महाराणा प्रताप के इतिहास का भाग – 47

हल्दीघाटी युद्ध के 3 माह बाद 1576 ई. में सितंबर माह में महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा में तैनात मुगलों पर आक्रमण करने के लिए कमर कस ली।

जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि महाराणा प्रताप ने अपने राजपूत व भील साथियों की मदद से मेवाड़ से मालवा, गुजरात, अजमेर जाने वाले पहाड़ी रास्ते व नाके बन्द करवा दिये,

ताकि गोगुन्दा में तैनात मुगलों तक रसद का सामान ना पहुंचे व गोगुन्दा में तैनात मुगल मेवाड़ से बाहर ना जा पाए। 26 सितंबर, 1576 ई. को अकबर फतहपुर सीकरी से अजमेर पहुंचा।

अकबर का आदेश पाकर राजा मानसिंह, आसफ़ खां, काज़ी खां वग़ैरह सिपहसलार पहले ही गोगुन्दा छोड़कर अकबर के पास चले गए थे। फिर भी गोगुन्दा में बहुत से मुगल शेष थे, जिन पर आए दिन मेवाड़ी सैनिकों के हमले होते थे।

राजा मानसिंह

इस वक्त हल्दीघाटी की लड़ाई लड़ने वाले जीतने भी मुगल जीवित बचे थे, वे सीकरी तो गए ही नहीं। ये सब गोगुन्दा में ही थे। बनजारे लोग जब भी इन इलाकों में आते,

तो महाराणा के सैनिक उन्हें मुगलों के नजदीक भी नहीं जाने देते, क्योंकि मुगल हमेशा बनजारों की तलाश में रहते थे, ताकि उन्हें लूटकर रसद वगैरह ले सके।

महाराणा प्रताप की गोगुन्दा विजय :- महाराणा प्रताप फ़ौज सहित कुम्भलगढ़ से कोल्यारी पहुंचे और वहां से गोगुन्दा की तरफ कूच किया। महाराणा ने गोगुन्दा के महलों पर आक्रमण कर दिया।

भीषण मारकाट के बाद महाराणा प्रताप ने अपने निवास स्थान गोगुन्दा पर विजय प्राप्त की। मुगल फ़ौज के कई सिपाही मारे गए और कइयों ने भागकर जान बचाने में गनीमत समझी।

यहां महाराणा प्रताप ने सदा की तरह बड़ी सूझबूझ दिखाई। उन्होंने सबसे पहले पहाड़ी नाके बन्द करवाए और हर तरह से मुगलों को मिलने वाली मदद रोकने के बाद यह भीषण आक्रमण किया, जिससे मुगलों को सम्भलने का कोई अवसर न मिला।

गोगुन्दा का राजमहल

मेवाड़ के ग्रंथ वीरविनोद में कविराजा श्यामलदास ने गोगुन्दा विजय के बारे में लिखा है कि “शाही फ़ौज के आदमी हवालाती क़ैदियों के मुवाफिक गोगुंदे में पड़े थे। जो कभी थोड़े आदमी रसद वग़ैरह लेने के लिए फ़ौज से अलहदा हो जाते, तो उन पर महाराणा के राजपूतों का

धावा होता था। जब शाही फ़ौज के लोग बहुत घबरा गए और खाना-पीना न मिल सका, तो मेवाड़ के राजपूतों से लड़ते-भिड़ते पहाड़ों से निकलकर बादशाह के पास पहुंचे। बादशाह इन लोगों पर बहुत नाराज़ हुए, लेकिन पीछे सब हाल सुनकर इनको बेक़सूर समझा।”

अकबरनामा में अबुल फ़ज़ल लिखता है कि “राणा के फ़ौजी आदमी गोगुन्दा पर हमला करने लगे और रसद पहुंचने में दिक्कत होने लगी,

इस ख़ातिर मुगल फ़ौज के सिपाही वह पहाड़ी इलाका छोड़कर अजमेर आ गए। शहंशाह को उन पर बड़ा गुस्सा आया, पर बाद में हालात समझते हुए उन्हें माफ़ कर दिया गया।”

गोगुन्दा के युद्ध में कईं मुगल कत्ल हुए और बहुत से भाग निकले। महाराणा प्रताप चाहते थे कि अकबर स्वयं मेवाड़ आए, इसलिए उन्होंने कुछ शाही सिपहसालारों को छोड़ते हुए व्यंग भरे शब्दों में कहा कि “अपने बादशाह से कहना कि राणा कीका ने याद किया है।”

इस प्रकार महाराणा प्रताप ने अपने पिता के समय से चली आ रही मेवाड़ की राजधानी, अपने पिता की निर्वाण स्थली व अपनी राजतिलक स्थली गोगुन्दा पर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की।

गोगुन्दा विजय महाराणा प्रताप की छापामार युद्ध प्रणाली का प्रथम सकारात्मक परिणाम था। गोगुन्दा की विजय ने मेवाड़ के योद्धाओं और वहां की प्रजा में एक नई ऊर्जा व आशा का संचार किया।

महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा में मांडण कूंपावत को फ़ौजी टुकड़ी सहित नियुक्त किया। इस प्रकार गोगुन्दा में सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करके महाराणा प्रताप राजमहल से रवाना हुए।

गोगुन्दा के पास मजेरा गाँव में राणेराव के तालाब के पास में महाराणा प्रताप ने सैनिक छावनी बनाई और वहाँ से मेवाड़ के मैदानी भागों में तैनात मुगल थाने उठाए।

हालांकि कुछ मुगल थाने तो महाराणा की गोगुन्दा विजय से भयभीत होकर ही उठ गए और जो कुछ मुगल थाने जमे हुए थे, वे महाराणा के इस विजय अभियान में उखाड़ दिए गए।

महादेव जी को नमन करते हुए महाराणा प्रताप

अजमेर पर महाराणा के आक्रमण :- इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप ने फौजी टुकड़ियां भेजकर अजमेर के इलाकों में मुगल छावनियों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया।

अजमेर मुगलों के लिए राजपूताने को नियंत्रित करने वाला केंद्र बिंदु था। तत्पश्चात महाराणा प्रताप मेवाड़ की नई राजधानी कुम्भलगढ़ पधारे व कुम्भलगढ़ दुर्ग में महता नरबद को तैनात किया।

हिंदुस्तान के एक बड़े भाग पर अधिकार करने वाले बादशाह के लिए ये कैसे सहनीय हो सकता है कि एक छोटे प्रदेश के शासक को जड़ समेत उखाड़ने के लिए वो अपने सर्वश्रेष्ठ सेनानायक को भेजे और

बदले में उस छोटे प्रदेश के शासक का लगभग सर्वस्व समाप्त हो जाने के बावजूद वह मात्र 3 माह में इतना सुदृढ आक्रमण करके विजय प्राप्त कर ले।

गोगुन्दा की भीषण पराजय, अजमेर पर मेवाड़ी सेना के आक्रमण और महाराणा के व्यंग ने मुगल बादशाह अकबर को मेवाड़ आने के लिए विवश कर दिया। अकबर ने मेवाड़ कूच करने की तैयारियाँ शुरु कर दी।

मेवाड़ की वैणगढ़ विजय :- महाराणा प्रताप के भाई महाराज शक्तिसिंह जी ने मेवाड़ का साथ देते हुए भीण्डर के पास स्थित वैणगढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। अपने भाई की इस विजय से महाराणा प्रताप अत्यंत प्रसन्न हुए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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