छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 ई. को शिवनेरी दुर्ग में हुआ। ये दुर्ग पूना/पुणे से उत्तर की तरफ़ जुन्नर नगर के पास स्थित है। कुछ इतिहासकारों द्वारा शिवाजी महाराज का जन्म 6 अप्रैल, 1627 ई. को होना बताया जाता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता शाहजी राजे भोसले थे। इनका जन्म 15 मार्च, 1594 ई. को हुआ। शाहजी का उत्कर्ष निजामशाही वज़ीर फतह खाँ के समय से प्रारंभ हुआ। 1630 ई. में शाहजी ने निजामशाही मुल्क को लूट लिया। कुछ माह बाद बीजापुरी फौज ने पूना को लूटकर जला दिया। निजामशाह की हत्या के बाद राज्य की संकटाकीर्ण परिस्थिति में मुगलों की नौकरी छोड़ शाहजी ने दस वर्षीय बालक मुर्तजाशाह द्वितीय को 1632 ई. में सिंहासन पर बिठाकर मुगलों से तीव्र संघर्ष किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई जी थीं। इनका जन्म 12 जनवरी, 1598 ई. को महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के सिंदखेड़ गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम लखोजी जाधव तथा माता का नाम महालसा बाई था। जीजाबाई जी का विवाह शाहजी के साथ कम उम्र में ही हो गया था। उन्होंने सदैव अपने पति का राजनीतिक कार्यों में साथ दिया।
जीजाबाई जी शिवाजी महाराज की माता होने के साथ-साथ उनकी मित्र, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत भी थीं। उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा हुआ था। उन्होंने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी धैर्य नहीं खोया।
माता जीजाबाई ने 6 पुत्रियाें व 2 पुत्रों को जन्म दिया। इनकी सभी पुत्रियों का देहान्त बचपन में ही हो गया। इनके 2 पुत्रों के नाम हैं :- १) शम्भूजी/सम्भाजी राजे भोसले :- ये शिवाजी राजे भोसले से 3-4 वर्ष बड़े थे। २) शिवाजी राजे भोसले।
शिवाजी महाराज का नामकरण :- माता जीजाबाई देवी शिवाई बाई की भक्त थीं, इसलिए उन्होंने देवी के नाम पर ही शिवाजी महाराज का नामकरण किया।
शिवाजी महाराज के दादाजी मालोजी राजे भोसले थे। इनका जन्म 1552 ई. में हुआ। इन्होंने अहमदनगर सल्तनत का साथ दिया। इनके छोटे भाई का नाम विठोजी था। मालोजी का देहान्त बीजापुर सल्तनत के खिलाफ लड़ते हुए हुआ। इनके देहान्त के अलग-अलग वर्ष बताए जाते हैं :- 1597 ई./1606 ई./1620 ई./1622 ई.।
तुकाबाई मोहिते :- ये शाहजी राजे भोसले की दूसरी पत्नी थीं। इनके पुत्र एकोजी/व्यंगोजी हुए। एकोजी/व्यंगोजी का जन्म 1629 ई. में हुआ, इन्होंने तंजोर राज्य की स्थापना की। ये मैसूर व पूर्वी कर्नाटक रियासत के उत्तराधिकारी थे।
समर्थ गुरु रामदास :- ये शिवाजी महाराज के गुरु थे। इन गुरु का जन्म 1608 ई. में हुआ। इन्होंने ‘दासबोध’ नाम की किताब लिखी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने पारली गढ़ को सज्जनगढ़ नाम देकर वहां अपने गुरु के लिए आश्रम बनवाया।
सन्त तुकाराम :- शिवाजी महाराज इनसे बहुत प्रभावित हुए। इन्होंने शिवाजी महाराज द्वारा भेंट किए गए उपहारों को लेने से मना कर दिया था।
दादाजी कोंड देव :- ये शिवाजी महाराज के संरक्षक थे। इनकी नियुक्ति पूना में शाहजी ने की थी। शिवापुर नामक गाँव में इन्होंने सरकारी उद्यान बनवाएम न्याय में वे अत्यंत निष्ठुर थे। यहाँ तक कि एक बार शिवाजी महाराज की आज्ञा के बिना इन्होंने आम का फल तोड़ लिया, जिसके दंड स्वरूप इन्होंने अपना हाथ काट डालने का निश्चय किया किंतु शिवाजी महाराज के मना करने पर जिंदगी भर अपने कुर्ते की एक बाँह अधूरी ही रखी।
तारीख-ए-शिवाजी के अनुसार दादाजी कोंड देव शिवाजी महाराज के शिक्षक थे। शिवाजी महाराज को घुड़सवारी, तलवारबाजी आदि में माहिर इन्होंने ही किया। इन्होंने सहयाद्री पर्वत पर भेड़ियों का सफाया करवाया। इन्होंने शुरुआत में जब पूना का भार सम्भाला, तब पूना की सालाना आमदनी मात्र 40 हजार हूण थी।
ये चकबंदी के काम में बड़े ही निपुण थे। इनकी देखभाल से पूना प्रांत की खेती में बहुत से सुधार हुए। पूना की आबादी बढ़ी। हर साल जो फसल होती थी उसमें से कुछ न कुछ हिस्सा लगान के रूप में लेने की पद्धति ही दादाजी ने रूढ़ की थी। उनके समय मावला लोगों की आर्थिक दशा निकृष्ट हो गई थी, अत: इन्होंने उनका सारा लगान माफ कर दिया था। इन्होंने उसमें से कुछ लोगों को दूसरी ओर का लगान वसूल करने के लिए अपने यहाँ रखकर उनकी स्थिति सुधारने की भरसक चेष्टा की।
इन्होंने पूना में शिवाजी महाराज व माता जीजाबाई के लिए लालमहल बनवा दिया और बाल शिवाजी को आवश्यक सैनिक तथा धार्मिक शिक्षा दी। शिवाजी महाराज के मन में अपने धर्म के प्रति स्वाभिमान जगाया, जिससे प्रसन्न होकर शिवाजी महाराज के पिता शाहजी ने दादाजी की सेना बढ़ाई और उनको ऊँचा अधिकारी बनाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज को गुजरात के सूरत शहर में देखने वाले एक अंग्रेज ने लिखा है कि “वे मंझले कद के आदमी थे, परन्तु उनका शरीर खूब गठीला था। उनके चलने-फिरने में गज़ब की तेजी और फुर्ती थी। मुंह पर हमेशा मुस्कुराहट दिखाई देती थी। दोनों आँखें बड़ी तेज थीं और चारों ओर घूमती रहती थीं।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)