11 अक्टूबर, 1576 ई. को अकबर ने 80 हज़ार सिपाहियों की विशाल फ़ौज के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई की। अकबर के साथ मेवाड़ आने वाले प्रमुख हिन्दू सिपहसलारों की सूची :-
आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा, आमेर के राजा भगवानदास कछवाहा, भगवन्तदास कछवाहा, राजा मानसिंह के काका जगन्नाथ कछवाहा, राजा भारमल के भाई गोपालसिंह के बेटे नाथा कछवाहा,
नाथा कछवाहा के बेटे मनोहरदास कछवाहा, राजा भारमल के भतीजे राव खंगार कछवाहा, बीकानेर के राजा रायसिंह राठौड़, हीरा भान, लूणकरण कछवाहा, राजा बीरबल आदि।
अकबर के साथ मेवाड़ आने वाले प्रमुख मुस्लिम सिपहसलारों की सूची :- तरसुन खां, कुतुबुद्दीन खां, सैयद हाशिम, शाहबाज खां, मुजाहिद बेग, गाज़ी खां बदख्शी, सुभान कुली तुर्क, शरीफ खां अतका,
कोकलताश, आसफ खां, कुतुब खां, मिर्जा मुहम्मद मुफीम, मुहम्मद मुकीम, कुलीज खां, तैमूर बदख्शी, ख्वाजा गयासुद्दीन, नूर किलीज, मीर अबुलगौस, नकीब खां, उमर खां, हसन बहादुर,
अब्दुल्ला खां, शाह फखरुद्दीन, जलालुद्दीन बेग, अब्दुर्रहमान मुअयिद बेग, कासिम खां मीरबहर, बैरम खां का बेटा अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना आदि शामिल थे।
इन बादशाही सिपहसलारों में राजा मानसिंह, लूणकरण कछवाहा, मनोहरदास कछवाहा, नाथा कछवाहा, जगन्नाथ कछवाहा, सैयद हाशिम, आसफ़ खां, गाज़ी खां बदख्शी ने हल्दीघाटी युद्ध में भी भाग लिया था,
इसलिए ये मेवाड़ के ख़िलाफ़ होने वाली लड़ाई में अनुभवी थे। बादशाही सिपहसलार नकीब खां ने हल्दीघाटी युद्ध में जाने से मना कर दिया था, क्योंकि उस युद्ध का नेतृत्व हिन्दू राजा मानसिंह कर रहे थे।
परंतु अब क्योंकि मुगल सेना का नेतृत्व अकबर स्वयं कर रहा था, इसलिए नकीब खां भी मेवाड़ के ख़िलाफ़ होने वाली इस लड़ाई में शामिल हो गया।
अकबर इस मेवाड़ अभियान में कोई भूल नहीं करना चाहता था। उसे अच्छी तरह ज्ञात था कि महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की पड़ोसी रियासतों में मुगल विरोधियों से संपर्क स्थापित कर लिया है।
अकबर को यह संभावना थी कि मेवाड़ पर पुरज़ोर मुगल आक्रमण के समय महाराणा प्रताप को अपने इन पड़ोसी मित्रों के द्वारा मदद मिल सकती है। इसलिए मेवाड़ पर आक्रमण से पहले अकबर ने महाराणा प्रताप के इन सहयोगियों के विरुद्ध फ़ौजें भेजना शुरू कर दिया।
सिरोही व जालोर पर मुगल आक्रमण :- अकबर ने बीकानेर के राजा रायसिंह राठौड़, जो कि महाराणा प्रताप के बहनोई थे, को सिरोही व जालोर की तरफ भेजा। उस समय सिरोही पर राव सुरताण देवड़ा व जालोर पर ताज खां का राज था।
हालांकि इन दोनों ने अकबर के गुजरात अभियान के समय मुगल अधीनता स्वीकार कर ली थी, परन्तु महाराणा प्रताप का संदेश पाकर पुनः मुगल विरोधी गतिविधियां करना शुरू कर दिया।
अकबर ने राजा रायसिंह राठौड़ के साथ तरसुन खां और हल्दीघाटी में मुगलों की हरावल के नेतृत्वकर्ता सैयद हाशिम बारहा को भी फ़ौज सहित भेजा।
