24 जून, 1564 ई. – नराई नाले का भीषण युद्ध :- इतिहासकार विंसेंट स्मिथ लिखता है कि “नराई नाले का युद्ध जहां एक ओर रानी दुर्गावती की कीर्ति का ध्वज पताका फहराता है, वहीं दूसरी ओर अकबर के चरित्र पर गहरा दाग अंकित करता है। ऐसे श्रेष्ठ चरित्र वाली रानी पर अकबर का हमला केवल आक्रमण ही था, जो किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं था। उसके पीछे केवल अकबर की लूट और विजय की मंशा ही थी। बाद में रानी दुर्गावती की समाधि बनाई गई थी, जहां कईं साल बाद कर्नल स्लीमेन ने श्रद्धा स्वरूप सफेद कंकुरिया चढ़ाकर स्वयं को गौरवशाली अनुभव किया।”
रानी दुर्गावती की तरफ से वीरगति पाने वाले योद्धा :- कनुर कल्याण बघेला, खुरचली, खान जहां, डकीत महाराज ब्राह्मण आदि। रानी दुर्गावती ने कुल 16 वर्ष तक शासन किया।
अगस्त, 1564 ई. – चौरागढ़ का युद्ध व शाका :- अकबर के सेनापति आसफ खां ने इस लड़ाई के 2 माह बाद चौरागढ़ दुर्ग की तरफ कूच किया। इस दुर्ग में बहुत सा खज़ाना गाढ़ रखा था। चौरागढ़ दुर्ग पर रानी दुर्गावती के पुत्र राजा वीर नारायण का अधिकार था।
मुगल फौज किले के बाहर तक पहुंची, तो राजा ने भोज कायस्थ और मियां मिकारी रूमी को दुर्ग के अंदर तैनात किया और रानियों व अन्य स्त्रियों ने जौहर का चयन किया। राजा ने अपनी फौजी टुकड़ी समेत दुर्ग से बाहर निकलकर मुगल फौज पर हमला किया और बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
किले में जौहर हुआ और सभी क्षत्राणियों ने स्वयं को अग्नि में समर्पित किया। 4 दिन बाद मुगलों ने अंदर प्रवेश किया, तो 2 स्त्रियों को जीवित पाया। इनमें से एक रानी दुर्गावती की बहन कमलावती थीं व दूसरी राजा पुरागढ़ की पुत्री रूपमती थी, जिनका विवाह राजा वीर नारायण से होने वाला था। इन दोनों ने डर के मारे जौहर नहीं किया, नतीजतन इन्हें अकबर के शाही हरम में भेज दिया गया।
जो लोग आज भी जौहर प्रथा को कुरीति मानते हैं, उन्हें इस वाकिये से समझना चाहिए कि जौहर कुरीति नहीं, बल्कि उस समय के हिसाब से दिया जाने वाला एक स्वाभिमानी बलिदान था।
चौरागढ़ विजय से आसफ खां को 100 घड़े स्वर्ण से भरे हुए मिले, जिसमें से बहुत कुछ आसफ खां ने अपने पास रख लिया और अकबर तक नहीं पहुंचाया। उसने 1000 हाथियों में से सिर्फ 200 हाथी अकबर तक पहुंचाए।
इस घटना का पता अकबर को बाद में चला। आसफ खां का पीछा किया गया, लेकिन वो भागने में सफल रहा। इस घटना के ठीक 3 वर्ष बाद चित्तौड़गढ़ पर हमले के समय आसफ खां लौट आया और बादशाह से माफ़ी मांगी। रानी दुर्गावती के देवर चंद्रशाही द्वारा मुगल अधीनता स्वीकार करने पर अकबर ने चौरागढ़ का राज उसे सौंप दिया।
रानी दुर्गावती के समय हुए निर्माण कार्य :- रानी ताल :- इस तालाब का निर्माण रानी दुर्गावती ने जबलपुर में करवाया। चेरी ताल :- रानी दुर्गावती की चेरी नामक दासी द्वारा निर्मित तालाब, जो कि रानी ताल के निकट ही स्थित है।
आधार ताल :- जबलपुर से 3 मील दूर उत्तर की ओर स्थित तालाब, जिसका निर्माण मंत्री आधारसिंह ने करवाया। हाथी बाड़ी :- रानी दुर्गावती को हाथियों का बड़ा शौक था। मंडला क्षेत्र के सेमरिया नामक इलाके में हाथी बाड़ी आज भी मौजूद है। रानी दुर्गावती ने हाथी बाड़ी के चारों और खाईयां खुदवा रखी थीं। जंगलों से हाथियों को पकड़कर यहां लाया जाता था व उन्हें पालतू बनाया जाता।
रानी दुर्गावती के नाम से जबलपुर में एक संग्रहालय की स्थापना की गई। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 1983 ई. में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया। भारत सरकार ने 24 जून, 1988 ई. में रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस के सम्मान में उन पर एक डाक टिकट जारी किया।
इसके साथ ही गोंडवाना की इन महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी का इतिहास यहीं समाप्त होता है। आशा है इनके जीवन का विस्तृत वर्णन पढ़कर आपने भी गौरव का अनुभव किया होगा। ऐसी महान वीरांगना उस दौर में कोई दूसरी नहीं हुई।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
क्या रानी दुर्गावती जी ने अपने जीवन काल में एक ही युद्ध लड़ा था
क्या रानी दुर्गावती जी ने अपने जीवन काल में एक ही युद्ध लड़ा था
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मियाना अफगानों और बाज बहादुर के खिलाफ लड़े गए युद्धों का भी तो वर्णन किया गया है सीरीज में
अपने अपने कुछ स्वार्थ के कारण एक लुटेरा हजारों वीरों को दास बना दिया
आप को लाख लाख रंग हैं जो वीरांगना दुर्गावती जी का इतिहास साधारण से साधारण व्यक्तियों तक पहुंचाया🙏🙏