वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 37)

18 जून, 1576 ई. को लड़े गए हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध में वीरगति पाने वाले महत्वपूर्ण योद्धाओं की सूची :-

डोडिया राजपूतों का बलिदान :- लावा सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया ने मुगल फौज के सेनापति राजा मानसिंह कछवाहा के हाथी पर भाला फेंका लेकिन जवाबी कार्रवाई में वीरगति को प्राप्त हुए।

लेकिन इस लड़ाई में इनके परिवार के बलिदानों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। ठाकुर भीमसिंह के पुत्रों कुंवर हम्मीर सिंह डोडिया व कुंवर गोविन्द सिंह डोडिया ने भी अपने पिता के साथ देवलोकगमन किया। ठाकुर भीमसिंह डोडिया के 2 भाई भी इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए।

पठानों का बलिदान :- हल्दीघाटी के युद्ध में प्रसिद्ध वीर पठान हाकिम खां सूर ने अपने प्राणों का ऐसा बलिदान दिया, जिसे आनी वाली पीढियां सदैव याद रखेंगी।

पठान हाकिम खां मायरा स्थित शस्त्रागार के प्रमुख थे व इन्होंने ही हल्दीघाटी के युद्ध मेवाड़ की हरावल का नेतृत्व किया था। हाकिम खां के प्रमुख सहयोगी मोहम्मद खान पठान ने भी हल्दीघाटी में प्राणोत्सर्ग किया।

पठान हाकिम खां सूर

चारणों का बलिदान :- हल्दीघाटी की रणभूमि पर चारण कवियों ने न केवल अपनी वाणी से, बल्कि अपनी तलवार से भी शत्रुओं पर भीषण प्रहार किए। हल्दीघाटी में लगभग 100 चारण कवियों ने भाग लिया था।

सोन्याणा वाले चारणों के पूर्वजों केशव बारठ व जयसा बारठ ने वीरगति प्राप्त की। कान्हा सांदू, अभयचन्द बोगसा चारण व खिड़िया चारण ने भी प्राणोत्सर्ग किया।

चारण केशव बारठ

चौहान राजपूतों का बलिदान :- कोठारिया के राव चौहान पूर्बिया, रामदास चौहान, राजा संग्रामसिंह चौहान, विजयराज चौहान, राव दलपत चौहान, सांभर के राव शेखा चौहान, हरिदास चौहान, शूरसिंह चौहान,

बेदला के राव ईश्वरदास के पुत्र भगवानदास चौहान, परबत सिंह पूर्बिया के पुत्रों दुर्गादास चौहान व दूरस चौहान ने हल्दीघाटी के युद्ध में अपना बलिदान देकर अपने पूर्वजों कीर्ति उज्ज्वल की।

राठौड़ राजपूतों का बलिदान :- कानियागर के मानसिंह राठौड़, बागड़ के ठाकुर नाथुसिंह मेड़तिया राठौड़, केलवा के ईश्वरदास राठौड़ के पुत्र भगवानदास राठौड़, मेड़ता के वीरमदेव के पुत्र व वीरवर जयमल राठौड़ के भाई प्रताप राठौड़,

वीरवर जयमल राठौड़ के पुत्र बदनोर के कूंपा राठौड़, मल्लीनाथ के वंशज नीमडी के महेचा बाघसिंह राठौड़ कल्लावत, बनोल ठिकाने के जैतमलोत राठौड़ शंकरदास, रामदास, केनदास, शंकरदास के पुत्रों नरहरीदास व नाहरदास ने हल्दीघाटी में प्राणोत्सर्ग किया।

वीरवर कल्लाजी राठौड़ के पुत्र राठौड़ साईंदास पंचायनोत जेतमालोत अपने 13 साथियों समेत हल्दीघाटी में काम आए।

साईंदास राठौड़ के साथी मेघा खावडिया, सिंधल बागा, दुर्गा चौहान, जयमल, वागडिया आदि वीर वीरगति को प्राप्त हुए और कल्लाजी राठौड़ की कीर्ति को और अधिक उज्ज्वल किया।

बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़, जो कि वीरवर जयमल राठौड़ के 7वें पुत्र थे। रामदास जी अपने 9 साथियों समेत काम आए, जिनमें से एक रामदास जी के पुत्र कुंवर किशनसिंह राठौड़ थे।

ठाकुर रामदास राठौड़ आमेर के जगन्नाथ कछवाहा के साथ मुकाबले में वीरगति को प्राप्त हुए थे। रामदास जी मेवाड़ की हरावल में थे।

ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर, उनके पुत्र कुंवर शालिवाहन तोमर, कुंवर भवानी सिंह तोमर, कुंवर प्रताप तोमर, राजा रामशाह के पौत्र भंवर धर्मागत तोमर, राजा रामशाह तोमर के साथी दुर्गा तोमर, बाबू भदौरिया,

कुंवर भवानी सिंह तोमर

खाण्डेराव तोमर, बुद्ध सेन, शक्तिसिंह राठौड़, विष्णुदास चौहान, डूंगर, कीरतसिंह, दौलतखान, देवीचन्द चौहान, अभयचन्द्र, राघो तोमर, राम खींची, ईश्वर, पुष्कर, कल्याण मिश्र, हरिसिंह के पुत्र छीतर सिंह चौहान ने हल्दीघाटी के रण में वीरगति पाई।

हल्दीघाटी में पंवार राजपूतों का बलिदान :- महाराणा प्रताप के ससुर व महारानी अजबदे बाई कर पिता बिजौलिया के राव रामरख पंवार, महारानी अजबदे बाई के भाई कुंवर डूंगरसिंह पंवार व

कुंवर पहाडसिंह पंवार ने हल्दीघाटी में प्राण त्यागे। खडा पंवार के दो पुत्र ताराचन्द पंवार व सूरज पंवार भी वीरगति को प्राप्त हुए। वीरमदेव पंवार ने भी वीरगति पाई।

चुंडावतों का बलिदान :- हल्दीघाटी की रणभूमि पर सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत के भाईयों रामसिंह चुण्डावत व प्रतापसिंह चुण्डावत ने वीरगति पाई।

रावत खेतसिंह चुण्डावत के पुत्र भी खेत रहे। देवगढ़ के रावत सांगा चुंडावत व उनके पुत्र कुंवर जगमाल चुण्डावत ने मेवाड़ की हरावल में रहकर वीरगति पाई।

चित्तौड़ के तीसरे शाके के नेतृत्वकर्ता वीरवर पत्ता चुंडावत के बड़े भाई पृथ्वीराज चुण्डावत पत्ता व पत्ताजी के पुत्र आमेट के ठाकुर कल्याणसिंह चुण्डावत ने हल्दीघाटी में वीरगति पाकर अपने पिता की कीर्ति और उज्ज्वल की।

ठाकुर कल्याणसिंह के पीछे इनकी रानी बदन कंवर राठौड़ सती हुईं। रानी बदन कंवर मेड़ता के वीर जयमल राठौड़ की पुत्री थीं। अचलदास चुण्डावत भी खेत रहे।

देवगढ़ के रावत सांगा चुंडावत

महाराणा प्रताप के मामा पाली के मानसिंह सोनगरा चौहान, जो कि अपने 11 साथियों समेत हल्दीघाटी में खेत रहे। मानसिंह जी ने महाराणा प्रताप को राजगद्दी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

मानसिंह जी के वीरगति पाने के बाद इनके छोटे भाई भाण सोनगरा जी महाराणा प्रताप की सेवा में उपस्थित हो गए।

महाराणा प्रताप के भाई कान्हा और कल्याणसिंह ने हल्दीघाटी के रण में प्राणोत्सर्ग किया। कान्हा जी को कान्ह भी कहते हैं और कल्याणसिंह को कल्ला भी कहते हैं। कान्ह जी के वंशज आमल्दा व अमरगढ़ में हैं।

कान्ह जी के वंशज कानावत कहलाते हैं। इन दोनों भाइयों द्वारा हल्दीघाटी में वीरगति पाने की जानकारी बांकीदास री ख्यात से मिलती है।

कल्याणचन्द मिश्र, पुरोहित जगन्नाथ, पडियार कल्याण, महता जयमल बच्छावत, महता रतनचन्द खेमावत, महासहानी जगन्नाथ, पुरोहित गोपीनाथ,

पुरोहित गोपीनाथ

गवारड़ी रेलमगरा के मेनारिया ब्राह्मण कल्याण जी पाणेरी, राजपुरोहित नारायणदास पालीवाल के 2 पुत्रों ने हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ की चन्दावल, जो कि सेना का सबसे पिछला भाग होता है,

उसमें रहकर वीरता से लड़े और वीरगति पाई। एक श्रीमाली ब्राह्मण के पीछे उनकी एक पत्नी सती हुईं। रक्त तलाई में इन सती माता का स्थान अब तक मौजूद है।

