कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा प्रताप के संघर्ष के दिनों का विस्तृत वर्णन किया। आज के इस भाग में सम्पूर्ण वर्णन जेन्स टॉड द्वारा लिखित पुस्तक से ही लिया गया है। कर्नल जेम्स टॉड लिखता है कि “हर ओर से घिर जाने पर अपने सबसे छिपे बचाव के स्थानों से भी निकाल दिए जाने पर और वृक्षों से आच्छादित घाटी-घाटी में पीछा किए जाने पर महाराणा प्रताप के लिए कोई आशा ही नहीं बची लगती थी।
फिर भी, जबकि उसका पीछा करने वालों को आशा लगी थी कि वह किसी मुंह छिपाने लायक दूरस्थ जगह में खड़ा हांफ रहा होगा। मुगल ऐसी कल्पना कर ही रहे होते थे कि तभी महाराणा प्रताप पर्वतीय प्रदेश में संदेश भेजने के साधनों से अपने अनुयायियों को एकत्र कर लेता था और शत्रु पर बिना बताए टूट पड़ता था। एक चतुराई भरे सैन्य प्रयत्न में फरीद, जो प्रताप को अपना बंदी बनाने से नीचे का सपना भी नहीं देखता था, एक घाटी में घेर लिया गया और उसकी सेना के एक-एक सैनिक का काम तमाम कर दिया गया।
इस तरह के युद्ध में भाड़े पर खड़े किए गए मुगल सैनिक एक ऐसे शत्रु का पीछा करते-करते परेशान हो गए, जो शायद ही कभी दिखता था। उधर बरसात ने पर्वतीय नालों को पानी से बुरी तरह भर दिया, जिससे अनेक जलागार खनिज विष से भर गए और वायु विनाशक गंधों से दूषित हो गई। इस तरह वर्षा ऋतु आने पर सदा महाराणा प्रताप को कुछ विश्राम मिल जाता था।
वर्ष के उपरांत वर्ष इस प्रकार व्यतीत होते गए। हर वर्ष उसके साधन कम हो जाते थे और उसकी विपत्तियां बढ़ जाती थीं। महाराणा की चिंता का मुख्य कारण उसका परिवार था, कि कहीं उनमें से कोई मुगलों के हाथों में न चला जाए। यह भय ऐसा था जो कई बार सच्चा होते-होते रह गया था।
एक बार महाराणा के बच्चों को स्वामिभक्त भीलों ने बचाया था। वे उन्हें टोकरियों में बैठाकर ले गए और जावर की खानों में छिपाकर रखा। वहां भीलों ने उनकी सुरक्षा का और खाने-पीने का प्रबंध किया। जावर और चावंड के आसपास जिन पेड़ों पर वे टोकरियाँ टांगी जाती थीं और जो मेवाड़ के राजपरिवार के बच्चों के उन दिनों झूलने बने हुए थे, अब भी छल्ले और कीलें देखी जा सकती हैं, जिनके सहारे बच्चों को चीतों और भेड़ियों से बचाने के लिए टोकरियों में टांगा जाता था।
इन उलझन भरी मुसीबतों में भी महाराणा प्रताप का धीरज नहीं डिगा। अकबर ने जो जासूस भेजा, वह यह ख़बर लेकर लौटा कि थोड़ा भोजन होने के बावजूद भी प्रताप अपने सरदारों को साथ बैठाकर खाना खाता है, उस समय वे सारे कायदे निभाये जाते हैं, जो सम्पन्नता के दिनों ने निभाये जाते थे। राणा उसी तरह सबसे सुयोग्य सरदार को अपने भोजन में से दोना देता था और उसे उसी तरह अच्छे दिनों में दिखाए जाने वाले सम्मान के साथ स्वीकार किया जाता था।
ऐसी महानता की बातों ने अकबर की आत्मा को भी छू लिया। महाराणा प्रताप ने राजस्थान के हर राजा की प्रशंसा प्राप्त की। शहंशाह अकबर की सेवा में जगमगाते जुलूस में जिन लोगों ने भीड़ कर रखी थी, वे भी महाराणा की प्रशंसा करने से स्वयं को रोक नहीं सके।”
(कर्नल जेम्स टॉड द्वारा यह वर्णन भावनात्मक रूप से लिखा गया है। इस लेख में कुछ किस्से भी हैं, जिनकी सत्यता इतिहास के गर्त में है। सम्भव है जेम्स टॉड ने अपने दौर में प्रचलित सुनी सुनाई बातों या ख्यातों का सहारा लेकर इन घटनाओं का वर्णन किया हो। लेकिन जेम्स टॉड भावनात्मक रूप से महाराणा प्रताप के संघर्ष को लिखने में सफल रहा।)
जेम्स टॉड ने यहां तक का आलेख भावनाओं व किस्से कहानियों से लिखा, परन्तु इसके बाद उसने लिखा कि महाराणा प्रताप की पुत्री का देहांत भूख से हो गया, जिससे विचलित होकर महाराणा प्रताप ने अकबर को संधि पत्र लिखा।
अकबर ने वह संधि पत्र देखा तो अपने सामने सदा महाराणा प्रताप की प्रशंसा करने वाले बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ को बुलावा भेजकर वह पत्र दिखाया। पत्र देखकर पृथ्वीराज को यकीन नहीं हुआ और उन्होंने महाराणा प्रताप को पत्र लिखकर दोहों के माध्यम से उनके सोए स्वाभिमान को जगाया और फिर महाराणा प्रताप ने जीवन भर मुगलों से संघर्ष जारी रखने की सौगंध ली।
वर्तमान समय में यह घटना काफी प्रचलित है, इसलिए इस घटना पर विस्तृत रूप से लेखन आवश्यक है ताकि सत्य सामने आ सके। अगले भाग में बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ व महाराणा प्रताप के बीच पत्र व्यवहार की घटना का विस्तृत वर्णन किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)