अकबर ने राजा रायसिंह को स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि जालोर और सिरोही के शासकों को पहले समझाया जाए और यदि न माने तो उनके मुल्क को नष्ट कर दिया जाए।
राव सुरताण देवड़ा ने परिस्थितियों को समझते हुए मुगल अधीनता स्वीकार कर ली और कुछ महीनों तक शान्त रहे। हालांकि बाद में इन्होंने फिर से मुगलों के खिलाफ बगावत कर दी थी,
लेकिन कुछ महीनों तक राव सुरताण मुगल विरोध नहीं कर पाए जिससे अकबर को मदद मिली। जालोर के ताज खान ने फिर कभी मुगलों का विरोध नहीं किया। इस तरह जालोर पर मुगलों का अधिकार हुआ।
ईडर पर मुगल आक्रमण :- अकबर ने महाराणा प्रताप के ससुर ईडर के राय नारायणदास राठौड़ को पराजित किया, जिससे राय नारायणदास को भी कुछ महीने शान्त रहना पड़ा।
ईडर वर्तमान में गुजरात राज्य में स्थित है। हालांकि राय नारायणदास ने मन से मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की थी। समय आने पर उन्होंने फिर से मुगल सल्तनत का विरोध करना शुरू कर दिया।
अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है कि “शहंशाह ने कुलीन खां, ख्वाजा गयासुद्दीन, अली आसफ़ खां, अली नाकिब खां, तिमूर बदख्शी, मीर अब्दुलगयास, नूरम कुलीज जैसे नामी सिपहसालारों को फ़ौज देकर ईडर की तरफ़ रवाना किया,
ताकि वे बादशाही हुक्म न मानने वाली बेकार फ़सल को उस इलाके से ख़त्म कर दे। ईडर के राय नारायणदास ने बगावत का झंडा उठाकर राणा कीका (महाराणा प्रताप) की तरफ़दारी करते हुए सरगर्मी मचा रखी थी।”
राव दूदा हाडा पर मुगल आक्रमण :- अकबर ने महाराणा प्रताप के मित्र राव दूदा हाडा को पराजित करने के लिए राजा मानसिंह कछवाहा के काका राव खंगार कछवाहा को फ़ौज सहित भेजा।
राव दूदा पराजित हुए, पर बच निकले और बादशाही अधीनता स्वीकार नहीं की। राव दूदा बूंदी के राव सुर्जन हाड़ा के पुत्र व राव भोज हाड़ा के भाई थे।
राव चन्द्रसेन राठौड़ पर मुगल आक्रमण :- अकबर ने महाराणा के बहनोई मारवाड़ के राव चन्द्रसेन राठौड़ को पकड़ने के लिए शाहबाज खां को फ़ौज सहित भेजा, पर शाहबाज खां को सफलता नहीं मिली।
राव चंद्रसेन मारवाड़ के ऐसे वीर थे, जिन्होंने आजीवन संघर्षरत रहते हुए मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की। राव चंद्रसेन के इसी संघर्ष व महानता के कारण उन्हें मारवाड़ का राणा प्रताप कहा जाता है।
इस प्रकार अकबर ने काफी हद तक महाराणा प्रताप को मिलने वाली सहायता को रोकने में सफलता प्राप्त कर ली। लेकिन अब अकबर के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी महाराणा प्रताप को मेवाड़ में पूरी तरह से घेरना, जो कि बड़ा ही कठिन कार्य था।
पहाड़ी इलाकों में मुगल फ़ौज के लिए संख्याबल होने के बावजूद मात खाने की संभावना अधिक थी। मुगल भली भांति परिचित थे कि महाराणा प्रताप इस भूभाग को इतने बेहतर तरीके से जानते हैं कि किसी भी छापामार लड़ाई को बेहतर तरीके से अंजाम दे सके।
महाराणा प्रताप के मित्रों पर आक्रमण करने के बाद अब अकबर ने महाराणा प्रताप पर ध्यान केंद्रित कर दिया। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)