हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के कई वीर योद्धा व सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। इनमें से कई वीर योद्धा महाराणा प्रताप के संबंधी भी थे। इनके अतिरिक्त महाराणा को अपना प्रिय चेतक व रामप्रसाद भी खोना पड़ा।
हल्दीघाटी का युद्ध एक प्रकार से महाराणा प्रताप के लिए बहुत बड़ा आघात था, क्योंकि अब उनके साथ बड़े नाम वाले योद्धाओं में कुछ ही शेष रह गए थे।
लेकिन आघातों को सहना और उनसे उबरकर शत्रु के लिए आघात बनना तो मेवाडियों के लहू में था। महाराणा प्रताप इस आघात से रुकने वालों में से नहीं थे। हल्दीघाटी के परिणाम से महाराणा प्रताप का उत्साह रत्ती भर भी कम नहीं हुआ।
हल्दीघाटी के युद्ध ने मुगलों के प्रति महाराणा प्रताप के विरोध को और अधिक दृढ़ कर दिया। हल्दीघाटी युद्ध से पहले महाराणा प्रताप ने अकबर के राजदूतों से भेंट की थी, परन्तु इस युद्ध के बाद महाराणा का विचार सीधा व सच्चा था।
हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने शांति दूतों से मिलना भी बन्द कर दिया। क्योंकि अब मेवाड़ व मुगल सल्तनत के बीच केवल रक्तपात ही एकमात्र विकल्प शेष रह गया था।
हल्दीघाटी असंख्य लोगों के लिए प्रेरणादायी बनी हुई है। आज लोग हल्दीघाटी के दर्शन करने उसी प्रकार जाते हैं, जैसे कोई मंदिर में जाता है।
कई लोग हल्दीघाटी की मिट्टी को माथे पर लगाते हैं और अपने साथ कुछ मिट्टी सदा के लिए ले जाते हैं, ताकि वह मिट्टी उन्हें उस स्वाभिमान की याद दिलाती रहे जिसे महाराणा प्रताप के साथ साथ उनके समस्त सहयोगियों ने जिया था।
यदि आप हल्दीघाटी के दर्शनों से अब तक वंचित हैं व भविष्य में इस तीर्थ स्थल की यात्रा करना चाहें, तो मैं आपको इस स्थल के बारे में जानकारी दे देता हूँ, ताकि आप बिना गाइड के भी सभी स्थलों के दर्शन कर सकें। हल्दीघाटी राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के राजसमन्द जिले में स्थित है।
हल्दीघाटी संग्रहालय :- हल्दीघाटी म्यूजियम की स्थापना एक अध्यापक मोहनलाल जी श्रीमाली ने की। मोहनलाल जी ने अपनी बचत, ज़ेवर, पुश्तेनी ज़मीन, मकान सब बेचकर इस भव्य संग्रहालय का निर्माण कराया।
इस संग्रहालय में महाराणा प्रताप के जीवन से संबंधित कई पेंटिंग्स हैं, साथ ही साथ महाराणा के सहयोगियों की प्रतिमाएं भी सुसज्जित हैं। यहां छत्रपति शिवाजी महाराज की भी एक प्रतिमा है।
यहां महाराणा प्रताप के जीवन से संबंधित 7-8 मिनट की एक एनिमेटेड फ़िल्म भी दिखाई जाती है। हल्दीघाटी रणभूमि से खुदाई में हथियारों का जो ज़खीरा मिला था, वह भी इस संग्रहालय में सुरक्षित है।
हल्दीघाटी संग्रहालय में लाइट व साउंड शो के माध्यम से कुछ घटनाओं का जीवंत दृश्य दिखाया जाता है। इसमें महाराणा प्रताप के स्वामिभक्त अश्व चेतक के बलिदान, महाराणा द्वारा सिंह के शिकार,
कुँवर अमरसिंह द्वारा बंदी बनाई गई रहीम की बेगमों को महाराणा प्रताप द्वारा सही सलामत रहीम तक पहुंचाने का आदेश देना, महाबलिदानी माता पन्नाधाय द्वारा अपने पुत्र चंदन का बलिदान आदि दृश्य शामिल हैं।
इस संग्रहालय में बोटिंग की सुविधा भी है। महाराणा प्रताप के जीवन से संबंधित अनेक पुस्तकें यहां से खरीदी जा सकती हैं। महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं भी यहां से खरीदी जा सकती हैं।
