छत्रपति शिवाजी महाराज (भाग – 2)

1636 ई. में निजामशाही सल्तनत का अन्त हुआ। इसी वर्ष जुलाई-अक्टूबर में खान-ए-जमान ने शाहजी के खिलाफ चढाई की, हालांकि पूना में लूटने लायक कुछ न बचा था। इसी वर्ष अक्टूबर माह में शाहजी बीजापुर सल्तनत की सेवा में आए। शाहजी को चाकन से इन्दापुर तक की व शिरवाल की जागीर मिली। 1638 ई. में हिन्दू राजाओं का दमन करने के लिए शाहजी को कर्नाटक भेजा गया, जहाँ शाहजी ने हिन्दू राजाओं से हाथ मिला लिया।

14 मई, 1640 ई. को पूना के लाल महल में शिवाजी महाराज का सईबाई जी निम्बालकर से विवाह। ये शिवाजी महाराज की पहली पत्नी थीं। इनका जन्म 1633 ई. में हुआ। इनकी माता रेउ बाई थीं। इनके पिता फलटन के 15वें शासक मुधोजी राव नाइक निम्बालकर थे।

1642 ई. में शाहजी राजे भोसले ने 12 वर्षीय शिवाजी को पूना की जागीर दी। यदि शिवाजी का जन्म 1627 ई. माना जाता है, तो ये जागीर 1639 ई. में दी होगी। शिवाजी महाराज व उनके संरक्षक दादाजी कोंड देव ने पूना में मावलों को अपनी तरफ किया।

छत्रपति शिवाजी महाराज

1649 के आसपास दादाजी कोंड देव का देहान्त हो गया। शिवाजी महाराज द्वारा साम्राज्य विस्तार करने की खबर सुनकर बीजापुर सुल्तान कोई कदम उठाता, उसके पहले ही शिवाजी महाराज ने सुल्तान के मंत्रियों को घूस देकर मामले को रफा-दफा कर दिया। फिर बीजापुर का सुल्तान आदिलशाह बुरी तरह से बीमार हो गया, हालांकि इसकी मृत्यु 10 वर्ष बाद हुई थी। बीच के ये 10 वर्ष शिवाजी महाराज के पक्ष में रहे।

तोरण दुर्ग पर विजय :- शिवाजी महाराज ने बाजी पासलकर, येसाजी कंक व तानाजी मालुसरे को मावलों की फौज समेत तोरण दुर्ग पर अधिकार करने भेजा। तोरण दुर्ग पर अधिकार होने के बाद शिवाजी महाराज ने दुर्ग का नाम बदलकर प्रचण्डगढ़ रख दिया। तोरण दुर्ग से शिवाजी महाराज को 2 लाख हूण मिले।

राजगढ़ दुर्ग :- राजगढ़ महाराष्ट्र में स्थित एक ऐतिहासिक दुर्ग है। यह तोरण के दुर्ग से 6 मील दूर मोरबंद नामक पर्वतश्रंग पर स्थित है। राजगढ़ के दुर्ग को बनवाने के लिए शिवाजी महाराज को तोरण दुर्ग से प्राप्त गढ़े हुए खजाने से काफ़ी सहायता मिली थी।

चाकन दुर्ग :- चाकन दुर्ग फिरंगोजी नरसाळा के अधीन था। फिरंगोजी नरसाळा ने शिवाजी महाराज की अधीनता स्वीकार कर ली। कोंडना दुर्ग :- आदिलशाही अफसर को घूस देकर शिवाजी महाराज ने कोंडना दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

उत्तरी कोंकन में शिवाजी महाराज का प्रवेश :- शिवाजी महाराज ने अबाजी सोनदेव को फौज समेत भेजकर कल्याण और भिवंडी के किलों को लूट लिया। शिवाजी महाराज ने माहुली के किले को घेर लिया। कुछ ही महिनों में लगभग पूरा उत्तरी कोंकन शिवाजी महाराज के कब्जे में आ गया।

कोलाबा क्षेत्र में शिवाजी महाराज का प्रवेश :- सूरगढ़, बिरवाड़ी, ताला, घोसलगढ़, सुधागढ़, कांगोरी व रायगढ़ दुर्ग पर शिवाजी महाराज का अधिकार हो गया। शिवाजी महाराज ने कोलाबा व थाना के कई इलाकों पर भी अधिकार कर लिया।

शिवाजी महाराज ने एक फौज सिद्धियों के खिलाफ भेजी, लेकिन ये फौज पराजित हुई। इसके एवज में शिवाजी महाराज ने इस फौज का नेतृत्व करने वाले श्यामराज नीलकंठ रांझेकर को पेशवाई से हटाकर मोरो त्रिम्बक पिंगले को नियुक्त किया व रघुनाथ बल्लाल कोरडे को फौज समेत भेजकर अपना काम किया।

हिन्दू राजाओं से संपर्क स्थापित करने के संदेह में सेनानायक मुस्तफा खां ने शिवाजी महाराज के पिताजी शाहजी राजे भोसले को बंदी बना लिया। बंदी बनाने के पीछे एक कारण यह भी बताया जाता है कि बीजापुर का सुल्तान आदिलशाह शिवाजी महाराज की गतिविधियों से नाखुश था।

बीजापुर सुल्तान ने शिवाजी महाराज के खिलाफ 10 हज़ार की एक फौज बाजी श्यामराजे के नेतृत्व में कोंकन भेजी। बाजी श्यामराजे ने 3-4 दुर्गों पर छापे मारे, पर शिवाजी महाराज पहले ही वहाँ से निकल गए।

शिवाजी महाराज राजगढ़ दुर्ग पहुंचे, जहाँ से उन्होंने बाजी श्यामराजे की फौज पर हमला कर दिया। बाजी श्यामराजे की फौज को भारी नुकसान पहुंचा। बाजी श्यामराजे की फौज जिस रास्ते आई थी, पराजित होकर उसी रास्ते बीजापुर लौट गई।

छत्रपति शिवाजी महाराज

आदिलशाह ने शाहजी को मुक्त कर पुन: कर्नाटक भेजा। शाहजी को मुक्त करने की शर्त यह रखी गई कि शिवाजी महाराज अपनी गतिविधियों पर रोक लगाए। नतीजतन पितृभक्त शिवाजी महाराज ने 1654 ई. तक कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की।

शाहजी ने गोलकुंडा के सेनानायक मीर जुमला को परास्त किया। शिवाजी महाराज व सईबाई जी निम्बालकर की पुत्री का जन्म हुआ, जिनका नाम सखुबाई रखा गया। शिवाजी महाराज व सईबाई जी निम्बालकर की दूसरी पुत्री का जन्म हुआ, जिनका नाम रणुबाई रखा गया। रणुबाई का विवाह जाधव परिवार में हुआ था। शिवाजी महाराज ने पुतलाबाई पलकर से विवाह किया। इनकी कोई सन्तान नहीं हुई।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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