राजपूताने का नामकरण, भूगोल व 19 रियासतें

राजपूताने का नामकरण :- राजपूताना, जो कि अब राजस्थान है, पहले इस प्रदेश का कोई एक नाम नहीं था। इस प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्र अलग-अलग नामों से जाने जाते थे। जोर्ज थोमसन ने 1800 ई. में अपनी पुस्तक में इस प्रदेश का नाम राजपूताना लिखा।

कर्नल जेम्स टॉड ने 1829 ई. राजपूताने को राजस्थान या रायथान नाम दिया। जेम्स टॉड लिखता है कि “राजस्थान में कोई छोटा सा राज्य भी ऐसा नहीं है, जहां थर्मोपल्ली जैसी रणभूमि न हो और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले, जहां लियोनिडास जैसा वीर पुरुष पैदा न हुआ हो।”

राजपूत वीरों की समाधियां

पहले बीकानेर का सारा राज्य और जोधपुर का उत्तरी भाग, जिसमें नागौर आदि परगने हैं, जांगल देश कहलाता था। उसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर थी। अहिच्छत्रपुर वर्तमान में नागौर नाम से जाना जाता है।

यह क्षेत्र चौहानों के समय में सपादलक्ष नाम से जाना जाता था, जिसकी पहली राजधानी शाकंभरी अर्थात सांभर और दूसरी राजधानी अजमेर थी।

अलवर राज्य का उत्तरी भाग कुरु देश का, दक्षिणी व पश्चिमी भाग मत्स्य देश का व पूर्वी भाग शूरसेन देश का हिस्सा था। शूरसेन देश की राजधानी मथुरा थी और मथुरा के आसपास के प्रदेशों पर राज्य करने वाले क्षत्रप राजाओं के समय शूरसेन को राजन्य देश भी कहते थे।

जयपुर राज्य का उत्तरी भाग मत्स्य देश के अंतर्गत आता था, जिसकी राजधानी विराट नगर थी। ये वही विराट नगर है, जहां पांडवों ने अज्ञातवास का एक वर्ष बिताया था। यहीं विराट का युद्ध लड़ा गया था। जयपुर राज्य का दक्षिणी भाग चौहानों के समय सपादलक्ष में शामिल था।

उदयपुर राज्य का प्राचीन नाम शिवि देश था, जिसकी राजधानी मध्यमिका नगरी थी। उसके खंडहर इस समय नगरी नाम से प्रसिद्ध हैं और चित्तौड़ से 7 मील उत्तर में हैं। बाद में इसका नाम मेदपाट, प्राग्वाट व मेवाड़ पड़ा।

मेवाड़ का पूर्वी हिस्सा चौहानों के शासनकाल में सपादलक्ष के अंतर्गत आता था। इसी प्रकार डूंगरपुर व बांसवाड़ा को वागड़ व वार्गट नामों से जाना गया, वर्तमान में वागड़ नाम प्रचलित है।

सिरोही राज्य व उससे मिले हुए जोधपुर राज्य का एक हिस्सा अर्बुद प्रदेश कहलाता था, यह वर्तमान में आबू के नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार जैसलमेर राज्य का नाम पहले माड प्रदेश था।

वर्तमान में भी कई लोग इसे माड ही कहते हैं। वर्तमान में राजस्थान का जैसलमेर जिला सभी 33 जिलों में सबसे बड़ा है और यही जिला सबसे कम आबादी वाला है।

प्रतापगढ़ को कांठल के नाम से भी जाना जाता है। प्रतापगढ़, कोटा, झालावाड़, टोंक, सिरोंज आदि क्षेत्र मालव देश का हिस्सा थे। प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा के बीच का भाग छप्पन के नाम से भी प्रसिद्ध रहा है।

एकीकरण के समय रियासतें :- एकीकरण के समय राजपूताने में 19 रियासतें थीं, जिनमें से 16 रियासतें राजपूतों की, 2 रियासतें भरतपुर व धौलपुर जाटों की व एकमात्र मुस्लिम रियासत टोंक थी।

राजपूतों की 16 रियासतों में से 5 रियासतें गुहिल वंश की हैं :- उदयपुर-मेवाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुरा। 3 रियासतें राठौड़ राजपूतों की हैं :- जोधपुर-मारवाड़, बीकानेर, किशनगढ़।

2 रियासतें कछवाहा राजपूतों की हैं :- जयपुर-ढूंढाड़, अलवर। 3 रियासतें चौहान वंश की हैं :- कोटा, बूंदी, सिरोही। कोटा व बूंदी के चौहान हाड़ा कहलाए व सिरोही के चौहान देवड़ा कहलाए।