यहां अलग-अलग प्रकार की पगड़ियां भी उपलब्ध हैं। इस संग्रहालय में भगवान शिव का एक मंदिर भी है। संग्रहालय के निकट ही एक छोटी पहाड़ी पर महाराणा प्रताप की भव्य प्रतिमा भी दर्शनीय है।
हल्दीघाटी राजस्थान के राजसमंद जिले की खमनौर तहसील के बलीचा गांव में स्थित है। हल्दीघाटी म्यूजियम से खमनौर तक के रास्ते में कई दर्शनीय स्थल आते हैं।
हल्दीघाटी म्यूजियम से रवाना होते ही बाई तरफ स्वामिभक्त चेतक की समाधि है। यह म्यूजियम और चेतक की समाधि जहां स्थित है, वह गांव बलीचा कहलाता है।
चेतक की समाधि के ठीक निकट उसी ज़माने का मंदिर है जो दर्शनीय है। इसी के सामने की तरफ चढ़ाई पर महाराणा प्रताप की भव्य प्रतिमा बनी हुई है, जहां आसपास का दृश्य आसानी से दिखाई देता है।
यहीं से एक कच्चा रास्ता जाता है, जो थोड़ी ही दूरी पर एक नाले तक जाता है। यही हल्दीघाटी का प्रसिद्ध नाला है, जिसे चेतक ने पार किया था।
चेतक की समाधि से लेकर खमनौर मार्ग के बीच में दाई तरफ आने वाले स्थान :- इस मार्ग पर दाई तरफ हल्दीघाटी गुफा आती है, जिसे महाराणा प्रताप की गुफा भी कहते हैं।
इस गुफा में एक मंदिर व महादेव का स्थल है, जहां एक छोटा झरना बहता है और यहीं एक कुंड भी है। इसी मार्ग पर दाई तरफ पठान हाकिम खां सूरी के सिर की मजार है, यह वह स्थान है, जहां उनका सिर धड़ से अलग हुआ। हालांकि प्रतीत यह होता है कि यह मजार वास्तविक नहीं है।
इसी मार्ग पर दाई तरफ बादशाह बाग भी आता है, जहां हल्दीघाटी युद्ध के समय मुगल फौज की एक टुकड़ी ने पड़ाव डाला था।
खमनौर मार्ग के बीच में बाई तरफ आने वाले स्थानों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान हल्दीघाटी का दर्रा है। यह मुख्य दर्रा है, जहां एक फाटक लगा रखी है व इससे संबंधित जानकारी पास ही बोर्ड पर लिखी है।
यह दर्रा काफी संकरा है, इसी दर्रे से होकर महाराणा प्रताप की सेना खमनौर स्थित रणभूमि में पहुंची थी। दर्रा सुनसान होने के कारण अक्सर लोग इसके भीतर नहीं जाते हैं। यह दर्रा करीब एक-डेढ़ किलोमीटर लंबा है।
हल्दीघाटी से खमनौर का मार्ग गुलाबजल व गुलाब से बने अन्य पेय पदार्थों के विक्रेताओं का जमघट है। यहां विश्वप्रसिद्ध चैत्री गुलाब की बड़ी मात्रा में खेती की जाती है।
चैत्री गुलाब गुलाब की सर्वश्रेष्ठ किस्म भी मानी जाती है। ये मार्ग आपको वो सुखद व गौरवशाली एहसास देता है, जो आप शायद ही कहीं अन्यत्र महसूस कर सकें।
खमनौर में रक्त तलाई नामक स्थान है, जहां हल्दीघाटी का युद्ध मुख्य रुप से लड़ा गया। यहां कुल 5 समाधियां हैं :- पठान हाकिम खां सूर की मजार, बड़ी सादड़ी के राजराणा झाला मानसिंह की 4 खंभों की छतरी,
ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर की छतरी, ग्वालियर के कुँवर शालिवाहन तोमर की छतरी, श्रीमाली ब्राम्हण के साथ सती होने वाली उनकी धर्मपत्नी का स्थान।
मजार व छतरियों की देखरेख हेतु यहां एक मुस्लिम व्यक्ति अक्सर हर वक्त देखने को मिल जाता है, जो वहां आने वाले पर्यटकों को रक्त तलाई व हल्दीघाटी युद्ध के बारे में जानकारी भी प्रदान करता है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)