अकबर के सेनापति आसफ़ खां के नेतृत्व में मुगल सेना द्वारा रानी दुर्गावती के प्रदेश में प्रवेश के बाद रानी के सामन्तों ने रानी को सलाह दी कि मुगल फौज इसी और आ रही है, इस खातिर किसी दूसरे स्थान पर चले जाना उचित होगा। रानी ने कहा “विजय या वीरगति”।
मुगल फौज नराई से कुछ ही दूर थी, तो रानी ने हाथियों के फौजदार अर्जन दास बैस को लड़ने भेजा, जो कि बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। नराई तक पहुंचने का रास्ता संकरा था।
अबुल फज़ल लिखता है “रानी दुर्गावती ने ज़िरहबख़्तर पहना और हाथी पर सवार हुई। रानी ने अपनी फौज से कहा कि जल्दबाज़ी ना करें, जब मुगल फौज संकरे रास्तों से यहां तक आए, उसके बाद हम सब अलग-अलग तरफ से उन पर टूट पड़ेंगे। एक बेहतरीन जंग शुरू हुई और दोनों तरफ से कई लोग मारे गए। 300 मुगल मारे गए और रानी ने इस लड़ाई में जीत हासिल की। रानी ने भगोड़ों का पीछा किया।” (अबुल फज़ल रानी दुर्गावती की बहादुरी का कायल था, ये पहला मौका है जब अबुल फज़ल ने मुगल सेना के लिए ‘भगोड़े’ जैसा शब्द प्रयोग किया।)
मुगल फौज भागकर कुछ दूरी पर ठहर गई और अगले दिन फिर हमला करने का विचार किया। रानी दुर्गावती ने अपने साथियों से कहा कि हम आज रात को ही मुगल फौज पर हमला करेंगे, यदि अभी हमला नहीं किया तो कल आसफ खां तोपों के साथ यहां तक आ जाएगा और फिर उन्हें हराना मुश्किल हो जाएगा।
रानी के इस प्रस्ताव को अधिकतर साथियों ने खारिज कर दिया, जिस वजह से रानी फिर अपने निवास की तरफ लौट गईं। अगले दिन सुबह वही हुआ जो रानी ने सोचा था। आसफ खां के नेतृत्व में तोपों से लैस मुगल फौज ने संकरे पहाड़ी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी। अबुल फज़ल लिखता है कि “रानी दुर्गावती के सामंतों में एक भी ऐसा नहीं था, जो रानी की बहादुरी और अक्लमंदी की बराबरी कर सके।”
24 जून, 1564 ई. – रानी दुर्गावती का देहांत :- अबुल फ़ज़ल ने युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी मुगलों से युद्ध का हाल सुनकर रानी दुर्गावती के देहांत का सजीव वर्णन किया है। अबुल फ़ज़ल अकबरनामा में लिखता है कि “रानी दुर्गावती अपने बुलंद और उत्सुक हाथी पर बैठी, जो कि उसके सभी जानवरों में सबसे बेहतर था, उसका नाम सरमन था। रानी ने हाथियों को अपने सैनिकों में बांटा और लड़ने को तैयार हुई।”
रानी दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण की वीरता के बारे में अबुल फ़ज़ल लिखता है कि “मुगल फौज को तीरों और बंदूकों से लेकर खंजर और तलवारों से होने वाले हमलों से बचकर संकरा रास्ता पार करना पड़ा। रानी के बेटे राजा बीर सा ने बड़ी बहादुरी से बर्ताव किया। शम्स खां मियां और मुबारक खां बिलोच ने बहादुरी दिखाई। दिन के तीसरे पहर तक भी लड़ाई चलती रही। राजा बीर सा ने बादशाही फौज को 3 बार खदेड़ा, पर तीसरी बार वह सख्त ज़ख़्मी हुआ।
अबुल फ़ज़ल आगे लिखता है कि “रानी दुर्गावती ने फौरन अपने खास सिपाहियों को भेजा, ताकि उसे लड़ाई से बाहर निकाला जाए। रानी की तरफ से बहुत से बहादुर मारे गए और बीर सा के साथ बहुत से सैनिक लड़ाई छोड़कर निकल गए, जिस वजह से रानी के पास महज़ 300 सैनिक बचे, लेकिन इससे रानी के बर्ताव में कोई कमज़ोरी नहीं आई और वो अपने बचे खुचे बहादुर साथियों के साथ लड़ती रही।”
रानी दुर्गावती के ज़ख्मी होने का अबुल फ़ज़ल ने सजीव वर्णन किया है। वह लिखता है कि “एक सख्त तीर रानी की दायीं आंख में लगा और रानी ने बड़ी बहादुरी से बिना घबराए तीर को निकाल फेंका, पर तीर का नुकीला हिस्सा टूट गया और आंख में ही अटक गया। तभी एक और तीर रानी की गर्दन पर लगा, रानी ने इसे भी निकाल फेंका, पर बहुत ज्यादा दर्द के चलते उस पर बेहोशी छाने लगी।”
रानी दुर्गावती के इर्द-गिर्द खड़े मुगल सिपहसालारों के बयान पर अबुल फ़ज़ल ने लिखा है कि “रानी ने इस हालत में भी सूझबूझ से काम लिया और अपने हाथी के ठीक आगे वाले हाथी पर सवार आधार को आवाज़ लगाई और कहा कि ‘मैंने तुम्हें अपनी सेना में अहम पद पर रखा और वो कर्ज़ चुकाने का दिन आज है, भगवान के लिए मना मत करना क्योंकि मेरे लिए भी इज्जत से मरने का मौका आज ही है, मैं अपने दुश्मनों के हाथों में नहीं पड़ना चाहती, इस खातिर तुम एक वफादार सेवक की तरह अपनी कटार से मुझे ख़त्म कर दो’।”
अंत में अबुल फ़ज़ल लिखता है कि “उस वफादार आधार ने रानी से कहा कि ‘मैं कैसे उन हाथों से आपको मौत दे सकता हूं, जिन हाथों ने हमेशा आपसे तोहफे लिए हैं, मैं आपके लिए इतना जरूर कर सकता हूं कि आपको इस मैदान से ज़िंदा बाहर निकाल सकता हूं, क्योंकि मुझे आपके बुलंद हाथी पर पूरा भरोसा है’। रानी ने ये लफ्ज़ सुने तो गुस्से में आकर आधार को धिक्कार कर कहा कि ‘तुमने मेरे लिए इस अपमान को चुना’। रानी ने अपना खंजर निकाला और खुद पर वार करते हुए एक मर्द की तरह ख़त्म हो गई। बादशाही फौज ने एक बड़ी लड़ाई जीत ली। इस जीत से बादशाही फौज को रानी के 1000 हाथी, बहुत सा खज़ाना और सामान वगैरह हाथ लगा।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Kya rani durgawati ji ne apne life m ek hi yudh lada tha ?
Agr time ho toh reply jarur dijiye..