1580 ई. – महाराणा प्रताप की बहन का देहान्त :- मारवाड़ के राव चन्द्रसेन (महाराणा प्रताप के मित्र व बहनोई) की एक रानी सूरजदेवी थीं, जो कि महाराणा प्रताप की बहन थीं। रानी सूरजदेवी जी इन दिनों मथुरा यात्रा के लिए पधारीं, जहाँ उनका देहान्त हो गया।
11 जनवरी, 1581 ई. – राव चंद्रसेन का देहांत :- भाद्राजूण में राव चन्द्रसेन के सामन्त वेरसल राठौड़ ने खाने में ज़हर मिलाकर राव चन्द्रसेन की हत्या कर दी। 39 वर्ष की अल्पायु में राव चन्द्रसेन विश्वासघात की भेंट चढ़ गए। एक शानदार व यशस्वी जीवन का अन्त हुआ।
जगमाल सिसोदिया द्वारा सिरोही पर कब्ज़ा :- राव सुरताण देवड़ा के बड़े बेटे ने अकबर के एक सिपहसालार सैयद हुसैन को मार दिया। अकबर ने सैयद हुसैन की हत्या का बदला लेने के लिए जगमाल (महाराणा प्रताप के भाई) को सिरोही का राजतिलक व मुगल फौज की कमान सौंपकर सिरोही पर कब्जा करने भेजा।
अकबर ने जालौर के एतमाद खां को भी जगमाल के साथ भेजा। जगमाल ने सिरोही पर हमला कर राव सुरताण को पहाड़ियों में जाने को विवश कर दिया। जगमाल ने सिरोही पर कब्जा कर लिया। एतमाद खां जगमाल की मदद के लिए गजनी खां, महमूद खां जालौरी, बिजा देवड़ा व रायसिंह राठौड़ (राव चन्द्रसेन के पुत्र) को सिरोही छोड़कर खुद जालौर चला गया।
1581 ई. में अकबर व राजा मानसिंह फ़ौज सहित काबुल गए। राजा मानसिंह कछवाहा ने काबुल के मिर्ज़ा हाकिम को परास्त कर दिया। इस प्रकार मुगल सल्तनत ने काबुल तक अपनी सीमाओं का विस्तार कर दिया। अगले ही वर्ष मिर्ज़ा हाकिम की मृत्यु हो गई और अकबर ने राजा मानसिंह को काबुल का हाकिम बना दिया। राजा मानसिंह ने काबुल में एक किले का निर्माण करवाया।
1582 ई. – मृगेश्वर का ताम्रपत्र :- महाराणा प्रताप इन दिनों ढोलन गांव में रहते थे। वे हर थोड़े दिनों में मेवाड़ के पहाड़ी क्षेत्रों का निरीक्षण स्वयं करते थे। महाराणा प्रताप सेना सहित गोडवाड़ की तरफ गए, जहां उन्होंने मुगलों की एक छावनी देखी। महाराणा प्रताप ने गोडवाड़ के मृगेश्वर नाम के गांव में तैनात मुगलों को मार-भगाकर वहां अधिकार किया व यह गांव उसी समय ताम्रपत्र जारी करके दान कर दिया।
महाराणा प्रताप द्वारा जारी व भामाशाह कावड़िया द्वारा लिखित इस ताम्रपत्र में कुल 7 पंक्तियाँ अंकित हैं। यह ताम्रपत्र फाल्गुन शुक्ल पंचमी संवत् 1638 अर्थात 9 मार्च, 1582 ई. को जारी किया गया था। ताम्रपत्र के अनुसार महाराणा प्रताप के आदेश से कान्हा सांदू नामक चारण कवि को मृगेश्वर नामक गांव प्रदान किया गया।
कान्हा सांदू चित्तौड़ के निकट हुम्प खेड़ी नामक गांव के निवासी थे। कान्हा सांदू हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ थे व इस युद्ध का वर्णन इन्होंने अपने एक गीत में भी किया है।
एक चारण कवि की घटना की जानकारी मुझे उदयपुर स्थित प्रताप गौरव केंद्र से मिली। हालांकि इस घटना की सत्यता का कोई प्रामाणिक सोर्स नहीं है, फिर भी इसे यहां लिखा जा रहा है :- एक चारण कवि पानिपराव मुगल बादशाह अकबर के दरबार में उपस्थित हुए।
पानिपराव ने अपनी पगड़ी उतारी और उसे अपने हाथ में पकड़कर दूसरे हाथ से अकबर को सलाम किया। अकबर ने इस गुस्ताखी का कारण पूछा तो पानिपराव ने कहा कि “हुजूर, ये पगड़ी मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने मेरे दोहों से प्रसन्न होकर मेरे सिर पर रखी है, जब उनका सिर आपके आगे अब तक नहीं झुका, तो भला मैं उनकी पगड़ी को कैसे लज्जित कर सकता हूँ।”
पानिपराव ने इतना कहकर भरे दरबार में खड़े राजपूत राजाओं को दो दोहे सुनाए :- “कुलहीन भये, कुल मलेच्छ मिले, अपकीर्ति सुनात दिसांन दिसांनहिं। देन लगे नवरोज नये, तजि नाम प्रथा सुकहावत खांनहिं।। छोत लगी जु अकबर की, जितहि तित मेटि सके न महांनहिं। पानिप राव कहे सब राजन, बन्दहु रान प्रताप की पांनहिं।।”
अर्थात् “जो अपने वंश गौरव को विस्मृत करके मलेच्छ वंश में विलीन हो रहे हैं, जिसके कारण सभी दिशाओं में आपकी अपकीर्ति सुनाई दे रही है। वे तो नित्य नये प्रकार से नवरोजे दे रहे हैं और यहां तक कि वे अपने नाम की गौरवशाली परम्परा छोड़कर स्वयं को खां कहलाने में गौरव समझ रहे हैं। अकबर के दुष्प्रभाव की छाया जहां तक दृष्टिगोचर हो रही है, जिसे बड़े-बड़े राजागण भी नहीं मिटा सके हैं। ऐसे समय में कवि पानिपराव सभी राजाओं से आव्हान करता है कि वे महाराणा प्रताप के पदत्राणों की पूजा करते हुए उनके मार्ग का अनुसरण करें।”
कवि पानिपराव को महाराणा प्रताप के प्रति इस असीम श्रद्धा की कीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पडी, क्योंकि अकबर ने उसी समय पानिपराव को मृत्युदण्ड दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
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