जून-जुलाई, 1576 ई. को राजा मानसिंह द्वारा गोगुन्दा में रहकर की गई कार्यवाही :- मुगल फ़ौज के सेनापति राजा मानसिंह ने महाराणा प्रताप पर निगरानी रखने के लिए कुतुबुद्दीन मुहम्मद खां, कुलीज खां व आसफ खां को फ़ौजी टुकड़ी सहित नियुक्त किया।
राजा मानसिंह ने एक सिपहसालार के नेतृत्व में फौजी टुकड़ी भेजकर आसपास के इलाके में जो भी लोग मिले, उनको बन्दी बनाने का आदेश दिया। इस सिपहसालार ने कुछ लोगों को बन्दी बनाया।
मुगल थाने :- मुगल फौज जब किसी क्षेत्र पर अधिकार करती तो वहां शाही थाने तैनात किए जाते थे। इस तरह के थानों में सौ से हजार सैनिकों का लश्कर होता था।
मेवाड़ में गोगुन्दा, मोही, मदारिया, उदयपुर, केलवाड़ा, देबारी जैसे स्थानों पर प्रमुख मुगल थाने तैनात किए जाते थे, जहां लश्कर हजार से भी ज्यादा होता था। छोटे मुगल थानों में 100-200 सैनिकों का लश्कर होता था।
अगस्त, 1576 ई. को गोगुन्दा में एक बहुत बड़ा थाना तैनात कर राजा मानसिंह कछवाहा, आसफ खां व काजी खां अकबर के पास चले गए, जहां राजा मानसिंह और आसफ खां की कुछ दिनों तक ड्योढ़ि बन्द कर दी गई अर्थात् शाही दरबार में आने पर प्रतिबन्ध लगाया गया।
अकबर का दरबारी लेखक अब्दुल कादिर बदायूनी लिखता है “इस वक्त गोगुन्दा में मुगल फौज को जो तकलीफें हो रही थीं, उनकी खबर शहंशाह के पास पहुंची। शहंशाह ने हुक्म दिया कि मानसिंह, आसफ खां
और काजी खां बिना किसी को साथ लाये फौरन हाजिर हो जाये। मानसिंह और आसफ खां की कुछ गुस्ताखियों की वजह से शहंशाह ने उनको शाही दरबार में आने से रोक दिया। दूसरी तरफ गाजी खां बदख्शी, मेहतर खां,
अलीमुराद उजबेक, खांजकी तुर्क और मुझको इनाम दिए और ओहदे में तरक्की की। इन सबके अलावा जितने भी सिपहसालार राणा के खिलाफ जंग में थे, सबको बिना कोई सजा दिए छोड़ दिया”
अकबर का दरबारी लेखक निजामुद्दीन अहमद बख्शी लिखता है “गोगुन्दा जाने वाली सड़कें इतनी मुश्किल थी कि वहां रसद वगैरह बहुत कम पहुंच पा रही थी और वो भी बड़ी मुश्किल से। हमारी फौज भूखी मरने लगी।
मानसिंह को फौरन हाजिर होने का हुक्म दिया गया, तो मानसिंह बिना वक़्त गंवाए शाही हुज़ूर में हाज़िर हुआ। शहंशाह ने तहकीकात करवाई की फौज का क्या हाल है,
तो सच में पता चला कि फौज का हाल बहुत बुरा था, फिर भी मानसिंह ने राणा के मुल्क को नहीं लूटा। इस वजह से शहंशाह ने नाराज होकर कुछ दिनों के लिए मानसिंह को दरबार से निकाल दिया”
बदायुनी के कथन से स्पष्ट है कि हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर ने केवल 3-4 सिपहसालारों को इनाम दिए, मुख्य सेनापति व बख्शी का दरबार में आना बंद करवा दिया गया और बाकियों को बिना सज़ा दिए छोड़ दिया गया। अर्थात
यहां केवल बात ये नहीं थी कि राजा मानसिंह और आसफ़ खां ने महाराणा प्रताप का मुल्क नहीं लूटा। यदि बात केवल यही होती, तो बदायुनी ये नहीं कहता कि बाकियों को बिना सज़ा दिए छोड़ दिया गया।
क्योंकि मुल्क लूटने का फैसला तो सेनापति व बख्शी के ही हाथों में था। अकबर अवश्य ही हल्दीघाटी के नतीजों और युद्ध की शुरुआत में मुगल फ़ौज द्वारा दिखाई गई कायरता से नाखुश था।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
जय परमवीर महाराणा प्रताप