वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 33)

18 जून, 1576 ई. को लड़े गए हल्दीघाटी के युद्ध में हाथियों की भिड़न्त का वर्णन :- महाराणा प्रताप की तरफ से लगभग 100 हाथियों ने हल्दीघाटी युद्ध में भाग लिया, जिनमें रामप्रसाद, लूणा, चक्रबाप, खांडेराव आदि प्रसिद्ध हाथी भी शामिल थे।

मुगल हाथी :- हल्दीघाटी युद्ध में गजराज, गजमुक्त, रणमदार आदि अनेक मुगल हाथियों ने भाग लिया। मुगल हाथियों को युद्ध के अंतिम चरण में सामने लाया जाता था। इन हाथियों को फौलादी पोशाक, जिसको पाखर कहा जाता है, पहनाई जाती थी।

मुगल सेनापति के हाथी :- इन हाथियों की पीठ पर फौलाद की चद्दर से मढ़ा हुआ हौदा होता था, इस पर ऊपर से टंकी बैठनी की जगह होती थी। इसके चारों किनारे 3 फीट उठे हुए होते थे।

उठे किनारों के कारण बैठने वाले का सिर व कंधों के अतिरिक्त सारा शरीर सुरक्षित रहता था। ऊंचे हाथी का उपयोग इसलिए किया जाता था, ताकि सेनापति को दूर-दूर तक देखा जा सके।

महाराणा प्रताप

लूणा का बलिदान :- मेवाड़ के हाथी लूणा ने लड़ाई में अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक अब्दुल क़ादिर बदायूनी लिखता है

“मानसिंह के ठीक पीछे वाले हाथी पर हाथियों का दारोगा हुसैन खां सवार होकर जंग में शामिल हुआ। मानसिंह ने अपने हाथी के महावत की जगह बैठकर बड़ी बहादुरी दिखाई”

अबुल फजल लिखता है “दुश्मन राणा के हाथी लूणा का सामना करने की खातिर जमाल खां शाही हाथी गजमुक्त को आगे लेकर आया। इन दो पहाड़ जैसे हाथियों की भिड़न्त इतनी खतरनाक हुई, कि सब घबरा गए। लूणा ने शाही हाथी गजमुक्त को जख्मी कर दिया”

लूणा के महावत को बन्दूक की गोली लगी, कुछ देर बाद लूणा ने भी अपने प्राण त्याग दिए। लूणा के बलिदान के बाद मुगलों के सामने लाया गया मेवाड़ का सबसे प्रसिद्ध हाथी रामप्रसाद।

रामप्रसाद की बहादुरी :- रामप्रसाद महाराणा प्रताप का प्रिय हाथी था। इस हाथी की मांग अकबर ने सन्धि प्रस्तावों के जरिए की थी, पर महाराणा प्रताप ने इस मांग को ठुकरा दिया था।

कुँवर प्रताप सिंह तोमर

अबुल फजल लिखता है “राणा के रामप्रसाद हाथी को लेकर शाही दरबार में कई बार बात होती थी”

हल्दीघाटी युद्ध में जख्मी हो चुके महाराणा प्रताप ने आखिरी दांव आजमाया और उन्होंने राजा रामशाह तोमर के पुत्र प्रताप तोमर से कहा कि रामप्रसाद को आगे लेकर आओ।

कुँवर प्रताप तोमर रामप्रसाद हाथी को आगे लाए। रामप्रसाद ने आते ही न सिर्फ मुगल सैनिकों को बल्कि मुगल हाथियों को भी मार गिराया।

अबुल फजल लिखता है “राणा के सबसे खास रामप्रसाद हाथी ने आते ही कोहराम मचा दिया। शाही फौज में खलबली मच गई। जब हालत बिगड़ती नज़र आई,

तो कमाल खां ने गजराज हाथी को और पंजू ने रणमदार हाथी को आगे लाकर रामप्रसाद से भिड़न्त करवाई। शाही हाथी रणमदार के पैर उखड़ने लगे”

