वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 91)

वे घटनायें, जिनमें महाराणा प्रताप के नाम ने प्रेरणा का काम किया :- महाराजा मानसिंह द्वारा महाराणा का उदाहरण देना :- एक समय जोधपुर में अंग्रेज सरकार के खिलाफ बहुत उपद्रव होने लगे, तो अंग्रेजों की एक पलटन जोधपुर भेजी गई। जोधपुर महाराजा मानसिंह ने अपने सर्दारों से सलाह की, तो सर्दारों ने अंग्रेजी फौज को प्रबल बताया।

कुचामन ठाकुर ने कहा कि “प्रबल हुकूमत से बगावत करना ठीक नहीं होगा महाराज साहब। मेवाड़ के महाराणा प्रताप लड़े थे बादशाह से, तो पैर-पैर पर्वतों में फिरे थे।” तब महाराजा मानसिंह ने कुचामन ठाकुर के कथन के विरोध में ये दोहा फर्माया :-

“गिरपुर देस गमाड़, भमिया पग-पग भाखरां। सह अँजसै मेवाड़, सह अँजसै सिसोदिया।।” अर्थात् अपने पर्वत, नगर और देश गमाकर पैदल ही पर्वतों में घूमते रहे, पर महाराणा ने अपने धर्म की रक्षा की, जिससे आज मेवाड़ का देश गर्व करता है व सिसोदिया जाति घमंड करती है।

महाराणा फतेहसिंह द्वारा दिल्ली दरबार में न जाना :- 1903 ई. में लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार में सभी राजाओं के साथ मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियों को अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए उन्हें रोकने के लिए शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूरसिंह ने ठाकुर करण सिंह जोबनेर व राव गोपाल सिह खरवा के साथ मिलकर महाराणा फतेहसिंह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहठ को दी।

केसरी सिंह बारहठ ने “चेतावनी रा चुंग्ट्या” नामक 13 सौरठे रचे जिन्हें पढकर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए और दिल्ली दरबार में न जाने का निश्चय किया। वे दिल्ली आने के बावजूद समारोह में शामिल नहीं हुए। इस रचना में केसरी सिंह बारहठ ने बार-बार महाराणा प्रताप का जिक्र किया व महाराणा फतेहसिंह के सोये हुए स्वाभिमान को जगाया।

कर्नाटक में एकीकरण :- कर्नाटक के नेता कर्नाटक कुल पुरोहित आलूर वेंकटराव ने कर्नाटक के एकीकरण की लड़ाई में महाराणा प्रताप के आदर्श को अपनाया। इस बात को उन्होंने अपने वक्तव्यों व लेखों में प्रकट किया व लोगों में स्वतंत्रता की भावना जगाई।

केसरी सिंह बारहठ द्वारा पुत्र का नामकरण :- मेवाड़ के क्रान्तिकारी केसरी सिंह बारहठ महाराणा प्रताप के विचारों व स्वाभिमान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘प्रताप सिंह बारहठ’ रख दिया।

प्रताप पत्रिका का प्रकाशन :- अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी महाराणा प्रताप के परम भक्त थे। उन्होंने अपने राष्ट्रीय पत्र ‘प्रताप’ का नाम भी महाराणा प्रताप की पुण्य स्मृति में ही रखा।

महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं :- भारत में महाराणा प्रताप की अनेक प्रतिमाएं स्थापित हो चुकी हैं। अब भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या व भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका में भी महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं। महाराणा प्रताप की अब तक की सबसे बड़ी प्रतिमा उदयपुर स्थित प्रताप गौरव केंद्र में है, जो कि 57 फीट की है। अब चावंड में इससे भी बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाएगी।

माल्टा द्वारा महाराणा प्रताप का सम्मान :- माल्टा नामक देश ने महाराणा प्रताप के जीवन से प्रभावित होकर उन्हें सम्मान देने के लिए 2003 में चांदी के 1 किलो वजन के 100 सिक्के जारी किए थे, जो विश्व के सबसे भारी सिक्कों की सूची में शुमार हुए, जिसके एक ओर महाराणा प्रताप का चित्र और उनके जन्म-देहांत की तारीख अंकित है, ताे दूसरी ओर माल्टा देश का चिह्न व नाम है।

माल्टा द्वारा जारी सिक्का

मॉरीशस द्वारा महाराणा प्रताप का सम्मान :- मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस में महाराणा प्रताप की प्रतिमा स्थापित की गई व उस रास्ते को “महाराणा प्रताप लेन” नाम दिया गया। इसके अतिरिक्त पोर्ट लुइस में घुड़दौड़ मनोरंजन का साधन है, वहां कई प्रवासी भाारतीय निवास करते हैं। इसमें जो घोड़ा सफल होता है, उसे सभी प्रवासी भारतीय ‘चेतक’ के नाम से पुकारते हैं।

दक्षिण मॉरिशस में प्रताप बैठका :- दक्षिण मॉरिशस में ‘प्रताप बैठका’ की मान्यताएं हैं, जहां सभी लोग बैठकर आपसी चर्चाएं करते हैं, इसलिए उसका नाम महाराणा प्रताप के नाम से ‘प्रताप बैठका’ रखा है।

फिजी में महाराणा से प्रभावित कवि :- फिजी का प्रसिद्ध कवि जो दूबू का रहने वाला है, वो अपनी रचनाओं में अपने नाम की जगह ‘प्रताप’ लिखता है। दुबई में महाराणा प्रताप की प्रतिमा :- हाल ही में प्राप्त जानकारी के अनुसार 2021 में महाराणा प्रताप की प्रतिमा दुबई में स्थापित की जाएगी। यह प्रतिमा जयपुर के प्रसिद्ध मूर्तिकार महावीर भारती जी द्वारा बनाई जा रही है।

गुआना में महाराणा की झांकी :- अटलांटिक महासागर के उत्तरी छोर पर गुआना में ‘भारत दर्शन उत्सव’ मनाया जाता है। प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले ‘भारत दर्शन उत्सव’ की झांकी में महाराणा प्रताप का चित्र प्रमुखता लिए होता है।

टोबेगो में महाराणा का सम्मान :- त्रिनिडाड टोबेगो में सन 1985 में वहां हुए ‘भारत की झांकी’ कार्यक्रम में महाराणा प्रताप का तैलचित्र रखा गया था। वहां के भारतीय विद्या संस्थान में मीरां बाई व महाराणा प्रताप का चित्र संग्रहित है।

सूरीनाम में महाराणा के मंत्री भामाशाह का सम्मान :- सूरीनाम दक्षिण अमरीका में आज भी दानदाता को वहां के प्रवासी भारतीय भामाशाह कहकर पुकारते हैं।

जयपुर में स्थित महाराणा प्रताप की प्रतिमा

छत्रपति शिवाजी महाराज :- छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई जी उन्हें बचपन से ही महाराणा प्रताप जैसे वीरों की गाथाएं सुनाया करती थीं, जिनसे प्रभावित होकर शिवाजी महाराज ने न केवल सीख ली, बल्कि छापामार पद्धति अपनाते हुए मुगल सत्ता को भारी चुनौती दी।

महाराणा अमरसिंह जी मेवाड़ :- यदि कोई व्यक्ति महाराणा प्रताप के जीवन से सर्वाधिक प्रभावित हुआ, तो वो था उन्हीं का अपना लहू, जिन्होंने महाराणा प्रताप के देहांत के बाद मेवाड़ का केसरिया अपने हाथों में लिया और चुनौती दी मुगल तख़्त पर बैठे जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर को और उसके बाद उसके बेटे जहांगीर को।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!