1585 ई. – महाराणा प्रताप का विजय अभियान :- मुगल बादशाह अकबर ने 1576 ई. से 1585 ई. तक लगातार महाराणा प्रताप के विरुद्ध सैन्य अभियान भेजे, परन्तु महाराणा प्रताप को पकड़ने या मारने में राजा मानसिंह, शाहबाज़ खां, अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना, जगन्नाथ कछवाहा आदि सेनापतियों के बड़े-बड़े अभियान असफल सिद्ध हुए।
इन सैन्य अभियानों की असफलता के बावजूद मुगलों ने मेवाड़ में जगह-जगह थाने कायम कर दिए। महाराणा प्रताप इस समय गोडवाड़ में थे। मुगलों ने चावंड पर भी कब्ज़ा करके एक मुगल चौकी वहां कायम कर दी थी।
महाराणा प्रताप ने सर्वप्रथम चावंड को जीतने के उद्देश्य से गोडवाड़ से कूच किया और चावंड में तैनात मुगल थाना उखाड़ फेंका। महाराणा प्रताप ने दो सैनिक टुकड़ियां बनाई, जिसमें एक का नेतृत्व स्वयं महाराणा ने व दूसरी का नेतृत्व कुंवर अमरसिंह ने किया।
महाराणा प्रताप ने उदयपुर पर चढाई की। महाराणा के आने की खबर सुनते ही उदयपुर में तैनात मुगल फौज के हौंसले पस्त हो गए और ये फौज बिना लड़े ही भाग निकली। महाराणा प्रताप ने बिना खून खराबे के ही उदयपुर पर अधिकार कर लिया।
उदयपुर जीतने के बाद महाराणा प्रताप ओवरां गांव में पहुंचे। महाराणा ने ओवरां में स्थित शाही थाने पर हमला किया व विजयी हुए। ओवरां से महाराणा प्रताप जावर पहुंचे। जावर में सीसा व जस्ता की खदानें थी। आर्थिक रुप से समृद्ध होने के कारण इस इलाके पर अक्सर मुगलों की नज़र रहती थी।
महाराणा प्रताप ने जावर के शाही थाने पर हमला किया व विजयी हुए। कुंवर अमरसिंह ने मोही, मदारिया, आमेट, देवगढ़ वगैरह शाही थानों पर हमले किए व विजयी हुए। महाराणा प्रताप ने भीमगढ़ मुगल थाने पर हमला किया व विजयी हुए।
पिण्डवाड़ा स्थित शाही थाना 1576 ई. में अकबर ने आमेर के राजा भगवानदास कछवाहा की मदद से लगाया था। महाराणा प्रताप ने पिण्डवाड़ा शाही थाने से भी मुगलों को खदेड़ दिया। महाराणा प्रताप ने फिर से वागड़ पर अपना वर्चस्व कायम किया।
महाराणा प्रताप ने खेरवाड़ा, आसपुर व बिजौलिया पर भी विजय प्राप्त कर ली। कुंवर अमरसिंह तेज गति से एक ही दिन में 5 शाही थाने उठाते हुए चावण्ड में महाराणा प्रताप के पास हाजिर हुए, तो महाराणा बड़े प्रसन्न हुए। तुर्कों की हर चौकी पर, रजपूती शस्त्रों का वार हुआ। फिर से मेवाड़ी धरती पर, राणा प्रताप का अधिकार हुआ।।
मेवाड़ में 1575 ई. से 1585 ई. तक 10 वर्षों में जो कुछ भी मुगलों ने जीता, वो लगभग सब महाराणा प्रताप ने मात्र एक वर्ष (1585-86 ई.) में मुगलों से छीन लिया। महाराणा प्रताप ने इस एक वर्ष में 36 मुगल थानों पर अधिकार किया।
महाराणा प्रताप से सम्बंधित सूरखण्ड का शिलालेख 1585 ई. का है। ये शिलालेख अब तक उदयपुर के विक्टोरिया हॉल में मौजूद है। इस शिलालेख के अनुसार महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध में विजय प्राप्त की थी। यह शिलालेख इस बात की जानकारी भी देता है कि महाराणा प्रताप ने रावत भाण सारंगदेवोत को फौज सहित भेजकर वागड़ पर विजय प्राप्त की थी।
जब मेवाड़ में तैनात अधिकतर मुगल थानों पर विजय प्राप्त कर ली गई, तब कुंवर अमरसिंह ने गुजरात के शाही प्रदेश पर आक्रमण किया व 70 हजार का धन दण्डस्वरुप वसूल किया। इन्हीं दिनों में महाराणा प्रताप के समकालीन कवि हेमरतन सूरि ने महाराणा प्रताप द्वारा लगातार संघर्ष करने के बारे में लिखा कि “प्रतपई दिन-दिन अधिक प्रताप”।
महाराणा प्रताप के समकालीन कवि बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा लिखे गए एक पद का अर्थ है कि “अकबर रूपी ठग भी एक दिन इस संसार से चला जाएगा और उसकी यह हाट भी उठ जाएगी, परन्तु संसार में यह बात अमर हो जाएगी कि क्षत्रियों के धर्म में रहकर उस धर्म को केवल महाराणा प्रताप ने निभाया। अब संसार भर में सबको उचित है कि उस क्षत्रियत्व को अपने व्यवहार में लावें।”
कुछ इतिहासकार महाराणा प्रताप के संघर्ष को केवल मेवाड़ तक सीमित कर देते हैं, जबकि ये अनुचित है। वास्तव में महाराणा प्रताप का संघर्ष उस समयकाल में भी भारतीयों की एक आस बन चुका था, उनके लिए एक प्रेरणा बन चुका था। महाराणा प्रताप के अकबर के विरुद्ध संघर्ष का राष्ट्रीय महत्व उस दौर में भी स्वीकार किया जाता था।
यह बात पृथ्वीराज राठौड़ के एक पद से सिद्ध होती है, जिसका अर्थ है कि “भारतीय स्वतंत्रता के गौरव का तीन चौथाई भाग अर्थात अधिकांश समाप्त हो चुका है। अब उसका एक चौथाई भाग अर्थात बहुत थोड़ा अंश बचा है। इस अवशिष्टांश को महाराणा प्रताप ने अपने मस्तक पर धारण कर रखा है और सभी भारत भक्तों की दृष्टि आप पर जमी हुई है।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)