वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 54)

27 नवम्बर, 1576 ई. को अकबर द्वारा बांसवाड़ा कूच करना :- डेढ़ महीने तक अकबर 80 हज़ार की फ़ौज समेत मेवाड़ में भटकता रहा, लेकिन महाराणा प्रताप पर विजय पाने में असफल रहा।

तत्पश्चात अकबर ने विचार किया कि मेवाड़ की पड़ोसी रियासत बांसवाड़ा पर विजय प्राप्त की जाए। अकबर के बांसवाड़ा जाने का अर्थ ये नहीं था कि महाराणा प्रताप के विरुद्ध संघर्ष पर विराम लग गया।

अकबर ने बांसवाड़ा जाने से पूर्व मेवाड़ में सैन्य सुरक्षा को मजबूती प्रदान कर दी थी। इससे पूर्व अकबर ने महाराणा प्रताप के मित्रों के विरुद्ध भी फ़ौजें भेज दी थीं।

अब अकबर मेवाड़ के दक्षिण में पड़ने वाली रियासतों पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहता था। अकबर द्वारा मेवाड़ की इन पड़ोसी रियासतों पर आक्रमण का मूल उद्देश्य महाराणा प्रताप तक उनके पड़ोसियों से मिलने वाली सहायता पर पूर्ण प्रतिबंध था।

महाराणा प्रताप

बांसवाड़ा के शासक महाराणा प्रताप के पूर्वज सामंतसिंह जी के ही वंशज थे। सामंतसिंह जी ने 12वीं सदी में मेवाड़ छोड़कर वागड़ में अपना राज स्थापित कर लिया था।

इन्हीं सामंतसिंह के वंश में 16वीं सदी में डूंगरपुर के रावल उदयसिंह के छोटे भाई जगमाल ने बांसवाड़ा में अहाड़ा गुहिलोत वंश की रियासत की नींव रखी।

अकबर ने उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों का उत्तरदायित्व आमेर के राजा भगवानदास कछवाहा और अब्दुल्ला खान को सौंप दिया।

अकबर मेवाड़ में सैन्य व्यवस्था को सुदृढ़ करके व जगह-जगह शाही थाने स्थापित करता हुआ बांसवाड़ा की तरफ रवाना हुआ। बांसवाड़ा पर इस समय रावल प्रतापसिंह अहाड़ा का राज था।

दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में अकबर बांसवाड़ा पहुंचा। बांसवाड़ा के शासक निरंतर महाराणा प्रताप की सहायता करते थे, इसलिए अकबर के दृष्टिकोण से यह अभियान महत्वपूर्ण था।

बांसवाड़ा गढ़

बांसवाड़ा के शासक रावल प्रतापसिंह अकबर के आक्रमण का सामना करने में असमर्थ रहे और उन्होंने अकबर के शिविर में जाकर मुगल अधीनता स्वीकार कर ली।

अकबर को बांसवाड़ा में ख़बर मिली कि जिन हज यात्रियों की सुरक्षा के लिए उसने फौजी टुकड़ी भेजी थी, वह फौज उन्हें अहमदाबाद तक पहुंचा आई, परन्तु समुद्र तट के पास जहाज नहीं मिल रहे थे।

महाराणा प्रताप के ससुर ईडर के राय नारायणदास राठौड़ के विरूद्ध अकबर द्वारा भेजी गई फौज के नेतृत्वकर्ता कुलीज खां को फ़ौरन बांसवाड़ा बुलाया गया। फिर अकबर ने कुलीज खां को हज यात्रियों की मदद ख़ातिर सूरत भेज दिया।

दिसम्बर, 1576 ई. में डूंगरपुर के महारावल आसकरण अकबर से मिलने बांसवाड़ा गए और वहां उन्होंने मुगल अधीनता स्वीकार कर ली। अबुल फजल लिखता है कि

“डूंगरपुर के रावल आसकरण ने बादशाही मातहती कुबूल की। इस बात से नाराज़ होकर आसकरण का बेटा साहसमल मेवाड़ के राणा कीका के पास चला गया और उससे हाथ मिला लिया”

डूंगरपुर का जूना महल

इस प्रकार डूंगरपुर और बांसवाड़ा पर मुगल आधिपत्य स्थापित होने से मेवाड़ के दो दक्षिणी आधार टूट गए। इन दोनों रियासतों से महाराणा प्रताप को सहायता मिलने की अब कोई गुंजाइश शेष नहीं रह गई थी।

परंतु महाराणा प्रताप को जब वागड़ के इन दो राजाओं द्वारा मुगल अधीनता स्वीकार करने के बारे में पता चला, तो उनके क्रोध की कोई सीमा न रही, क्योंकि उक्त दोनों ही शासक मेवाड़ के गुहिल वंश से ही निकले थे।

वागड़ के इन शासकों द्वारा अधीनता स्वीकार करने के संबंध में अबुल फ़ज़ल कुछ बनावटी बातें लिखता है कि “डूंगरपुर और बांसवाड़ा के राजाओं के अलावा भी इस इलाके के जो लोग बग़ावत कर रहे थे,

वो पछतावा करने के लिए शहंशाह के सामने हाज़िर हुए। जब कोई पछतावा करते हुए बहाने भी बनाये तो शहंशाह उसको माफ़ कर देते हैं और उसके सामने दरियादिली दिखाते हैं। जब शाही ख़िदमत में कुताही की गलती और

शर्म इन लोगों ने मंज़ूर की, तो शहंशाह ने इनको माफ़ कर दिया और इन लोगों की ज़िंदगी, रुतबा और वतन अपनी हिफ़ाज़त में ले लिया।”

अकबर

इस समय तक राजपूताने में आमेर, मारवाड़, बूंदी, डूंगरपुर, बांसवाड़ा रियासतों पर मुगल आधिपत्य स्थापित हो चुका था। सिरोही, जालोर, ईडर आदि रियासतों ने संघर्ष जारी रख रखा था,

परन्तु अकबर द्वारा फ़ौजें भेजे जाने के कारण ये रियासतें भी इस समय मौन थीं। अजमेर राजपूताने में मुगल आधिपत्य क्षेत्र का केंद्र बिंदु था।

चहुंओर मुगल आधिपत्य स्थापित होने के बावजूद सैन्यबल में सौ गुना अधिक शक्तिशाली मुगल बादशाह अकबर के साम्राज्य के बीच स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रखे हुए थे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप।

महाराणा प्रताप

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

2 Comments

  1. Amit Kumar
    June 1, 2021 / 12:10 pm

    जय परमवीर महाराणा प्रताप

  2. aditya singh Chapaner
    June 3, 2021 / 12:33 pm

    ताकतवर सभी सहायता करते हैं उस समय यह सभी देसी राजा महाराणा प्रताप का साथ देते तो इतिहास कुछ और होता है

error: Content is protected !!