वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 50)

अक्टूबर-नवम्बर, 1576 ई. में अकबर द्वारा की गई नाकेबन्दी :- महाराणा प्रताप की खोज में अकबर ने नादोत में सैयद हाशिम व बीकानेर के राजा रायसिंह राठौड़ को फ़ौज समेत तैनात किया।

राजा रायसिंह राठौड़ महाराणा प्रताप के बहनोई थे, फिर भी महाराणा के विरुद्ध मोर्चे पर तैनात रहे। इसी प्रकार अकबर ने तरसुन खां को पट्टन-गुजरात में तैनात किया,

ताकि महाराणा प्रताप गुजरात न जा सकें और ना ही गुजरात से महाराणा को किसी प्रकार की सहायता प्राप्त हो सके।

अकबर द्वारा दूसरी बार गोगुन्दा पर फ़ौज भेजना :- गोगुन्दा पर मुगल सेना ने सर्वप्रथम हल्दीघाटी युद्ध के अगले दिन कब्ज़ा किया था। तत्पश्चात महाराणा प्रताप ने सितंबर, 1576 ई. में गोगुन्दा पर पुनः विजय प्राप्त करके,

अकबर

वहां मांडण कूंपावत को फौजी टुकड़ी समेत तैनात कर दिया था। अब अकबर ने दोबारा गोगुन्दा पर विजय पाने के लिए फ़ौज भेजी।

अकबर द्वारा भेजी गई इस फ़ौज का नेतृत्व कुतुबुद्दीन खां, राजा मानसिंह कछवाहा और राजा भगवानदास कछवाहा ने किया। जब महाराणा प्रताप को पता चला कि मुगल फौज गोगुन्दा के लिए रवाना हो चुकी है,

तो महाराणा ने एक भील को संदेश देकर भेजा और गोगुन्दा से मांडण कूम्पावत को तुरंत गोगुन्दा खाली करने का आदेश दिया। मुगल फ़ौज जब गोगुन्दा पहुंची, तो उन्हें वहां एक व्यक्ति दिखाई नहीं दिया।

गोगुन्दा पर एक बार फिर मुगलों का अधिकार हुआ, लेकिन जिस कार्य के लिए ये सेना भेजी गई, वह कार्य नहीं हो पाया। अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है कि

“शहंशाह के गोगुन्दा पहुंचने पर राणा पहाड़ियों में छिप गया। शहंशाह ने कुतुबुद्दीन खां, कुंवर मानसिंह और राजा भगवानदास को हुक्म दिया कि वे राणा कीका के मुल्क को रौंद डाले। राणा का पीछा करे, उसे परेशान करे और खत्म कर दें”

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप की दोबारा गोगुन्दा विजय :- गोगुन्दा के खाली पड़े महलों में समय न गंवाकर मुगल फौज के सेनापतियों ने पहाड़ी इलाके में धावा करने का निश्चय किया, लेकिन मेवाड़ के पहाड़ी क्षेत्रों से वे इतने अच्छे से परिचित नहीं थे।

कुतुबुद्दीन खां, राजा मानसिंह और राजा भगवानदास जहां भी जाते वहां महाराणा प्रताप के सैनिक अचानक पहाड़ियों से निकलकर उन पर हमले करते। इन्हीं हमलों से तंग आकर इन तीनों को गोगुन्दा छोड़कर जाना पड़ा।

जाने से पहले राजा मानसिंह ने गोगुन्दा में एक शाही थाना तैनात कर दिया था। महाराणा प्रताप ने सेना तैयार की और स्वयं के नेतृत्व में अचानक गोगुन्दा पर आक्रमण किया व विजयी हुए।

गोगुन्दा पर महाराणा प्रताप का अधिकार हुआ। महाराणा प्रताप ने कुछ समय तक गोगुन्दा में ही रहना तय किया, लेकिन वे जानते थे कि उनकी गोगुन्दा विजय अधिक दिनों तक कायम नहीं रह पाएगी,

इसलिए उन्होंने गोगुन्दा में कोई अधिक धन संपदा नहीं रखी। रसद उतनी ही रखी गई, जितनी आवश्यकता थी। बदनोर की लड़ाईयाँ :- अकबर ने एक फ़ौज बदनोर की तरफ रवाना की।

बदनोर के मेड़तिया राठौड़ों ने मुगल फौज का सामना किया और वीरगति को प्राप्त हुए। इस समय बदनोर के ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया महाराणा प्रताप के साथ थे।

महाराणा प्रताप ने बदनोर के ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया की जागीर छीन जाने के कारण उनको विजयपुर का परगना जागीर में दिया।

कुछ समय बाद महाराणा प्रताप ने बदनोर पर सेना भेजकर मुगल फौज को मार-भगा कर विजय प्राप्त की व बदनोर की जागीर फिर से ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया को दे दी।

चारण कवि माला सांदू का पश्चाताप :- चारण कवि माला सांदू महाराणा प्रताप से भेंट करने मेवाड़ आए। माला सांदू महाराणा प्रताप के विरोधी पक्ष से थे।

माला सांदू ने महाराणा प्रताप से भेंट के बाद कुछ दोहे लिखे, जिनमें उन्होंने पश्चाताप की बातें लिखी है :- मह लागौ पाप अभनमा मोकल, पिंड अदतार भेटतां पाप। आज हुआ निकलंक अहाडा, पेखै मुख तांहणे प्रताप।।

महाराणा प्रताप

चढता कलजुग जोर चढतौ, घणा असत जाचतौ घणौ। मिल तां समै राण मेवाड़ा, टलियौ प्राछत देह तणौ।। स्रग भ्रतलोक मुणै सीसोदा, पाप गया ऊजमै परा।

होतां भेट समै राव हीदू, हुवा पवित्र संग्रामहरा।। ईखे तूझ कमल ऊदावत, जनम तणों गो पाप जुवौ। हैकण बार ऊजला हीदू, हर सूं जाण जुहार हुवौ।।”

अर्थात् हे महाराणा प्रताप, कलियुग के जोर से मिथ्यावादी एवं अधर्मी राजाओं से याचना करने एवं मिलने से मुझ पर पाप चढ़ गया था, लेकिन आपके उज्जवल मस्तक का एक बार दर्शन करने मात्र से ही ईश्वर के दर्शन करने की तरह मैं उस पाप से मुक्त हो गया हूँ।

माला सांदू के इन दोहों से यह बात और भी पुख्ता हो जाती है कि महाराणा प्रताप के चरित्र में निसंदेह ऐसे महान गुणों का भंडार था, जिनसे हर कोई व्यक्ति आकर्षित हो जाता था।

भील, पठान, राजपूत, चारण, जैन आदि जातियों में एक ही समय पर समन्वय बिठा पाना कोई साधारण कार्य नहीं था। जब माला सांदू की भेंट महाराणा प्रताप से हुई, तो इन चारण कवि पर भी उस महान व्यक्तित्व का प्रकाश पड़ना कोई अचरज की बात नहीं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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