1582 ई. – दिवेर का युद्ध :- महाराणा प्रताप ने मुगल बादशाह अकबर द्वारा कब्ज़े में लिए गए मेवाड़ी क्षेत्रों पर आक्रमण कर विजय पाने के अभियान की शुरूआत कर दी। महाराणा प्रताप ने इस अभियान का शुभारंभ दिवेर से करना तय किया।
दिवेर राजसमन्द जिले में उदयपुर-अजमेर मार्ग पर स्थित है, जहां शाहबाज खां ने बहुत बड़ा मुगल थाना लगा रखा था। इस थाने को यहां स्थापित अवश्य शाहबाज़ खां ने किया था, परन्तु वह स्वयं उस समय मेवाड़ में नहीं था। इस समय दिवेर थाने का मुख़्तार सुल्तान खां था।
मेवाड़ का मैराथन :- कर्नल जेम्स टॉड ने जहां हल्दीघाटी युद्ध को ‘मेवाड़ की थर्मोपल्ली’ कहा, वहीं टॉड ने दिवेर युद्ध को ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा। टॉड ने ये उदाहरण बड़ी चतुरता से दिया है, जिसके पीछे का इतिहास कुछ इस तरह है :-
यूनान के एक प्राचीन नगर का नाम मैराथन है, जहां 491 ई. पूर्व एक भयंकर युद्ध हुआ था। यह युद्ध ईरानियों की एक भारी सेना व यूनानियों की छोटी सी सेना के बीच हुआ था। ईरानियों की फौज लगभग 20,000 थी। ईरानी पूरे यूनान पर आधिपत्य स्थापित करना चाहते थे। यूनानियों ने आसपास की पहाड़ियों पर अपने सैनिक तैनात कर दिए। इस युद्ध में यूनानियों ने ऐसा जोर दिखाया कि ईरानियों के 6,400 सैनिक मारे गए, वहीं मात्र 192 यूनानी काम आए। इस शानदार विजय के बाद मैराथन का मैदान संसार भर में प्रसिद्ध हो गया।
मनकियावास गांव :- महाराणा प्रताप ने दिवेर के युद्ध की रणनीति गोमती चौराहा से 3 किमी. व आमेट से 15 किमी. दूर मनकियावास के जंगलों में तैयार की। जंगली बिलावों की अधिकता के कारण इस गांव का नाम मनकियावास पड़ा। आत्मसुरक्षा के साथ ही आमेट, देवगढ़, रुपनगर व आसपास के ठिकानों से मदद पाने की नजर से भी यह स्थान उपयुक्त था। यहां से दिवेर की दूरी भी कम है। यहां बरगद के पेड़ के नीचे स्थित गुफा में रहते हुए महाराणा प्रताप गुप्त सुचनाएं एकत्रित करते थे।
दिवेर युद्ध के कुछ वर्षों बाद लिखे गए अमरकाव्य नामक ग्रन्थ के अनुसार दिवेर युद्ध से पहले शकुनी नाम के किसी ज्योतिषि ने महाराणा प्रताप से कहा कि “प्रताप के भाले पर देवी अवस्थित है, अब प्रताप के हाथों शत्रु की पराजय निश्चित है”। महाराणा प्रताप ने दिवेर युद्ध से पूर्व प्रसिद्ध संत योगी रुपनाथ व चामुंडा माताजी से आशीर्वाद प्राप्त किया।
दिवेर युद्ध की तिथि :- अधिकतर इतिहासकारों ने दिवेर युद्ध का वर्ष 1582 ई. बताया है, जो कि उचित ही प्रतीत होता है। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने विजयादशमी के दिन दिवेर पर आक्रमण किया था और यदि इस वर्ष की विजयादशमी की अंग्रेजी तारीख देखी जाए तो ये 7 अक्टूबर, 1582 ई. होती है। “विजयादशमी के मौके को, राणा ने तलवारें खींची। चढ़ दिवेर की घाटी को, मुगलों के रक्त से सींची।।”
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ी सेना के दो भाग किए। पहले भाग का नेतृत्व स्वयं महाराणा प्रताप ने किया व दूसरे भाग का नेतृत्व महाराणा के ज्येष्ठ पुत्र महाराजकुमार अमरसिंह ने किया। इस युद्ध में भामाशाह जी कावड़िया ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सुल्तान खां ने महाराणा प्रताप के आक्रमण की सूचना पाते ही आसपास के मुगल थानों में ख़बर पहुंचा दी, जिससे कुछ ही समय में आमेट, चूडामण समेत कुल 14 मुगल थानों की फ़ौजें दिवेर में जमा हो गईं। मेवाड़ी सेना विजयादशमी के दिन पहले ही उत्साह से भरी हुई थी। मेवाड़ी सेना ने मुगल सेना पर ऐसा भीषण आक्रमण किया, कि मुगल सेना उसे झेल नहीं सकी।
महाराणा प्रताप का सुल्तान खां से आमना-सामना :- महाराणा प्रताप का सामना सुल्तान खां से हुआ। सुल्तान खां हाथी पर सवार था। सुल्तान खां के हाथी ने हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। हाथी ने मेवाड़ी सैनिकों को रौंदना शुरू कर दिया। यह स्थिति देखकर महाराणा प्रताप फ़ौरन सुल्तान खां के हाथी के सामने आ गए और महाराणा प्रताप के घोड़े ने अपने पैरों से सुल्तान खां के हाथी के दांतों पर प्रहार किया। तत्पश्चात महाराणा प्रताप ने अपने भाले से सुल्तान खां के हाथी के मस्तक को फोड़ दिया।
गज पर बैठा सुल्तान खान, राणा ने गज पर प्रहार किया। चूर हुआ खुरसाणी अभिमान, जब गज कुम्भ का विध्वंस किया।।” तभी सौलंकी भृत्य पड़िहार ने सुल्तान खां के हाथी के दोनों अगले पैर काट दिए। सुल्तान खां बच गया और उसने घोड़े पर बैठ कर युद्ध लड़ना शुरु किया।
कुँवर अमरसिंह व भामाशाह जी कावड़िया भी कई मुगलों का संहार कर रहे थे। कुँवर अमरसिंह की नजर सुल्तान खां पर पड़ी, तो कुँवर ने सुल्तान खां की तरफ अपना घोड़ा दौड़ाया। इस युद्ध में कुँवर अमरसिंह का शौर्य देखते ही बन रहा था। कुँवर अमरसिंह एक हाथ में तलवार व दूसरे में भाला लिए लगातार मुगलों का संहार करते जा रहे थे। जो मुगल उनके सामने आता, वह तलवार और भाले से कत्ल होता।
कर्नल जेम्स टॉड लिखता है कि “प्रताप के शत्रु जब यह कल्पना कर रहे थे कि प्रताप रेगिस्तान में होकर पीछे हटने की तैयारी में है, उस वक्त प्रताप ने शाहबाज़ खां के ही शिविर दिवेर में जाकर सबको चौंका दिया और वहां के एक-एक सैनिक के टुकड़े-टुकड़े कर दिए”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)