महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग 72

14 अक्टूबर, 1579 ई. को अकबर अंतिम बार अजमेर स्थित ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर आया। इसके बाद धार्मिक यात्राओं से उसका विश्वास उठ गया था। अकबर ने बाद में अपने साम्राज्य के सर्वप्रमुख धार्मिक अधिकारी मुख्य सदर अब्दुल नबी को पदच्युत करके निर्वासित कर दिया था।

बहरहाल, अकबर के अजमेर आने का केवल एक ही उद्देश्य नहीं था। अकबर अजमेर से रवाना हुआ और सांभर के निकट पड़ाव डाला। वह मेवाड़ के विरुद्ध एक और अभियान करना चाहता था। उसने शाहबाज़ खां को तीसरी बार मेवाड़ के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजने की योजना बनाई।

शाहबाज़ खां ने मेवाड़ में की गई अपनी कार्रवाईयों से अकबर को प्रसन्न किया था। उसने कुंभलगढ़ जैसा दुर्गम दुर्ग जीता था व मेवाड़ में 80 मुगल चौकियां स्थापित की थीं। हालांकि शाहबाज़ खां ने अपने दूसरे मेवाड़ अभियान के परिणामों से अकबर को नाखुश अवश्य किया था, परन्तु फिर भी अकबर उसे एक और मौका देना चाहता था।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप

15 नवंबर, 1579 ई. को शाहबाज़ खां ने अकबर को वचन दिया कि इस बार अपने मुख्य उद्देश्य में सफल होकर दिखाएगा। इसी दिन शाहबाज़ खां ने भारी भरकम मुगल फ़ौज व अत्यधिक धन के साथ मेवाड़ की तरफ कूच किया। इस बार भी शाहबाज़ खां ने अपने साथ किसी भी हिन्दू अधिकारी को ले जाने से मना कर दिया था। अकबर ने भी शाहबाज़ खां के इस फैसले को सहर्ष स्वीकार किया।

शाहबाज खां ने जावर, छप्पन, वागड़ आदि इलाकों पर शाही थाने तैनात किये। शाहबाज खां ने महाराणा प्रताप व मेवाड़ पर कब्जा करने के लिए अपने सेनापतियों को भेजा। कुम्भलगढ़ के पतन के बाद मुगलों ने धरमेती और गोगुन्दा पर भी अधिकार कर लिया।

महाराणा प्रताप ने गोडवाड़ सूंधा की पहाड़ियों में प्रवेश किया, जहां देवल-पड़िहारों का राज था। ठाकुर रायधवल देवल ने महाराणा प्रताप का जोरदार स्वागत किया और अपनी पुत्री का विवाह महाराणा से करवा दिया। महाराणा प्रताप ने सूंधा में एक बावड़ी व बगीचा बनवाया और ठाकुर रायधवल देवल को “राणा” की उपाधि दी। वहां से लौटकर महाराणा प्रताप ने ढोलन गांव को 3 वर्षों (1579 ई. से 1582 ई.) तक मुख्य केन्द्र बनाए रखा। इन 3 वर्षों के दौरान महाराणा प्रताप ने अपने राज्य की समस्त गतिविधियों का संचालन ढोलन से ही किया।

मुहम्मद खां ने उदयपुर पर अधिकार कर लिया। अमीशाह ने चावण्ड व ओगणा-पानरवा के मध्यवर्ती क्षेत्र में पड़ाव डालकर यहां के भीलों से महाराणा को मिलने वाली मदद रोक दी। फरीद खां नामक मुगल सेनापति ने छप्पन पर हमला किया। इस तरह महाराणा प्रताप चारों तरफ से शत्रुओं से घिर गए।

महाराणा प्रताप के हाथों फरीद खां की करारी शिकस्त :- फरीद खां को इतना अभिमान था कि वह महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए जंजीर बनवाए बैठा था। महाराणा प्रताप मुगल फौज को चकमा देकर फरीद खां के घेरे से निकले और फौजी टुकड़ी जमाकर फरीद खां को ही घेरने की योजना बना ली।

महाराणा प्रताप ने इन विपरीत परिस्थितियों में फरीद खां की फौजी टुकड़ी को छापामार पद्धति से चारों तरफ से इस तरह घेरा कि एक भी मुगल जीवित नहीं बचा। फरीद खां अपनी पूरी फौजी टुकड़ी समेत छप्पन की पहाड़ियों में कत्ल हुआ।

जिस प्रकार इन दिनों शाहबाज़ खां के साथ कोई हिन्दू नहीं था, वैसे ही महाराणा प्रताप के साथ इन दिनों कोई पठान नहीं था। पठानों का साथ हल्दीघाटी के बाद मिला हो, ऐसा कहीं पढ़ने को नहीं मिलता है। मोटे रूप से इन दिनों महाराणा प्रताप का साथ मेवाड़ के राजपूत, भील, ब्राम्हण व जैन जातियों ने दिया। पड़ोसी रियासतों से भी महाराणा प्रताप को कोई सहायता नहीं मिल पा रही थी।

इसमें कोई संशय नहीं कि अनेक मुगल थानों व भारी भरकम फ़ौज की बदौलत शाहबाज़ खां ने मेवाड़ को जकड़ लिया था, परन्तु महाराणा प्रताप ने धैर्य नहीं खोया। मेवाड़ के जिन क्षेत्रों पर शाहबाज़ खां ने कब्ज़ा किया, वहां भी महाराणा प्रताप का दबदबा कायम रहा। मुगल अधीनस्थ मेवाड़ी क्षेत्रों में तैनात मुगलों तक रसद भी नहीं पहुंच पाती थी, भील लोग उसे रास्ते में ही हमला करके लूट लिया करते थे।

भील योद्धा

किसान लोग अपने परिवार, अपने सामान सहित वन की ओर चल पड़े, जहां महाराणा प्रताप के सुझाव से उन्होंने पहाड़ी खेती करना शुरू किया। महाराणा प्रताप के लगातार संघर्ष के साथ-साथ उधर मारवाड़ में राव चंद्रसेन राठौड़ भी स्वतंत्रता का बिगुल बजाए हुए थे। इन दिनों राव चंद्रसेन अजमेर तक पहुंच गए, तो अकबर को उनके विरुद्ध पाइंदा मुहम्मद खां को फ़ौज सहित भेजना पड़ा। दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ, जिसमें मुगल सेना विजयी रही, परन्तु राव चंद्रसेन ने अधीनता स्वीकार नहीं की।

महाराणा प्रताप के तेजमल सिसोदिया के घर में होने की झूठी खबर जब शाहबाज खां को मिली, तो उसने वहां छापा मारा। वहां महाराणा तो नहीं मिले, पर शाहबाज खां ने तेजमल सिसोदिया का घर लूट लिया और वहां कई लोगों का कत्लेआम किया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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