झाला राजपूतों की 1 रियासत झालावाड़ है। यदुवंशी राजपूतों की 2 रियासतें जैसलमेर व करौली हैं, जहां जैसलमेर के राजपूत भाटी कहलाए।

जैसलमेर दुर्ग

एकीकरण में इन 19 रियासतों के अतिरिक्त 3 ठिकाने भी शामिल किए गए। इन 3 ठिकानों में जयपुर में स्थित लावा, बांसवाड़ा में स्थित कुशलगढ़ व अलवर में स्थित नीमराणा भी शामिल है। एकीकरण के समय अजमेर-मेरवाड़ा को चीफशिफ रखा गया था।

इन रियासतों में सबसे पुरानी रियासत मेवाड़, सबसे नई रियासत झालावाड़, क्षेत्रफल के नज़रिए से सबसे बड़ी रियासत जोधपुर-मारवाड़ व सबसे छोटी रियासत शाहपुरा थी।

शाहपुरा वर्तमान में भीलवाड़ा जिले में स्थित है। जनसंख्या के नज़रिए से सबसे बड़ी रियासत जयपुर व सबसे छोटी रियासत शाहपुरा थी।

भूगोल :- राजस्थान की भूमि प्राचीनकाल से ही वीरों की भूमि रही है, परन्तु इसके साथ साथ इसका भूगोल भी देशभर में सबसे अलग है।

यहां मेवाड़ के पहाड़ी क्षेत्र हैं जो हरे भरे रहते हैं, तो दूसरी तरफ थार का रेगिस्तान है। एक तरफ भरपूर बारिश होती है, तो दूसरी तरफ नाममात्र की बारिश।

अरावली पर्वतमाला राजस्थान को 2 भागों में बांटती है। ये पर्वतमाला विश्व की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है, जिसकी आयु करीब 650 मिलियन वर्ष है।

ये पर्वतमाला गुजरात के पालनपुर से शुरू होती है, जो राजस्थान के मध्य से होती हुई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन तक फैली है।

इसका 80 फीसदी हिस्सा राजस्थान में है व सर्वाधिक ऊंचा हिस्सा सिरोही में है, जहां 1722 मीटर ऊंची गुरुशिखर चोटी स्थित है, जो राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी है।

राजस्थान में चम्बल, बनास, माही, लूनी जैसी बड़ी नदियां बहती हैं। राजस्थान में जहां एक तरफ मीठे पानी की एशिया की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील जयसमंद है, तो दूसरी तरफ यहां भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झीलों में से एक सांभर भी है।

राजपूताने के राजा-महाराजाओं ने यहां अनेक झीलें, तालाब, बावड़ियां आदि बनवाए, जिनका लाभ आज तक यहां के निवासी ले रहे हैं।

मेवाड़ के महाराणा जयसिंह जी द्वारा बनवाई गई जयसमंद झील

आज का यह भाग विशेषकर उन लोगों के लिए था, जो राजस्थान के भूगोल से ठीक से अवगत नहीं हैं। राजपूताने का इतिहास जानने के लिए सर्वप्रथम वहां का भूगोल, वहां की परिस्थितियों का अध्ययन आवश्यक था।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

2 Comments

  1. उमराव
    June 22, 2021 / 4:12 pm

    राव चंद्रसेन की मृत्य सचियाव गांव , सारण की पहाड़िया , पाली में हुई थी !!
    भाद्राजून में नही

  2. सौमित्र सिंह
    June 22, 2021 / 4:41 pm

    उत्तम जानकारी, एक भूवैज्ञानिक व एक जिज्ञासु होने के नाते इस बात को हम भली भांति समझ सकते हैं कि किसी भी स्थान के इतिहास को जानने से पहले वहाँ के भूगोल को जानना कितना महत्वपूर्ण है।
    एक जरुरी बात, आपके लेख में ‘यादव वंशी राजपूतों’ का जिक्र हुआ। हमारे अध्ययन के अनुसार यादव राजपूत नहीं होते, वो ‘यदु वंशी राजपूत’ थे। सम्पूर्ण महाभारत में कहीं भी ‘यादव’ शब्द का उल्लेख नहीं है, सिर्फ ‘यदुवंशी’ लिखा है। यदु का अपभ्रंश यादव हुआ लेकिन केवल शाब्दिक स्तर पर, दोनों अलग वर्ण हैं।
    बाकी आपके समस्त ज्ञानवर्धक लेखों के लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं।

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