वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 39)

अकबर द्वारा हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम की जांच :- अकबर ने मुहम्मद खान को हल्दीघाटी युद्ध का मुआयना करने भेजा। मुहम्मद खान ने खमनौर में युद्धभूमि का जायजा लिया और लौटकर अकबर को विजय की खबर सुनाई।

इस वक्त एक मुगल फौज बंगाल पर चढाई कर रही थी। अकबर ने इस फौज का हौंसला बढ़ाने के लिए हल्दीघाटी विजय की खबर सैयद अब्दुल्ला खां के जरिए भिजवाई।

हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम के बारे में अबुल फ़ज़ल ने अकबरनामा में जो लिखा, उसका हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह है कि “ईश्वरीय सहायता की ओर से आई विजय की वायु भक्तों की आशाओं के गुलाब के पौधों को हिलोरे देने

लगी और स्वामिभक्ति में अपने को न्योछावर करने को उत्सुक लोगों की सफलता की गुलाब कलियां खिल उठीं। अहंकार व अपने को ऊंचा मानने का स्वभाव अपमान में बदल गया। सदा सर्वदा रहने वाले सौभाग्य की एक और

नई परीक्षा हुई। सच्चे हृदय वालों की भक्ति बढ़ गई और जो सीधे सादे थे, उनके दिल सच्चाई से भर गए। जो शंकाएं किया करते थे, उनके लिए स्वीकार शक्ति और विश्वास की प्रातःकालीन पवित्र वायु बहने लगी। शत्रु के लिए विनाश की रात का गहन अंधकार आ गया।”

अबुल फ़ज़ल आगे लिखता है कि “जब जीत की ख़बर शहंशाह अकबर तक पहुंची, तो उन्होंने ख़ुदा का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने खैरख्वाह और जंग में बेहतरीन काम करने वालों के ओहदे में तरक्की की। उस वक़्त एक और

मुगल फ़ौज बंगाल पर चढ़ाई कर रही थी। वहां तेज़ रफ़्तार वाले घोड़ों से इस शानदार जीत की ख़बर पहुंचाई गई। सैयद अब्दुल्ला खां को इस ख़बर समेत भेजा गया। उसके

रवाना होते वक़्त शहंशाह ने कहा कि मेरे दिल से अचानक एक आवाज़ आई है, जिसका कहना है कि जिस तरह तुम इस जीत की ख़बर लेकर बंगाल जा रहे हो, उसी तरह बंगाल की जीत की ख़बर लेकर यहां आओगे”

निष्कर्ष :- मुगल पक्ष के समकालीन लेखकों ने इस युद्ध के परिणामों में निश्चित रूप से पक्षपात किया है। युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक अब्दुल क़ादिर बदायुनी लिखता है कि

हल्दीघाटी

हमने राणा की फ़ौज का पीछा इसलिए नहीं किया कि हो सकता है कि कहीं वो पहाड़ी के पीछे घात लगाए बैठा हो और अचानक हमला कर दे। वहीं अबुल फ़ज़ल लिखता है कि राणा का पीछा इसलिए नहीं किया गया,

क्योंकि शाही फ़ौज का गर्मी और थकान के चलते पीछा करने का मन नहीं हुआ। अकबर का अन्य दरबारी लेखक निजामुद्दीन 2 कदम और आगे बढ़ गया और लिखता है कि शाही फ़ौज ने राणा की फ़ौज का पीछा किया और कइयों को मौत के घाट उतार दिया।

जगन्नाथ राय प्रशस्ति, राजरत्नाकर, राणा रासो ग्रंथों में व सुरखण्ड के शिलालेख में महाराणा प्रताप की विजय का उल्लेख किया गया है। सूरखण्ड के शिलालेख में लिखा है कि

“अकबर के विख्यात सेनापति राजा मानसिंह के साथ महाराणा प्रताप का युद्ध हुआ। उसमें महाराणा ने विजय पाई और उसकी खुशी में रणछोड़ जी के मंदिर के पुजारी कुवर को 4 हल भूमि ज्येष्ठ शुक्ल 11 को प्रदान की।”

