वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 42)

जून-जुलाई, 1576 ई. को महाराणा प्रताप के प्रिय हाथी रामप्रसाद का बलिदान :- आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा ने हल्दीघाटी में कैद किए गए रामप्रसाद हाथी को बदायूनी के जरिए अकबर तक पहुंचाया।

युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक अब्दुल कादिर बदायूनी रामप्रसाद हाथी को अकबर तक ले जाने का विस्तृत उल्लेख कुछ इस तरह करता है कि “राणा का एक ख़ास हाथी रामप्रसाद, जिसको शहंशाह ने राणा से कई बार मांगा था,

पर राणा अपनी बदनसीबी के चलते हर बार मना करता रहा। आसफ़ खां ने मानसिंह को सलाह दी कि रामप्रसाद हाथी के साथ बदायुनी को शहंशाह के पास भेज दिया जाए। मानसिंह ने हँसते हुए मुझसे कहा कि

अभी तुम्हारा काम खत्म नहीं हुआ है, तुम्हें तो हर लड़ाई में आगे रहना चाहिए। मैंने कहा कि मेरा यहां का इमाम का काम तो खत्म हो चुका है, अब मुझे शहंशाह के पास जाना चाहिए। मानसिंह खुश हुआ और मुस्कुराया।”

राजा मानसिंह

बदायुनी आगे लिखता है कि “मानसिंह ने मुझे 300 सवार देकर शहंशाह के पास जाने को कहा। मानसिंह खुद भी शिकार खेलने के मकसद से 20 कोस पर मोही गाँव तक मेरे साथ रहा। मानसिंह ने जगह-जगह शाही थाने

बिठा दिए। मानसिंह ने एक सिफारिशी खत देकर मुझको विदा किया और फिर वह लौटकर गोगुन्दा चला गया। मैं रामप्रसाद हाथी को लेकर बागोर और मांडलगढ़ होता हुआ मानसिंह के इलाके आमेर में गया। जहां-जहां से हम निकले,

लड़ाई की खबर फैलती गई। रास्ते में लोग मानसिंह की फतह और राणा की हार की खबर सुनकर हम पर यकिन नहीं करते। आमेर में हम लोग तीन-चार दिन रहे।”

बदायुनी आगे लिखता है कि “मैं शहंशाह के सामने हाजिर हुआ और अमीरों के खत समेत रामप्रसाद हाथी बादशाह को नज़र किया। शहंशाह ने पूछा कि इस हाथी का नाम क्या है ? मैंने कहा रामप्रसाद।

शहंशाह ने कहा कि इस पर पीर की मेहरबानी हुई है, इसलिए इसका नाम पीरप्रसाद रखा जाए। शहंशाह ने कहा कि अमीरों ने तुम्हारी बड़ी तारीफ की, सच-सच बताओ क्या बहादुरी का काम किया तुमने।

रामप्रसाद हाथी के साथ महाराणा प्रताप

मैं (बदायुनी) ने कहा कि शहंशाह के सामने तो ये नौकर सच कहते हुए भी कांपता है, तो सच के अलावा तो कुछ कह ही नहीं सकता है।”

बदायुनी आगे लिखता है कि “शहंशाह ने मुझसे पूछा कि क्या तुम्हारे हाथ में भी हथियार थे। मैंने कहा जी हुजूर, मैं और मेरा घोड़ा दोनों के पास हथियार थे। शहंशाह ने पूछा कि तुम्हे हथियार कैसे मिले।

मैंने कहा हुजूर, सैयद अब्दुल्ला खां से मिले। मैंने सारा हाल कह सुनाया, तब शहंशाह ने अशर्फियों से भरी टोकरी में हाथ डाले और मुझे 96 अशर्फियां दीं।”

बदायुनी आगे लिखता है कि “शहंशाह ने मुझसे पूछा कि क्या तुम शैख़ अब्दुल नबी से मिल लिए ? मैंने जवाब दिया कि हुज़ूर, रास्ते की धूल साफ किए बिना मैं तो सीधे दरबार में आ गया हूँ, मैं उनसे पहले कैसे मिल सकता हूँ ?

इसके बाद शहंशाह ने मेरे और अब्दुल नबी के लिए एक शानदार शालों का जोड़ा दिया और कहा कि इनको ले जाओ और शैख़ से जाकर मिलो, हमारी ओर से उससे कहना कि

अकबर

ये हमारे ख़ास ख़ज़ाने में से है और हमने इनको ख़ास तौर से तुम्हारे लिए बनवाया था। तुम इनको पहनो। मैंने शाल पहनी और शैख़ के सामने जाकर शहंशाह की कही हुई बात सुना दी। शैख़ बहुत खुश हुए।”

बदायुनी हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व शैख़ अब्दुल नबी से मिलने गया था। लड़ाई की कमान एक हिन्दू राजा मानसिंह के संभालने के कारण उसने लड़ाई में जाने से मना कर दिया था और बदायुनी से कहा था कि तुम लड़ाई के वक़्त मेरी तरफ से भी दुआ मांगना।

इस संबंध में बदायुनी लिखता है कि “शैख़ ने मुझसे पूछा कि जब मैं तुमको विदा कर रहा था, तब मैंने कहा था कि लड़ाई के शुरू होते वक़्त मेरी तरफ़ से दुआ मांगना मत भूलना।

मैंने शैख़ से कहा कि मैंने लड़ाई के वक़्त ये दुआ मांगी कि ए खुदा, तुझमें यकीन रखने वाले आदमी और औरतों को माफ़ कर। जो मुहम्मद के मज़हब की हिफाज़त करता है,

तू भी उसकी हिफाज़त कर और जो उस मज़हब की हिफाज़त नहीं करता, तू भी उसकी हिफाज़त मत कर। मुहम्मद तुझे अमन मिले।”

धनुष बाण थामे हुए महाराणा प्रताप

कहते हैं कि महाराणा प्रताप के इस स्वामिभक्त हाथी ने मुगलों का दिया हुआ अन्न-जल ग्रहण नहीं किया और कुछ दिन बाद रामप्रसाद ने अपने प्राण त्याग दिए।

उस समय मेवाड़ के स्वाभिमान की कल्पना करना भी हमारे लिए सम्भव नहीं कि जहां महाराणा तो महाराणा, घोड़े और हाथी भी स्वाभिमान की रक्षा ख़ातिर अपने प्राणों की आहुति दे गए।

आज का सम्पूर्ण वर्णन मैंने बदायुनी द्वारा लिखा ही पोस्ट किया है। इसका कारण ये है कि जो घटना उस वक़्त मुगल खेमे में घट रही थी, उसका वर्णन कोई और नहीं कर सकता।

आज के इस भाग में जो बात पाठकों को सीधे समझ में नहीं आई होगी, वह ये है कि आसफ़ खां ने रामप्रसाद हाथी को बदायुनी के ज़रिए अकबर तक पहुंचाने की सलाह राजा मानसिंह को इसलिए दी,

क्योंकि आसफ़ खां जानता था कि हल्दीघाटी युद्ध की असफलता के कारण अकबर उस पर जरूर क्रोधित होगा, इसलिए बदायुनी को पहले ही अकबर के पास भेजकर रामप्रसाद हाथी को नज़र कर दिया जाए, ताकि उसका क्रोध कुछ शांत हो।

महाराणा प्रताप

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Amit Kumar
    May 17, 2021 / 4:32 am

    हमारे पूर्वजो का स्वाभिमान अथाह सागर है जो अमर रहेगा ।

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