रानी दुर्गावती जी के पिता :- रानी दुर्गावती के पिता महोबा के पास राठ के चंदेल राजा शालिवाहन थे, परन्तु विंसेट स्मिथ, केशवचंद्र मिश्र आदि इतिहासकारों ने कालिंजर के राजा कीरत सिंह को रानी दुर्गावती का पिता होना लिखा है। कुतुबउद्दीन एबक के आक्रमण के समय चंदेल राजपूतों ने महोबा छोड़कर कालिंजर में अपना राज कायम किया, लेकिन चंदेलों की एक शाखा महोबा में ही रही और इसी शाखा में राजा शालिवाहन हुए। कालिंजर में स्थापित चंदेल शाखा 15वीं सदी तक बनी रही, तत्पश्चात वहां भी राजा शालिवाहन का अधिकार हो गया।
रानी दुर्गावती की बहन :- कुछ इतिहासकारों ने कमलावती को रानी दुर्गावती की बहन होना लिखा है, जबकि कुछ का मानना है कि ये रानी दुर्गावती की सगी बहन नहीं थी। रानी दुर्गावती के ससुर :- राजा संग्रामशाह :- ये अमन दास नाम से भी जाने जाते थे। इनके अधिकार में 52 दुर्ग थे। सास :- रानी पद्मावती।
पति :- राजा दलपतिशाह :- राजा संग्रामशाह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दलपतिशाह गद्दी पर बैठे। इनका विवाह रानी दुर्गावती से हुआ। ये सिंगोरगढ़ (दमोह) में रहा करते थे। रानी दुर्गावती के गुरु :- रानी दुर्गावती के गुरु गोस्वामी विट्ठलदास जी थे, जो वल्लभ संप्रदाय के संपादक वल्लभाचार्य के पुत्र थे। रानी दुर्गावती ने इनको 108 गांव दान में दिए थे, जो गोस्वामी जी ने तेलंग ब्राह्मणों में बांट दिए। ये मेवाड़ की महारानी अजबदे बाई जी के भी गुरु थे।
प्रिय हाथी :- रानी दुर्गावती के प्रिय हाथी का नाम सरमन था, जो उस राज्य के सभी हाथियों में सर्वश्रेष्ठ था। युद्ध के समय रानी दुर्गावती इसी हाथी पर सवार हुआ करती थीं। आश्रित लेखक :- रानी दुर्गावती के दरबारी विद्वान पदमनाथ भट्टाचार्य ने ‘दुर्गावती विलास’ नामक रचना की।
रानी दुर्गावती का व्यक्तित्व :- रानी दुर्गावती सुंदर, निर्भय, चेहरे पर तेज, स्वभाव से दयालु, स्वाभिमान से ओतप्रोत, प्रजापालक, प्रणपालक, हाजिरजवाबी, धार्मिक, बहादुर, तीर-बन्दूक की अचूक निशानेबाज़, हाथियों की शौकीन, हिंसक जीव-जंतुओं के आखेट की प्रबल इच्छुक, कुशल प्रशासक, राज्य प्रबंध में निपुण व एक योग्य माँ थीं। रानी दुर्गावती अपने विशाल राज्य के हर जागीरदार को उसके नाम से जानती थीं। रानी ने आदिवासी जातियों से मधुर संबंध बनाए रखे और राज्य के पहाड़ी इलाकों समेत चप्पे-चप्पे से परिचित थीं।
5 अक्टूबर, 1524 ई. – रानी दुर्गावती का जन्म :- रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर दुर्ग में दुर्गाअष्टमी के दिन होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। हालांकि इनके जन्म का एक अन्य चर्चित किस्सा कुछ इस तरह है :-
चंदेल राजा शालिवाहन की कोई संतान नहीं थी। कालिंजर दुर्ग में दुर्गादेवी का एक मंदिर था। तो लोगों में उस वक़्त एक धारणा थी कि जो कोई भी निसंतान जोड़ा मंदिर जाकर अपनी होने वाली पहली संतान को दुर्गादेवी की गोद में समर्पित करने का संकल्प लेता है, उसे संतान अवश्य होती है।
अर्थात् पहली संतान को मढ़िया में रखकर द्वार हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है और उस शिशु का दम घुट जाता है। राजा शालिवाहन ने अपनी रानी के साथ मंदिर जाकर संकल्प किया और उन्हें कुछ समय बाद पुत्री के रूप में पहली संतान हुई। जिसे राजा ने संकल्प करने से कई बार मना किया, लेकिन रानी नहीं मानी। राजा द्वारा मना करते-करते कई साल गुजर गए और रानी दुर्गावती बड़ी हो गईं और उनके रूप व गुण की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।
बहरहाल, सत्य जो भी हो, मुगल सल्तनत को चुनौती देने के लिए एक महान वीरांगना जन्म ले चुकी थी। रानी दुर्गावती जी का जीवन शुरू से ही संघर्षमय रहा।
1541 ई. में गोंडवाना के राजा संग्रामशाह का देहांत हुआ और उनके पुत्र दलपतिशाह गोंडवाना के शासक बने। दलपतिशाह के छोटे भाई चंद्रशाही नाराज़ होकर महाराष्ट्र चले गए, जहां उन्होंने चंद्रपुर में अपना राज कायम किया।
1542 ई. – रानी दुर्गावती का विवाह :- रानी दुर्गावती गोंडवाना के शासक राजा दलपतिशाह से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन इस विवाह के लिए उनके पिता राजा शालिवाहन राजी नहीं हुए और उन्होंने एक स्वयंवर रखा, जिसमें दलपतिशाह को न्यौता नहीं भेजा। रानी दुर्गावती भागकर विवाह करने के पक्ष में नहीं थीं, इसलिए उन्होंने दलपतिशाह को पत्र लिखा, जिसमें कहा कि वे अपने पराक्रम और वैभव से स्वयं को साबित करते हुए मेरा हरण करे।
स्वयंवर के अवसर पर राजा दलपतिशाह ने 12 हजार की फौज समेत हमला किया और विरोधी पक्षों पर जोर जमाते हुए कुछ को पराजित कर दिया। फौज की कमी के चलते राजा शालिवाहन भी कुछ न कर सके और दलपतिशाह रानी दुर्गावती को साथ ले गए। रानी दुर्गावती का विवाह 18 वर्ष की उम्र में 25 वर्षीय दलपतिशाह के साथ हुआ।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)