रक्त तलाई में स्थित सती माता का स्थान

सुन्दरदास, जावला, प्रयागदास भाखरोत, मानसिंह, मेघराज, खेमकरण, नन्दा पडियार, पडियार सेडू, साँडू पडियार, जसवन्त सिंह, रामलाल, कीर्तिसिंह राठौड़, जालमसिंह राठौड़, आलमसिंह राठौड़, भवानीसिंह राठौड़,

अमानीसिंह राठौड़, रामसिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, राघवदास, गोपालदास सिसोदिया, मानसिंह सिसोदिया, राजा विट्ठलदास, भाऊ, नागराज, भीलवाड़ा के जैसा सौदा, आदि वीरों ने भी हल्दीघाटी में प्राणोत्सर्ग किया।

ठाकुर सावन्त सिंह सौलंकी के पुत्र देसूरी के खान सौलंकी, पाली के अखैराज के पुत्र राव नृसिंह अखैराजोत, बड़ी सादड़ी के राजराणा झाला मानसिंह, देलवाड़ा के झाला, मानसिंह, प्रतापगढ़ के कुंवर कमल सिंह,

धमोतर के ठाकुर कांधल जी जैसे महान वीरों ने हल्दीघाटी में अपने प्राणों का बलिदान दिया। ठाकुर कांधल को उनके काका देवलिया के महारावत बीका ने हल्दीघाटी युद्ध में लड़ने भेजा था।

कानोड़ के रावत नेतसिंह सारंगदेवोत का बलिदान :- ये खानवा की लड़ाई में वीरगति पाने वाले रावत जोगा सारंगदेवोत के पुत्र थे। रावत नेतसिंह सारंगदेवोत ने 1567 ई. में अकबर के आक्रमण के समय मेवाड़ के राजपरिवार की रक्षा का उत्तरदायित्व निभाया था।

देशहित में अपने पूर्वजों के बलिदानों का क्रम जारी रखते हुए रावत नेतसिंह सारंगदेवोत ने हल्दीघाटी में प्राणोत्सर्ग किया।

रावत नेतसिंह सारंगदेवोत

महाराणा प्रताप द्वारा रणभूमि से प्रस्थान करने के बाद शेष जो 500 वीर रणभूमि में टिके थे, उनमें से एक रावत नेतसिंह थे। बड़ा गर्व है कि मैं इन्हीं का वंशज हूँ।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

5 Comments

  1. Amit Kumar
    May 13, 2021 / 3:25 pm

    यह अतुलनीय बलिदान है।

  2. Kunwar Gopal Singh katyasani
    May 14, 2021 / 12:39 am

    और मै जयमल mertiya का☺️ वंशज हूं

  3. Mahipal singh Jhala
    May 16, 2021 / 5:28 am

    आपके द्वारा इतिहास पर शोध ओर एक अत्यंत ही सरल माध्यम से सभी तक पोहोचने के लिए आपका आभार, आपके अन्य लेख भी अत्यंत ही ज्ञानदायक हैं , मगर इस लेख से आपने जिस तरह से “झाला राजवंश” के गौरवशाली इतिहास जो की इतिहास में अब तक एक अतुलनीय उदाहरण हे के एक ही परिवार के 7 पीढ़ियों का उत्तरोत्तर बलिदान मेवाड़ राजवंश के लिए, जिसके कारण ही मेवाड़ के आधे दीवान का दर्जा तक प्राप्त हैं झाला वंश को, के हल्दीघाटी इतिहास में आपने सिर्फ़ 1 पंक्ति तक सीमित कर दिया जबकि अन्य सामंतो का आपने उनके परदादाओं तक बलिदान का इतिहास संलग्न किया हैं, यह लेखन अपने आप में पूर्णतः न्याय नहीं करता आपके द्वारा हल्दीघाटी योध्हाओ का बखान करने में 🙏🏼

    • May 16, 2021 / 8:43 am

      प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आपका।
      आपने सम्भवतः महाराणा प्रताप के इतिहास भाग 33 का अध्ययन नहीं किया। हम वहां अलग से राजराणा झाला मानसिंह जी पर विस्तार से लिख चुके हैं, इसलिए भाग 37 में केवल नाम लिखा गया है।

  4. Mahesh
    May 16, 2021 / 1:28 pm

    Pushkarna Brahman bhi shahid huwe. Unka vivran nahi aaya

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