वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 38)

18 जून, 1576 ई. को हुए हल्दीघाटी के युद्ध में जीवित बचने वाले प्रमुख योद्धा :- घाणेराव के ठाकुर गोपालदास राठौड़ :- उदयपुर स्थित प्रताप गौरव केन्द्र में हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाने वाले योद्धाओं की सूची में इनका नाम भी लिखा गया है।

उस समय मैंने इस बात को सच मान लिया था, पर बाद में मैंने घाणेराव का इतिहास पढा, तो मालूम हुआ कि हल्दीघाटी में गोपालदास जी का प्राणान्त नहीं हुआ था।

दरअसल गोपालदास राठौड़ को हल्दीघाटी युद्ध में कुल 27 घाव लगे व जीवित रहे। बाद में कुम्भलगढ़ के युद्ध में भी महाराणा प्रताप के साथ रहे।

भामाशाह व ताराचंद कावड़िया :- इन दोनों सगे भाइयों ये हल्दीघाटी युद्ध में भाग लिया व महाराणा प्रताप के साथ ही रणभूमि से प्रस्थान किया। ये दोनों भाई मात्र व्यापार में ही नहीं, युद्धक्षेत्र में भी अपनी तलवार का जौहर दिखाते थे।

भामाशाह जी

सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत :- मेवाड़ की हरावल में रहकर शत्रु पक्ष की हरावल को 5-6 कोस तक खदेड़ने वाले वीर रावत कृष्णदास जी को हल्दीघाटी के युद्ध में कोई भी मुगल मार नहीं पाया।

रावत कृष्णदास ने इस लड़ाई में वैसा ही पराक्रम दिखाया, जैसा इनके पूर्वजों ने अपने-अपने समय में दिखाया था। जिस समय महाराणा प्रताप ने रणभूमि छोड़ी थी, तब रावत कृष्णदास चुंडावत भी उनके साथ थे व चेतक के अंतिम संस्कार के समय भी रावत जी वहां उपस्थित थे।

चारण कवि रामा सांदू व गोरधन बोगस :- इनका नाम हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति पाने वालों में लिया जाता है, जो की सही नहीं है। क्योंकि हल्दीघाटी युद्ध के बारे में रामा सांदू के लिखे हुए दोहे मिलते हैं।

रामा सांदू धरमा सांदू के पुत्र थे। चारण कवि गोरधन बोगस ने हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप द्वारा बहलोल खां वध का वर्णन किया। हल्दीघाटी युद्ध में इन्होंने मेवाड़ की चन्दावल में रहकर वीरता दिखाई थी।

पानरवा के राणा पूंजा :- कुछ इतिहासकारों ने इनका नाम भी वीरगति पाने वालों में शामिल कर लिया, जबकि इन्होंने छापामार युद्धों में महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया।

राणा पूंजा का देहान्त हल्दीघाटी युद्ध के 34 वर्ष बाद हुआ। मांडण कूंपावत, देवगढ़ के कुंवर दूदा चुण्डावत, जवास के रावत बाघसिंह चौहान, कोशीथल की महारानी आदि वीरों ने भी हल्दीघाटी युद्ध में भाग लिया व जीवित रहे।

इन योद्धाओं ने युद्ध में भाग तो लिया, परन्तु इनके वीरगति पाने या न पाने के विषय में सन्देह है :- महाराणा प्रताप के भाई मानसिंह, बनोल के ठाकुर तेजमल राठौड़, शेरखान चौहान, सादड़ी के ठाकुर किशनदासोत कावेड़िया, नगा, संभरी नरेश संग्रामसिंह, वागड़ के नाथा चौहान।

हल्दीघाटी में काम आने वाले सैनिकों व योद्धाओं की संख्या :- हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से 150 प्रमुख योद्धाओं सहित बहुत से वीर सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में 150 खास मुगल सिपहसालार और 350 कछवाहा सिपहसालार हजारों सैनिकों सहित मारे गए।

युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक अब्दुल क़ादिर बदायूनी ने लिखा कि इस लड़ाई में दोनों पक्षों के मिलाकर 500 आदमी मारे गए, जिनमें से 120 मुस्लिम व 380 हिन्दू थे।

बदायूनी द्वारा बताए गए ये फ़ौजी आंकड़े नहीं हैं, बल्कि खास योद्धाओं के आंकड़े हैं। क्योंकि यदि इस लड़ाई में 380 हिन्दू काम आते, तो सम्भव है कि इनमें से आधे कछवाहा और आधे मेवाड़ी होते।

यदि ऐसा भी माने तो 190 मेवाड़ी होते हैं। मैंने पिछले भाग में मेवाड़ के लगभग सवा सौ योद्धाओं के नाम लिखे हैं, जिन्होंने इस युद्ध में वीरगति पाई।

यदि इस दिशा में और शोध किया जाए तो बदायूनी जितनी संख्या बताता है, उतने मेवाड़ी वीरों के तो केवल नाम ही मिल जाते हैं।

क्या ये संभव है कि 445 वर्ष पूर्व हुए युद्ध में वीरगति पाने वाले समस्त वीरों व सैनिकों के नाम आज मौजूद हों ? नहीं, ये सम्भव नहीं है। इसलिए मुझे इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं कि ये आंकड़े खास वीरों के बारे में है, न कि सैनिकों के बारे में।

