वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 52)

अक्टूबर, 1576 ई. में महाराणा प्रताप को मारने के लिए अकबर द्वारा किए गए प्रयास :- अकबर फ़ौज समेत गोगुन्दा की तरफ बढ़ रहा था। वह मेवाड़ में स्थापित मुगल थानों पर ठहरता हुआ मोही गांव में पहुंचा। अकबर ने स्वयं मोही में कुछ दिन बिताए।

मोही वर्तमान में राजसमंद जिले में स्थित है व भाटी राजपूतों का ठिकाना है। मोही में ठहरकर अकबर ने अपनी फ़ौज को दुरुस्त किया और महाराणा प्रताप को परास्त करने की योजनाएं बनाने में व्यस्त हो गया।

मोही में ठहरते हुए ही अकबर ने अपने साम्राज्य के लिए भी कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए। अकबर ने ख़्वाजा शाह मंसूर शीराजी को वज़ीर नियुक्त किया, जो अकबर की दूसरी आत्मा और तीसरा नेत्र हो गया।

अकबर ने मोही के साथ मदारिया गांव पर भी अधिकार कर लिया। मदारिया भी राजसमंद जिले में ही स्थित है। अकबर की मेवाड़ पर चढ़ाई को निरर्थक करने के लिए महाराणा प्रताप ने भी आंतरिक प्रबंध को सुदृढ़ किया।

अकबर

महाराणा प्रताप ने पड़ोसी रियासतों में मौजूद अपने मित्रों जैसे कि जालोर के ताज खां, सिरोही के राव सुरताण देवड़ा, मारवाड़ के राव चंद्रसेन राठौड़, ईडर के राय नारायणदास राठौड़, बूंदी के राव दूदा हाड़ा आदि से सम्पर्क स्थापित करने का पुनः प्रयास किया,

ताकि इस चढ़ाई के दौरान बाहरी सहायता प्राप्त की जा सके, लेकिन अकबर ने मेवाड़ पर चढ़ाई से पहले ही महाराणा प्रताप के इन मित्रों के विरुद्ध सेनाएं भेजकर महाराणा की इस आशा को निष्फल सिद्ध कर दिया था।

परिणाम ये हुआ कि जहां-जहां महाराणा प्रताप ने मुगल सैनिकों को मार-भगाकर अधिकार स्थापित किया था, वहां फिर से मुगलों ने अधिकार कर किया।

महाराणा प्रताप अकेले अवश्य पड़ गए थे, परन्तु उनके साथ दृढ़ निश्चय, अदम्य साहस, अनुकरणीय वीरता व कभी हार न मानने की हिम्मत थी।

अकबर के साथ मुगल फ़ौजों के अतिरिक्त उसके कई अधीनस्थ राजाओं का सैन्यबल भी था, जिसके सामने महाराणा प्रताप की फौजी संख्या दो फीसदी थी।

संकटग्रस्त दिनों में महाराणा प्रताप भोजन करते हुए

यदि महाराणा प्रताप के परिवार की कोई एक भी महिला सदस्य या स्वयं महाराणा प्रताप मुगलों के कब्जे में आ जाते, तो इस संघर्ष पर वहीं विराम लग जाता। समस्याएं अनेक थीं, परन्तु महाराणा ने धैर्य व समझदारी से काम लिया।

महाराणा प्रताप ने अकबर के इस भयंकर आक्रमण को निष्फल करने के लिए विशिष्ट रणनीति अपनाई। अकबर का सीधा सामना कहीं नहीं किया गया, परन्तु उसे मेवाड़ में पैर जमाने का अवसर भी कहीं नहीं दिया गया।

जहां-जहां भी शाही सेना कब्ज़ा करती, वहां-वहां कब्ज़ा ढीला होने पर महाराणा प्रताप पुनः आक्रमण करके विजय प्राप्त कर लेते थे। ग्रंथ वीरविनोद में कविराजा श्यामलदास लिखते हैं कि

“साफ़ मुल्क में कुछ लड़ाई नहीं हुई, लेकिन पहाड़ों में शाही फ़ौज पर महाराणा के सैनिक हमला करते थे। बादशाह ख़ुद गोगुन्दा में आ पहुंचा। महाराणा प्रतापसिंह के बहुत से राजपूत

हल्दीघाटी की लड़ाई में काम आ गए थे, इस ख़ातिर बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी गई, लेकिन महाराणा की बहादुराना हिम्मत और जिस्मानी ताकत में बिल्कुल फ़र्क़ न आया।”

अकबर ने मदारिया में अब्दुर्रहमान मुअयिद बेग व जलालुद्दीन बेग को 500 घुड़सवारों के साथ तैनात किया। अकबर ने सबसे बड़ा शाही थाना मोही में तैनात किया,

जहां उसने 3000 घुड़सवारों के साथ गाजी खां बदख्शी, मुजाहिद बेग, सुभान कुली तुर्क, शरीफ खां अतका को तैनात किया।

अकबर मोही को केन्द्र बनाकर महाराणा प्रताप को पकड़ने या मारने के लिए लगातार फौजें भेजता रहा, पर हर बार असफल हुआ। अकबर 80,000 की भारी-भरकम फौज लेकर मेवाड़ के जंगलों में फिर रहा था,

लेकिन तब भी उसे महाराणा प्रताप का इतना खौफ था कि उसने एक खास फौजी टुकड़ी को अपने आगे-आगे चलाया। अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है कि “मोही गाँव में शहंशाह ने पड़ाव डाला। इस गाँव ने भी

कुछ दिनों तक शहंशाह की मौजूदगी से फख्र महसूस किया होगा। शहंशाह ने यहां की रअय्यत का भी हाल जाना। शहंशाह ने अपने और शाही फौज के आगे एक खास फौजी टुकड़ी तैनात की, ताकि राणा अचानक हमला

न कर दे। शहंशाह ने सब सिपहसालारों को हुक्म दिया कि वह शैतान कलहकारी राणा जब भी शर्मिन्दगी की पहाड़ियों से निकले, उससे बदला लिया जाए।”

(अबुल फ़ज़ल द्वारा ऐसे शब्दों का प्रयोग उसकी बेचैनी सिद्ध करता है और पता चलता है कि महाराणा प्रताप ने छापामार युद्ध प्रणाली से मुगलों का जीना दुभर कर रखा था।)

1576 ई. – महाराज शक्तिसिंह की भैंसरोडगढ़ विजय व महाराणा से भेंट :- महाराज शक्तिसिंह महाराणा प्रताप से भेंट करने निकले। उन्हें खाली हाथ जाना ठीक न लगा, तो रास्ते में 500 मेवाड़ी सैनिकों के साथ भैंसरोडगढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर दिया।

महाराज शक्तिसिंह ने दुर्ग जीतकर महाराणा प्रताप को भेंट किया व महाराणा से पिछले गुनाहों की क्षमा मांगी। महाराणा प्रताप ने महाराज शक्तिसिंह को क्षमा किया व भैंसरोडगढ़ दुर्ग फिर से महाराज शक्तिसिंह को दे दिया।

साथ ही महाराणा प्रताप ने शक्तिसिंह जी को एक हाथी व एक घोड़ा भी भेंट किया। महाराणा प्रताप की माता जयवन्ता बाई इसी दुर्ग में रहती थीं,

क्योंकि वे शक्तिसिंह जी को भी बहुत स्नेह करती थीं व उम्र की अधिकता के कारण महाराणा प्रताप के साथ जंगलों में नहीं रह सकती थीं।

मुगलों को मारते हुए महाराज शक्तिसिंह जी

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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