महारानी अजबदे बाई जी पंवार

राजकुमारी अजबदे बाई जी का जन्म मेवाड़ के बिजोलिया ठिकाने में 1542 ई. में हुआ। बिजोलिया मेवाड़ में प्रथम श्रेणी के 16 ठिकानों में से एक है। प्रथम श्रेणी में पंवार राजपूतों का यह एकमात्र ठिकाना है। बिजोलिया वर्तमान में भीलवाड़ा जिले में स्थित है।

राजकुमारी अजबदे बाई के पिता का नाम राव रामरख पंवार था। इनका नाम कुछ जगह माम्रख पंवार भी देखने को मिलता है। वे मेवाड़ के सबसे प्रतिष्ठित सामन्तों में से एक थे।

1557 ई. में राजकुमारी अजबदे बाई का विवाह मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र महाराजकुमार प्रतापसिंह से हुआ। विवाह के समय राजकुमारी अजबदे बाई की आयु 15 वर्ष व महाराजकुमार प्रतापसिंह की आयु 17 वर्ष थी।

अजबदे बाई जी के गुरु मथुरा के विट्ठल राय जी थे। गोंडवाना की रानी दुर्गावती व आमेर की हीर कंवर ने भी इन्हीं गुरु से शिक्षा प्राप्त की। गुरु विट्ठल जी को कृष्ण भक्ति के कारण मुगल यातनाएं भी सहनीं पड़ी। गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने इन गुरु को 108 गांव प्रदान किए थे।

बिजोलिया के महल

16 मार्च, 1559 ई. को कुंवरानी अजबदे बाई जी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिनका नाम भंवर अमरसिंह रखा गया। ये कुँवर प्रताप के ज्येष्ठ पुत्र थे। अमरसिंह जी महान माता-पिता की महान संतान थे।

मान्यताओं के अनुसार इनका जन्म राजसमंद जिले के मचीन्द गांव में होना बताया जाता है, परन्तु सम्भव है कि इनका जन्म चित्तौड़गढ़ दुर्ग में ही हुआ हो। महाराणा उदयसिंह अपने पौत्र के जन्म से अत्यंत प्रसन्न हुए और वे एकलिंगनाथ जी के दर्शन करने के लिए कैलाशपुरी पधारे।

महारानी अजबदे बाई ने एक और पुत्र को जन्म दिया, जिनका नाम कुंवर भगवानदास रखा गया। कुँवर भगवानदास ने एक ग्रन्थ की रचना की थी। कुँवर अमरसिंह व कुँवर भगवानदास ने अपने पिता महाराणा प्रताप के संघर्ष में भरपूर साथ दिया था।

1567 ई. में अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया, तब मेवाड़ राजपरिवार ने राजपीपला में आश्रय लिया। राजकुमारी अजबदे बाई ने भी 4 माह राजपीपला में ही बिताए।

1572 ई. में महाराणा उदयसिंह के देहांत के बाद महाराणा प्रताप का राजतिलक हुआ। सबसे बड़ी रानी होने के कारण महारानी अजबदे बाई मेवाड़ की पटरानी कहलाई।

1572 ई. से 1576 ई. तक महारानी अजबदे बाई गोगुन्दा में रहीं। 1576 ई. में हल्दीघाटी का विश्वप्रसिद्ध युद्ध हुआ। इस युद्ध में महारानी अजबदे बाई जी ने अपने परिवार के कई सदस्यों को खो दिया।

महाराणा प्रताप के ससुर व महारानी अजबदे बाई के पिता बिजौलिया के राव रामरख पंवार, महारानी अजबदे बाई के दो भाईयों कुंवर डूंगरसिंह पंवार व कुंवर पहाडसिंह पंवार ने हल्दीघाटी के युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दिया।

जब महारानी अजबदे बाई जी ने वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को जंगलों में जीवन यापन करते हुए मुगलों से संघर्ष करने की सलाह दी, तो महाराणा को अपनी प्रिय रानी पर बड़ा गर्व हुआ।

लेकिन अगले ही क्षण महाराणा के मुखमंडल पर उभरी चिंता की लकीरों को महारानी अजबदे बाई जी भांप गईं और बोलीं कि “आप हमारी चिंता न करें। हम सहर्ष इस पथ पर आपके साथ उसी प्रकार चलेंगे जिस तरह भगवान

राम के साथ चौदह वर्षों का वनवास माता सीता ने भी काटा था। पांडवों ने भी बारह वर्षों का वनवास काटा था, तब द्रौपदी भी उनके साथ रही। हम ही ऐसा पहली बार नहीं कर रहे, हमसे पहले हमारे पूर्वज ऐसे कष्ट सह चुके

हैं। ये कष्ट तो सच्चे राजपूत की कसौटी है। तुर्कों की अधीनता में तो हमें फूल भी शूल लगेंगे, इसलिए हम आपके साथ इन जंगलों में अंतिम श्वास तक रहेंगे, परन्तु स्वाधीन रहेंगे।”

बिजोलिया के महलों का द्वार

महारानी अजबदे बाई ने भी महाराणा प्रताप के साथ जंगलों में प्रवेश किया व संघर्षपूर्ण जीवन को सहर्ष स्वीकार किया। महाराणा प्रताप के साथ रहकर महाराणा के हौंसले को दोगुना करने में महारानी अजबदे बाई की विशेष भूमिका रही।

महारानी अजबदे बाई के भाई राव शुभकरण पंवार ने न केवल महाराणा प्रताप, बल्कि बाद में महाराणा अमरसिंह के समय भी अंत तक साथ दिया व अपने पूर्वजों की कीर्ति उज्ज्वल की।

1585 ई. में महाराणा प्रताप ने चावंड को राजधानी बनाई। महारानी अजबदे बाई ने अपना आखिरी समय चावंड में ही बिताया। कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है,

परन्तु कहीं पढ़ने में आया था कि महारानी अजबदे बाई का देहांत चावंड में महाराणा प्रताप के देहांत से 7 वर्ष पूर्व लगभग 1590 ई. में हुआ और वहीं उनका अंतिम संस्कार भी किया गया।

महाराणा प्रताप व महारानी अजबदे बाई जी

एक धारावाहिक में अकबर द्वारा भेजे गए सैनिकों द्वारा महारानी अजबदे बाई की हत्या का दृश्य दिखाया गया, जो कि कपोल कल्पित है। इसी धारावाहिक में कुँवर प्रताप व राजकुमारी अजबदे बाई को विवाह से पूर्व कई बार मिलते हुए दिखाया गया है, जो भी काल्पनिक है।

धारावाहिक में मेवाड़ राजपरिवार द्वारा कुंवरानी अजबदे बाई का अपमान करके उन्हें बिजोलिया भेज देने के दृश्य भी दिखाए गए, जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Lakhan raj singh सुरजपुरा कोठारिया
    July 9, 2021 / 1:32 am

    बहुत अछी जानकारी हुक़्म, चावंड हमारी जागिरी गांव था और पानिप राव केलिया वही के थे

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