जून, 1576 ई. को महाराणा प्रताप द्वारा अपना व सैनिकों का उपचार करवाना :- महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी में 7 गहरे घाव लगे थे, लेकिन महाराणा ने धैर्य नहीं खोया।
चारण साहित्यों के अनुसार महाराणा हल्दीघाटी युद्ध के बाद हल्दीघाटी के रास्ते से नहीं लौटे। वे उनवास के रास्ते से पहाड़ी रास्ता पकड़ कर कालोडा गांव में गए, जहां एक मशहूर वैद्य रहते थे।
यहां महाराणा ने अपना प्राथमिक उपचार करवाया। कालोडा लोसिंग से हल्दीघाटी के रास्ते में पड़ता है। इस बारे में एक कहावत प्रचलित है कि घाव सिराया राणा रा, कालोडा में जाय।
इतिहासकारों द्वारा किए गए शोध से यह निष्कर्ष निकला कि महाराणा प्रताप घायलावस्था में कालोडा नहीं गए, बल्कि कोल्यारी गांव में गए। महाराणा प्रताप ने कोल्यारी गाँव को प्राथमिक उपचार के लिए विकसित कर रखा था।
कोल्यारी में महाराणा ने अपना, अपने सैनिकों का व जख्मी हाथी-घोड़ों का उपचार करवाया। 19 जून, 1576 ई. को राजा मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना द्वारा गोगुन्दा पर आक्रमण :-
महाराणा प्रताप मुगलों की सोच से सदैव 2 कदम आगे रहते थे। उस समय गोगुन्दा मेवाड़ की राजधानी थी। महाराणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध से गोगुन्दा भी लौट सकते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया।
उन्होंने इस बात का अनुमान पहले ही लगा लिया था कि मुगल सेना गोगुन्दा पर हमला जरूर करेगी। 18 जून को हल्दीघाटी युद्ध की समाप्ति के बाद राजा मानसिंह बनास नदी किनारे लगाए गए अपने शिविर में फौज सहित लौटे तो कुछ मुगलों को वहां मरा हुआ पाया।
फिर पता चला कि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध के दौरान भीलों की एक फौजी टुकड़ी मुगलों के शिविर में भेजकर रसद सामग्री पहले ही लूट ली। दूर-दूर तक मुगलों को ना कोई खेत दिखाई दे रहा था और ना कोई व्यक्ति।
महाराणा प्रताप ने युद्ध से पहले ही गोगुन्दा व उसके आसपास के खेतों को जला दिया था और लोगों को सुरक्षा की दृष्टि से पहाड़ी क्षेत्रों में ले गए थे।
युद्ध के अगले दिन 19 जून, 1576 ई. को राजा मानसिंह ने फ़ौज सहित मेवाड़ की राजधानी गोगुन्दा की तरफ प्रस्थान किया। मुगल फ़ौज मन में यह आशा लिए हुए थी कि मेवाड़ की राजधानी में अवश्य रसद के साथ-साथ धन संपदा भी हाथ लगेगी।
मुगल फौज जब गोगुन्दा के राजमहलों के सामने पहुँची, तो वहां इस हज़ारों की मुगल फौज के सामने 20 मेवाड़ी योद्धाओं को खड़ा पाया।
परिणाम जानते हुए भी ये 20 योद्धा टूट पड़े मुगल सेना पर टूट पड़े और कइयों को मारकर वीरगति प्राप्त की। राजमहलों में प्रवेश करने के बाद मुगल सेना को धन संपदा तो दूर की बात रही, रसद तक नहीं मिली।
गोगुन्दा में मुगलों को अपने ही घोड़े काटकर खाने पड़े। मुगल फौज के गोगुन्दा में पड़ाव का जो वर्णन बदायुनी ने किया है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुन्तख़ब उत तवारीख में अकबर का दरबारी लेखक व हल्दीघाटी युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी अब्दुल काफ़िर बदायुनी लिखता है कि “लड़ाई के दूसरे दिन हमारी फ़ौज ने जंग के मैदान को गौर से देखा और यह जायजा लिया कि
हर एक ने कैसा काम किया, फिर दर्रे से हम गोगुन्दा पहुंचे। वहां राणा के महलों की हिफाज़त करने वाले और मंदिर वाले कुछ लोग थे, जिनकी गिनती 20 थी। अपने पुराने रिवाज़ और इज़्ज़त को ध्यान में रखते हुए ये लोग अपनी-अपनी जगहों से बाहर निकले और लड़ते हुए मारे
गए। सबको यह ख़तरा लग रहा था कि रात के वक़्त कहीं राणा उन पर टूट न पड़े, इस ख़ातिर उन्होंने सब मोहल्लों में आड़ खड़ी करवा दी और गोगुन्दा के चारों तरफ खाई खुदवाकर इतनी ऊंची दीवार बनवा दी कि कोई घुड़सवार भी उसे फांद न सके। तब जाकर सबको तसल्ली हुई”
बदायुनी आगे लिखता है कि “बादशाह अकबर को भेजने के लिए लड़ाई में मरे हुए सैनिकों और घोड़ों की फिहरिश्त बनाई जाने लगी, कि तभी सैयद अहमद खां बारहा ने कहा कि ऐसी फिहरिश्त बनाने का क्या फायदा है। मान लो कि
हमारा एक भी घोड़ा और आदमी नहीं मरा। इस वक़्त तो खाने का बंदोबस्त करना चाहिए। इस पहाड़ी इलाके में न तो रसद पैदा होती और ना बणजारे आते हैं, फ़ौज भूख से मर रही है। सैयद अहमद खां की सलाह के बाद वे लोग खाने का बंदोबस्त करने के बारे में सोचने लगे”
बदायुनी आगे लिखता है कि “फिर वे अलग-अलग सिपहसलार की कमान में छोटी-छोटी फौजी टुकड़ियां भेजने लगे ताकि कुछ खाने का सामान मिल सके। उन्होंने पहाड़ियों में जाकर कुछ लोगों को कैद कर किया। हर एक को वहां खाने में
सिर्फ आम और मांस ही मिल रहा था। वहां आम बहुत होते हैं। सिपाहियों को रोटी नहीं मिल रही थी और लगातार आम खा-खाकर वे बीमार पड़ने लगे। इस इलाके में एक-एक सेर का एक आम होता है, पर इनमें मिठास और खुशबू ज्यादा नहीं है।”
मुगलों की यह स्थिति हल्दीघाटी युद्ध के तुरंत बाद की है। फिर भी कई लोग मुगल फौज को हल्दीघाटी में विजयी होना बताते हैं। ये बात हास्यास्पद ही है कि जिस फ़ौज को विजयी बताया जाता है, उस फ़ौज पर विपक्ष का भय ऐसा छाया था कि कैदियों की तरह भूखमरी से दिन काटने लगे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
जय परमवीर महाराणा प्रताप सिंह