दी थी, उस समय जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह राठौड़ 10 हज़ार की फ़ौज सहित निकट क्षेत्र में ही थे, लेकिन उन्होंने शाइस्ता खां की कोई मदद नहीं की।

जब शाइस्ता खां महाराजा जसवंत सिंह जी से मिला, तो उनको ये ताना मारते हुए कहा कि “कल रात को जब दुश्मन हमको घेरे हुए थे, तब हमने समझा कि आप उनको रोकने गए होंगे और वहीं काम आ गए होंगे, तभी तो वे हमारे पास तक पहुंच सके, पर आप तो ज़िंदा ही हैं।”

1664 ई. – सूरत की लूट :- इस वर्ष जनवरी माह की शुरुआत में शाइस्ता खां का तबादला कर दिया गया और उसकी जगह शहज़ादे मुअज़्ज़म को भेजा गया। इस तबादले के मौके पर शिवाजी महाराज ने सूरत पर चढ़ाई कर दी। (सूरत की लूट की जानकारी यदुनाथ सरकार की पुस्तक से ली गई है)

उन दिनों व्यापार के महसूल की आमदनी और धन-दौलत के मामले में दिल्ली के अलावा और कोई शहर सूरत की टक्कर का नहीं था। इसके बावजूद सूरत की सुरक्षा व्यवस्था काफी कमज़ोर थी। सूरत के फ़ौज़दारों को 500 सैनिक रखने का वेतन मिलता था, लेकिन वे मुफ़्त वेतन लेकर कोई सिपाही नहीं रखते थे। यहां के व्यापारी लोग भी अपार धन संपदा रखते थे, लेकिन चौकीदार रखने में संकोच करते थे।

छत्रपति शिवाजी महाराज

सूरत के हाकिम का नाम इनायत खां था, जो कि स्वभाव से कायर था। सूरत में एक प्रसिद्ध व्यापारी रहता था, जिसकी उस ज़माने में कुल सम्पत्ति 80 लाख रुपए थी। 5 जनवरी, 1664 ई. को सूरत के लोगों ने सुना कि शिवाजी महाराज दक्षिण में 27 मील की दूरी तक आ चुके हैं और लगातार सूरत की तरफ बढ़ रहे हैं।

यह ख़बर सुनते ही सूरत में अफरा-तफरी मच गई। कई लोग शहर छोड़कर भागने की तैयारी करने लगे और जो अमीर लोग थे, वे धन का लालच देकर किले में शरण लेकर बैठ गए। लेकिन मुट्ठी भर यूरोपियन दुकानदारों ने साहस दिखाया। अंग्रेज, डच आदि भी शिवाजी महाराज का सामना करने के लिए तैयार हो गए। 210 सैनिक, 150 अंग्रेज और 60 चपरासी तैनात हो गए और तोपें आदि तैयार कर दी गई। अंग्रेजों का मुख्य अफसर सर जॉर्ज ऑक्सिण्डेन था, जो बड़ा बहादुर था।

शिवाजी महाराज 4000 की फौज समेत सूरत के करीब पहुंच गए। रास्ते में 2 राजा और जुड़ गए, जिससे शिवाजी महाराज की फौज 10 हज़ार हो गई। 6 जनवरी को शिवाजी महाराज ने सूरत की धरती पर कदम रखा और बुरहानपुर दरवाज़े के निकट स्थित एक बगीचे में डेरा डाला।

शिवाजी महाराज ने किले के बाहर पहुंचकर एक खत लिखवा के भेजा कि “सूरत के सबसे धनी व्यक्ति बहरजी बोहरा, हाजी सैयद बेग, हाजी कासिम और यहां का किलेदार मेरे पास हाजिर हो जावें तो ठीक, वर्ना पूरे सूरत को परिणाम भुगतना होगा।”

ख़त का कोई जवाब नहीं आने पर 4 दिनों तक सूरत को जमकर लुटा गया। कई मकान जला दिए गए। बहरजी बोहरा के मकान पर कोई पहरेदारी नहीं थी, उसके मकान को 3 दिन तक लुटा गया और फर्श तक खोद दिया गया। बाद में मकान जला दिया गया। इसी तरह मराठों ने महाजन सईद बेग के घर पर भी धावा बोला, लेकिन कुछ अंग्रेजों ने सईद बेग के घर पर तैनात मराठों को पराजित कर दिया और सईद बेग के घर की रक्षा का जिम्मा उठाया।

छत्रपति शिवाजी महाराज

इस बात से शिवाजी महाराज क्रोधित हुए और उन्होंने अंग्रेजी कोठी में एक संदेश भिजवाया और कहलवाया कि “3 लाख रुपए दो या सईद बेग के घर से पीछे हट जाओ, वरना अंग्रेजी कोठी पर धावा बोलेंगे और तुम्हारी कोठी धूल में मिला देंगे।”

सर जॉर्ज ऑक्सिण्डेन ने चालाकी से कुछ समय मांगा और 4 दिन बाद शिवाजी महाराज को कहलवाया कि “हमें आपकी दोनों में से कोई भी शर्त मंज़ूर नहीं है। आप जो कर सकते हों, करो, हम नहीं भागेंगे। जिस समय इच्छा हो कोठी पर हमला कर देना।”

शिवाजी महाराज ने विचार किया कि वे सूरत से एक करोड़ की अपार धन संपदा लूट चुके हैं और अब एक कोठी के लिए अंग्रेजों की तोपों से भिड़ना उचित नहीं होगा क्योंकि कई मराठे मारे जाएंगे।

सूरत के किले के किलेदार इनायत खां ने षड्यंत्र करके एक दूत के जरिए शिवाजी महाराज को मारने का प्रयास किया। शिवाजी महाराज ने दूत से कहा कि “तुम्हारा सर्दार एक औरत की तरह मुंह छुपा कर बैठा है। उसे लगता है कि मैं उसकी शर्तें मान लूंगा ?” दूत ने कहा “हमारे सर्दार औरत नहीं हैं। मुझे आपसे और भी कुछ कहना है।” ये कहकर दूत खंजर लेकर शिवाजी महाराज की तरफ लपका, तभी वह एक अंगरक्षक के हाथों मारा गया।

10 जनवरी को शिवाजी महाराज सूरत छोड़कर चले गए। 17 जनवरी को मुगल फौज सूरत पहुंची, तब जाकर इनायत खां अपने किले से बाहर निकला। इनायत खां पर शहर के लोग थूंकने लगे। शहर के लोगों ने अंग्रेजों की बड़ी तारीफ की, जिससे खुश होकर औरंगज़ेब ने अंग्रेज और डच व्यापारियों को भारत में आने वाले माल पर की चुंगी में एक प्रति सैंकड़े की सुविधा दी गई।

सूरत लूटने के बाद शिवाजी महाराज ने एक घोषणा की कि “हमारा मकसद सूरत के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ नहीं था, हमारा मकसद सिर्फ और सिर्फ औरंगजेब के खिलाफ था, जिसने हमारे ही देश में हमारे ही लोगों का कत्ल किया”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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