अक्टूबर, 1576 ई. में अकबर गोगुन्दा पहुंचा। गोगुन्दा में अकबर ने कुतुबुद्दीन खां, राजा भगवानदास कछवाहा और राजा मानसिंह कछवाहा को तैनात कर रखा था,
लेकिन जब अकबर वहां पहुंचा तब उसके ये सेनापति महाराणा प्रताप की खोज में गोगुन्दा के आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में सैनिकों समेत प्रयासरत थे।
अकबर के गोगुन्दा आगमन का समाचार सुनकर उक्त तीनों ही सेनापति तुरंत गोगुन्दा पहुंचे। अकबर इन पर क्रोधित हुआ, क्योंकि वे महाराणा प्रताप की खोज में असफल रहे।
अकबर ने उनका दरबार में आना प्रतिबंधित कर दिया। राजा मानसिंह के लिए हल्दीघाटी के बाद यह दूसरा अवसर था, जब उनका शाही दरबार में आना प्रतिबंधित किया गया। कुछ समय बाद यह पाबंदी हटा दी गई।
अकबर ने कुतुबुद्दीन खां, राजा भगवानदास कछवाहा और राजा मानसिंह कछवाहा को गोगुन्दा में रहकर महाराणा प्रताप की खोज करने के आदेश दिए।
साथ ही साथ अकबर ने पिंडवाड़ा और हल्दीघाटी में भी शाही थाने नियुक्त कर दिए, ताकि महाराणा प्रताप के लिए गुजरात जाने के सारे मार्ग बंद हो जाएं।
अकबर की उदयपुर विजय :- नवंबर, 1576 ई. में अकबर गोगुन्दा से उदयपुर के लिए रवाना हुआ। महाराणा प्रताप पहले ही उदयपुर खाली करवा चुके थे,
क्योंकि वे अकबर को भली भांति जानते थे और वे नहीं चाहते थे कि चित्तौड़ जैसे नरसंहार की पुनरावृत्ति हो। नतीजतन अकबर ने बिना खून खराबे के उदयपुर पर अधिकार कर लिया।
अकबर ने उदयपुर जीतकर उसको अजमेर परगने का हिस्सा बना दिया और उदयपुर का नाम मुहम्मदाबाद रख दिया और उदयपुर में सोने के सिक्के ढलवाए, जिन पर लिखवाया गया कि
“सिक्का ढाला गया मुहम्मदाबाद उर्फ उदयपुर में, जो जीता जा चुका है”। अकबर ने उदयपुर की खुबसूरती की तारीफ की और उदयपुर के सौन्दर्य का लाभ उठाने के लिए वह कुछ दिन यहीं रहा।
उदयपुर में रहते हुए अकबर ने अपनी सैनिक व्यवस्था और सुदृढ़ की। अकबर ने उदयपुर में रहते हुए गोगुन्दा संदेश भिजवाया और वहां से कुतुबुद्दीन खां, राजा मानसिंह और राजा भगवानदास को बुलवाया
और उनको फ़ौज समेत देबारी के घाटे पर तैनात किया। देबारी का घाटा चित्तौड़ की तरफ से आने वालों के लिए उदयपुर का प्रवेश द्वार था।
इन्हीं दिनों अकबर को सूचना मिली कि महाराणा प्रताप रामा गांव में हैं। रामा गांव एकलिंग जी मंदिर के निकट स्थित है। अकबर ने तुरंत एक फ़ौज रामा गांव की तरफ रवाना की।
लेकिन वहां जाकर उन्हें मालूम हुआ कि ये मात्र एक अफवाह थी। इस संबंध में अकबर का दरबारी लेखक व अकबरनामा का लेखक अबुल फजल लिखता है
“शाही फौज ने राणा को रामा गांव में ढूंढा, पर कुछ हाथ न लगा। शहंशाह ने गुस्से में आकर कुछ शाही सिपहसलारों को नौकरी से निकाल दिया”
अकबर ने उदयपुर में शाह फखरुद्दीन व राजा मानसिंह के काका जगन्नाथ कछवाहा को तैनात किया। अकबर ने मेवाड़ में जितनी भूमि जीती, उसकी सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम कर दिए।
अकबर का उद्देश्य ये था कि मेवाड़ के पहाड़ों में इतनी मज़बूती से नाकेबंदी कर दी जाए, कि महाराणा प्रताप बचकर न निकल सके और आत्मसमर्पण कर दे।
अकबर ने गुजरात पर सुरक्षा के प्रबन्ध कड़े कर दिये, ताकि महाराणा प्रताप गुजरात न जा सके। साथ ही साथ अकबर ने दिवेर, देसूरी, देवल व देबारी में बड़े शाही थाने तैनात किए, जहाँ हजारों की फौजें रखी गईं।
जहां-जहां अकबर गया, वहां-वहां उसे विजय मिली, परन्तु वह अपने वास्तविक उद्देश्य में सफल नहीं हो सका। अकबर मेवाड़ में डेढ़ महीने का समय व अपार धन संपदा गंवा चुका था।
इन डेढ़ महीनों में अकबर को वास्तविकता का अनुभव हुआ। उसने राजा मानसिंह की असफलता के कारण उनकी 2 बार ड्योढ़ी बन्द की थी अर्थात दरबार में आने पर प्रतिबंध लगा दिया था,
परन्तु अब अकबर को मालूम हुआ कि मेवाड़ की परिस्थितियां कितनी विपरीत हैं। अकबर स्वयं भी महाराणा प्रताप की चतुरता का कायल हो गया।
हिंगोलदास राठौड़ द्वारा गौरक्षा :- जब भारी संख्या में मुगल फौज मेवाड़ में हर जगह लूटपाट व अत्याचार कर रही थी, तभी एक जगह कुछ मुगल गायें खोलकर ले गए।
रास्ते में इनका सामना अखैराज राठौड़ के पुत्र हिंगोलदास राठौड़ से हो गया। हिंगोलदास राठौड़ ने मुगलों को मार-भगा कर गौ रक्षा की।
चारण कवि रामा सांदू का बलिदान :- रामा सांदू सोजत के निवासी थे। सोजत वर्तमान में पाली जिले में स्थित है। अकबर जब मेवाड़ में था, तब जगह-जगह शाही थाने तैनात होते थे और लड़ाईंया हर रोज हर पहर हुआ करती थीं।
इन्हीं छापामार लड़ाईंयों के दौरान चारण कवि रामा सांदू मुगलों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। रामा सांदू को हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति को प्राप्त होना बताया जाता है, जो कि गलत है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)