महाराणा राजसिंह के शासनकाल में किशोरदास द्वारा लिखे गए ग्रंथ राजप्रकाश में लिखा है कि “अकबर से आज्ञा पाकर राजा मानसिंह हाथी, घोड़े, पैदल फौज सहित युद्ध के लिए इस प्रकार चला कि पृथ्वी कम्पायमान होने लगी। दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय रही”

उदयपुर की भींडर तहसील के खरसाण गांव में स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का एक शिलालेख प्रकाश में आया है, जो कि 1576 ई. का है।

यह शिलालेख हल्दीघाटी युद्ध के 3 माह बाद 27 सितंबर, 1576 ई. के दिन महाराणा प्रताप द्वारा मुगल सेना को गोगुन्दा में परास्त करने के बारे में है। इस शिलालेख में भगवान विष्णु के नरसिंहावतार को नमन करते हुए धन्यवाद अर्पित किया गया है।

डॉक्टर चंद्रशेखर शर्मा द्वारा महाराणा प्रताप की विजय के संबंध में प्रस्तुत किए गए साक्ष्य काफी महत्वपूर्ण हैं। उनका दावा है कि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध विजय के बाद ताम्रपत्र जारी करवाये थे व ज़मीनें दान की थीं।

यदि हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों की विजय मानी जाए, तो ये कैसी विजय है जिसमें विजयी होने के बावजूद शत्रु पक्ष का पीछा करने में भय लगता हो ? लूट के नाम पर मुगल फ़ौज के पास एकमात्र रामप्रसाद हाथी था।

समकालीन मुगल लेखक निजामुद्दीन द्वारा लिखा गया वर्णन अगले भागों में विस्तार से लिखा जाएगा, जिसमें उसने लिखा है कि राजा मानसिंह ने गोगुन्दा में चारों तरफ दीवार खड़ी करवा दी, ताकि राणा अचानक हमला न कर दे।

उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र में स्थित महाराणा प्रताप की 57 फीट ऊंची प्रतिमा

भला ये कैसी विजय है कि विजयी फौज के सेनापति को फौज के पड़ाव के चारों तरफ दीवारें खड़ी करनी पड़े ? मुगल लेखकों ने हल्दीघाटी युद्ध के वर्णन की शुरुआत में ही लिखा है कि मेवाड़ पर इस चढ़ाई का मक़सद राणा को मारना व उसके मुल्क को जड़ समेत उखाड़ना है।

लेकिन मुगल फ़ौज अपने इस मकसद के निकट तक नहीं जा सकी, यहां तक की इस मकसद को पूरा करने का प्रयास तक उनसे नहीं किया जा सका। कुछ दिनों के लिए राजा मानसिंह व आसफ़ खां के मुगल दरबार में आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

मुगलों की इस तथाकथित विजय के 4 माह बाद ही आधे से अधिक हिंदुस्तान के बादशाह अकबर को 80 हज़ार की फौज समेत मेवाड़ कूच करना पड़ा।

जो यह सिद्ध करता है कि मुगलों की ये विजय मात्र कुछ पुस्तकों की उपज है और पुस्तकें भी वो जो मुगल पक्ष के समकालीन लेखकों द्वारा लिखी गई।

इस पोस्ट के लेखक की निजी राय में ये युद्ध अनिर्णीत है। इसके कारण हैं झाला मानसिंह का बलिदान, स्वामिभक्त चेतक का बलिदान, रामप्रसाद हाथी का बंदी बनाया जाना, महाराणा प्रताप द्वारा छापामार युद्ध नीति अपनाना आदि घटनाएं।

बहरहाल, हाल ही में 2021 ई. में सरकार ने महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी युद्ध में विजयी घोषित किया है व हल्दीघाटी में पुराने बोर्ड हटाकर नए बोर्ड लगाए गए हैं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

2 Comments

  1. Sahdevsinh Vaghela
    May 14, 2021 / 7:28 am

    Jay Rajputana

  2. Amit Kumar
    May 14, 2021 / 7:45 am

    यही निष्पक्ष है।

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