वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 60)

1577 ई. में रावत गोविन्ददास चुण्डावत का बलिदान :- महाराणा प्रताप ने बेगूं के पहले रावत गोविन्ददास चुण्डावत को जावद-नीमच के थाने पर तैनात किया।

अकबर ने मिर्जा शाहरुख को फौज देकर जावद की तरफ भेजा। मिर्जा शाहरुख के नेतृत्व में मुगल फौज ने यहां हमला किया, तो रावत गोविन्ददास बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

रावत गोविन्ददास रावत साईंदास चुण्डावत के भाई रावत खेंगार चुण्डावत के दूसरे पुत्र थे। रावत गोविन्ददास के बाद उनके पुत्र रावत मेघसिंह चुण्डावत हुए, जिन्होंने महाराणा प्रताप व महाराणा अमरसिंह का भरपूर साथ दिया।

ईडर के दूसरे युद्ध के बाद महाराणा प्रताप मेवाड़ लौट आए और उन्होंने फिर से सिरोही के महाराव सुरताण देवड़ा से सम्पर्क साधा।

महाराणा प्रताप

1577 ई. के फरवरी माह के अंत में पत्र द्वारा तय करके महाराणा प्रताप ने मेवाड़ में और महाराव सुरताण ने सिरोही में मुगलों का विरोध जोर शोर से शुरू कर दिया। मेवाड़ और सिरोही में तैनात मुगल थानों पर स्वाभिमानी योद्धाओं के आक्रमण होने लगे।

सिरोही पर मुगलों का आक्रमण :- अकबर इस समय देपालपुर में था। उसने वहां से बीकानेर के राजा रायसिंह राठौड़ व सैयद हाशिम बारहा के नेतृत्व में एक फौज सिरोही के महाराव सुरताण के विरुद्ध भेजी।

राजा रायसिंह राठौड़ ने बीकानेर से अपने परिवार को बुलावा भिजवाया। महाराव सुरताण को ख़बर मिली कि राजा रायसिंह का परिवार एक फौज की सुरक्षा में सिरोही की तरफ आ रहा है।

क्योंकि बीकानेर के राजा रायसिंह राठौड़ मुगलों का साथ देते हुए लंबे समय से मेवाड़ और सिरोही के विरुद्ध खड़े रहे, इसलिए क्रोधवश महाराव सुरताण ने साथी राजपूतों सहित राजा रायसिंह के परिवार पर आक्रमण कर दिया,

परन्तु राजा रायसिंह के परिवार के साथ आई फौज ने विजय प्राप्त की और महाराव सुरताण को पीछे हटना पड़ा। इस लड़ाई में कई राठौड़ और देवड़ा राजपूत काम आए।

महाराव सुरताण देवड़ा

इस लड़ाई का विस्तृत वर्णन भविष्य में सिरोही के इतिहास की सीरीज में लिखा जाएगा। महाराव सुरताण सिरोही छोड़कर आबू चले गए। मुगल फौज ने सिरोही पर कब्ज़ा करके आबू के प्रसिद्ध अचलगढ़ दुर्ग को भी जीत लिया।

जब कोई मार्ग नहीं बचा, तो महाराव सुरताण को मुगल अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। लेकिन ये उन्होंने मन से नहीं किया था और ना ही ये उनके संघर्ष का अंत था, यह मात्र वही गतिविधि थी, जो बाद में छत्रपति शिवाजी महाराज ने आगरा जाकर की थी।

30 मार्च, 1577 ई. को अकबर का बूंदी पर हमला :- अबुल फजल लिखता है कि “बूंदी के राव सुर्जन हाडा के बड़े बेटे दूदा हाडा ने राणा कीका (महाराणा प्रताप) के बहकावे में आकर बूंदी में बगावत का झण्डा खड़ा कर दिया। शहंशाह ने कोकलताश को फौज समेत भेजकर

दूदा को बूंदी से खदेड़ा और बूंदी फतह कर दूदा के भाई भोज को सौंप दिया। बादशाही फौज बूंदी से फतहपुर सीकरी के लिए निकली और पहले ही पड़ाव पर उन्हें खबर मिली कि दूदा ने फिर बग़ावत कर दी।”

महाराणा प्रताप ने इस लड़ाई में राव दूदा हाड़ा को फौजी सहायता भी उपलब्ध कराई थी। जब राव दूदा ने दूसरी बार मुगल विद्रोह किया, तब मेवाड़ के कुछ सिपाही भी उनके साथ थे।

हालांकि फिर भी राव दूदा के पास अधिक सैनिक नहीं थे, लेकिन इन स्वाभिमानी वीरों ने मुगल फौज के सैन्य शिविर उर्दू बाजार पर आक्रमण करके शिविर को लूट लिया।

अबुल फ़ज़ल लिखता है कि “दूदा फिर से बूंदी में आकर लूटमार करने लगा और शाही फौज को तंग करने लगा। बूंदी में जो थोड़े-बहोत बादशाही फौजी आदमी थे,

वे खौफ और बेवकूफी के सबब से बूंदी छोड़ने का इरादा करने लगे। शहंशाह ने कोकलताश को फिर से बूंदी भेजा, कोकलताश ने वहीं रहना तय किया, ताकि दुश्मन बूंदी पर कब्जा ना कर सके। दूदा ने एक पहाड़ी पर बगावत का झण्डा फहरा दिया,

कोकलताश वहां पहुंचा। दोनों तरफ से लड़ाई हुई, जिसमें दूदा के 120 आदमी कत्ल हुए। दूदा हार कर भाग निकला। सरकश (बागी) लोगों के शैतानी खयालों की धूल साफ कर दी गई।”

यहां राव दूदा के पराक्रम व स्वाभिमान की प्रशंसा करनी होगी, क्योंकि अकबर ने 1569 ई. में ही रणथंभौर जीतकर बूंदी के राव सुर्जन हाड़ा से अधीनता स्वीकार करवा ली थी।

राव सुर्जन के छोटे बेटे राव भोज भी मुगल दरबार में जाने लगे। यदि राव दूदा चाहते तो मुगल अधीनता स्वीकार करके ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते बूंदी पर राज कर सकते थे,

परन्तु उन्हें मुगल ध्वज के तले शासन करने के बजाय महाराणा प्रताप का साथ अधिक रास आया। राव दूदा हाड़ा ने बूंदी की इस लड़ाई में परास्त होकर, परन्तु सिर उठाकर मेवाड़ की तरफ प्रस्थान किया।

23 अप्रैल, 1577 ई. :- अकबर फ़ौज समेत देपालपुर से रवाना हुआ और रणथंभौर पहुंचा। वहां पहले ही मुगल फ़ौज का कब्ज़ा हो चुका था। अकबर वहां कुछ दिन रुका।

अकबर

वह बूंदी की गतिविधियों का बारीकी से निरीक्षण भी करना चाहता था। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!