महाराणा प्रताप

गजराज व रणमदार नामक दो मुगल हाथियों की भिड़न्त रामप्रसाद से हुई कि तभी एक तीर रामप्रसाद के महावत को लगा, जिससे महावत उसी समय वीरगति को प्राप्त हुआ।

मुगल महावतों ने रामप्रसाद को चारों तरफ से घेर लिया। कुँवर प्रताप तोमर इस प्रसिद्ध हाथी के पास वीरगति को प्राप्त हुए।

बड़ी मुश्किल से एक मुगल महावत ने रामप्रसाद पर चढ़ने में सफलता प्राप्त कर ली और चारों तरफ से घिरे इस स्वामिभक्त हाथी को बेड़ियों में जकड़ लिया गया। रामप्रसाद को कैद कर अकबर के पास ले जाने का वर्णन आगे के भागों में लिखा जाएगा।

राजा मानसिंह कछवाहा पर आधारित ग्रंथ मानप्रकाश में हल्दीघाटी युद्ध के संबंध में लिखा है कि “हाथी से हाथी भिड़ गए और घोड़े से घोड़े। पैदल से पैदल लड़ने लगे। इस प्रकार उस समय दोनों ओर से समान प्रयोग हो रहा था।

इस भयंकर संग्राम को देखकर देवताओं का समूह भी आश्चर्यचकित हो गया। शस्त्रों की अधिकता से हुए घने अंधकार में भय से आक्रांत मन व शरीर वाले योद्धा भागने लगे। जो जिसके सामने चला गया, उसने उसको मार

महाराणा प्रताप व रामप्रसाद

डाला, अपने पराए का भेद नहीं रखा गया। खड्ग से काटे गए हाथी व घुड़सवार वहां गिरे पड़े थे। युद्ध करने वाले योद्धाओं की वहां खून की नदी उत्पन्न हो गई। मरे हुए हाथी महान पर्वत के समान लग रहे थे”

झाला मान का बलिदान :- रणभूमि में महाराणा प्रताप बुरी तरह घायल हो चुके थे। मुगल सेना ने उन्हें चारों ओर से घेर रखा था। महाराणा पर तीरों की बौछारें हो रही थीं।

ऐसे समय में वीर झाला मान, जिन्हें झाला बींदा भी कहा जाता है, वहां आ पहुंचे और शत्रु सेना की उस टुकड़ी का नाश करके महाराणा को कुछ दूर ले गए। झाला मान महाराणा प्रताप के छत्र-चँवर धारण कर बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

झाला मान के इस बलिदान ने मेवाड़ के उस सूर्य को बचा लिया, जिसने आने वाले 25 वर्षों तक मुगलों से अपनी मातृभूमि की रक्षा की।

झाला मानसिंह ने अपना नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा लिया। जब जब महाराणा प्रताप को याद किया जाएगा, तब तब वीर झाला मानसिंह स्वतः आंखों के सामने आएंगे।

झाला मानसिंह जी की छतरी, जहां वे वीरगति को प्राप्त हुए

खमनौर स्थित रक्त तलाई में झाला मान की छतरी अब तक मौजूद है। झाला मान के पीछे इनकी दो रानियाँ सती हुईं, जिनके नाम इस तरह हैं :-

१) रामपुरा की हरकंवर चन्द्रावत, जो कि उदयसिंह चंद्रावत की पुत्री थीं। २) जुनिया की राजकंवर राठौड़, जो कि पृथ्वीसिंह राठौड़ की पुत्री थीं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

3 Comments

  1. झाला वीरमदेवसिंहजी
    May 13, 2021 / 12:13 pm

    जय माता जी हुकुम आपकी तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है हमारी आने वाली पीढ़ी को आपसे बहुत प्रेरणा मिलने वाली है आप जिस तरीके से इतिहास को उजागर करने के हेतु इतना परिश्रम कर रहे हैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद और वंदन के साथ अभिनंदन…🚩 जय झाला मानसिंह 🙏🏻 जय झालावाड़🙏🏻

    • May 13, 2021 / 12:17 pm

      अपार उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार हुकम

  2. Naresh bhardwaj
    May 14, 2021 / 9:30 am

    feeling proud to read our history my regards

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