हल्दीघाटी म्यूजियम के अनुसार दोनों तरफ से कुल 18000 सैनिकों ने इस लड़ाई में प्राण त्यागे। हालांकि वास्तविक आंकड़े तो इतिहास के गर्त में हैं, परन्तु जिस प्रकार का वर्णन समकालीन इतिहासकारों ने किया है,

उसे पढ़कर यही लगता है कि इस लड़ाई में हज़ारों सैनिक व योद्धा खेत रहे। बदायूनी ने स्वयं ही लिखा है कि “इस लड़ाई में मैंने बिना निशाना साधे तीर चलाए और भीड़ इतनी थी कि मेरा एक भी वार खाली नहीं गया।”

यहां अबुल फ़ज़ल का बयान बहुत महत्वपूर्ण है। उसने स्पष्ट रूप से लिखा है कि “इस लड़ाई में 150 गाज़ी काम आए और दुश्मन फ़ौज के 500 ख़ास लड़ाके धूल में मिल गए”

इस कथन में लिखा गया ‘खास’ शब्द यह बताने के लिए पर्याप्त है कि यहां विशिष्ट वीरों की बात हो रही है, न कि सैनिकों की। यह आश्चर्यजनक है कि डॉ. ओझा जैसे इतिहासकार भी इस भ्रांति को समझ न सके।

रक्त तलाई :- हल्दीघाटी युद्ध के दिन भयंकर गर्मी रही, पर युद्ध के बाद बारिश हुई, जिससे दोनों तरफ के हजारों सैनिकों के रक्त ने खमनौर गांव में एक छोटी तलाई का रुप ले लिया, जिसे आज रक्त तलाई के नाम से जाना जाता है।

वर्तमान में रक्त तलाई को एक गार्डन के रुप में विकसित किया हुआ है, जहां राजराणा झाला मान, राजा रामशाह तोमर, कुँवर शालिवाहन तोमर की छतरियां, सती माता का स्थान व हाकिम खां सूर की मजार है।

कोशीथल महारानी की बहादुरी :- हल्दीघाटी युद्ध से कुछ समय पहले मेवाड़ के कोशीथल ठिकाने के सामन्त का देहान्त हुआ। हल्दीघाटी युद्ध के समय कोशीथल के स्वर्गीय सामन्त के पुत्र छोटे थे, इसलिए युद्ध में भाग नहीं ले सकते थे।

ऐसी परिस्थिति में कोशीथल की महारानी ने युद्ध के लिए ज़िरहबख्तर पहने और इस तरह बहादुरी दिखाई कि खुद मेवाड़ के योद्धा भी उनको पहचान नहीं पाए।

कोशीथल महारानी

युद्ध के बाद जब महाराणा प्रताप घायल अवस्था में उपचार करवाने गाँव कालोड़ा में पहुंचे, तो वहां उन्होंने घायल सैनिकों की मदद करती हुई सैनिक वेश में एक स्त्री देखी।

महाराणा प्रताप को जब कोशीथल महारानी के युद्ध में भाग लेने की बात पता चली तो उन्होंने महारानी की वीरता की काफी प्रशंसा की। महाराणा प्रताप ने कोशीथल महारानी से कहा कि “आप क्या पारितोषिक प्राप्त करना चाहेंगी”

महारानी की इच्छानुसार महाराणा प्रताप ने उनको एक कलंगी प्रदान की, जो ‘हूंकार की कलंगी’ के नाम से जानी जाती है।

इस घटना के कई वर्षों बाद तक कोशीथल ठिकाने के ठाकुर इस कलंगी को अपनी पगड़ी पर लगाकर दरबार में आते रहे। हूंकार नाम का एक पक्षी होता है, जिसके पंखों की कलंगी अपना महत्व रखती है।

(कोशीथल महारानी की इससे मिलती जुलती घटना महाराणा राजसिंह से भी संबंधित बताई जाती है। मुझे कोशीथल महारानी के हल्दीघाटी युद्ध में भाग लेने की

जानकारी प्रताप गौरव केंद्र से मिली है, लेकिन मुझे अभी पूर्ण विश्वास नहीं है कि ये घटना सत्य है। आशा है कि इस विषय में आगे कोई नया शोध किया जा सकेगा।)

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

3 Comments

  1. Amit Kumar
    May 14, 2021 / 4:03 am

    बहुत सुंदर वर्णन है ।

  2. Chandan Singh Chauhan
    May 18, 2021 / 5:55 am

    Jai mewar. Jai rajplutana .. hkm.rajputo me sabhi raja Maharajao ne humare purvajo ne veer gati prapt ki. Hkm. Kya aapki jankari me randhawal rajputo ka koi yogdan raha Kya ? Kyonki itihas me aisa bhi likha gaya he ki randhawal rajputo ki bhi ek sefty rakhne vaali team ko sena ko harawal sena kaha jata tha. Jise rajao Jaisi sefty milti thi. Agar yuddh ka nagada chin jata tha to raja ki haar maani jaati thi. Please kuch jankari aapke pass ho to share kare… Me aapke saari post badi dilchaspi se read Karta hu. …Jai rajplutana….hkm

  3. JITENDRA SINGH RANAWAT
    May 20, 2021 / 11:35 am

    नगा/नगराज (महाराणा प्रताप के भाई) के बारे में और उनके इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करावे हुकुम।

    जय मां भवानी

    निवेदक
    जितेन्द्र सिंह राणावत
    आबाखेड़ी, जिला भीलवाड़ा

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