18 जून, 1576 ई. को हुए हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप व राजा मानसिंह के बीच हुई आमने-सामने की लड़ाई का वर्णन :- युद्धभूमि में महाराणा प्रताप की नजर मुगल फौज के बीच मर्दाना नामक हाथी पर सवार राजा मानसिंह पर पड़ी।
महाराणा प्रताप बिना समय गंवाए मुगल फौज को चीरते हुए राजा मानसिंह तक पहुंचे और राजा मानसिंह से कहा कि “तुमसे जहाँ तक हो सके बहादुरी दिखाओ।”
मेवाड़ के ग्रंथों के अनुसार चेतक ने अपने दोनों पैर हाथी के सिर पर मारे, तभी महाराणा ने भाले से राजा मानसिंह पर वार किया। भाला राजा मानसिंह के महावत को चीरता हुआ निकल गया।
महाराणा प्रताप ने भाले से एक और वार किया पर भाला राजा मानसिंह के कवच तक ही पहुंचा। सिंह मान कुंजर सिरे, अर चेटक दीवाण। भालो बख्तर भेदियो, रंग तने महराण।।
चेतक ने भी अपने पैरों से हाथी के सिर पर भरपूर प्रहार किया, परन्तु उतरते वक्त हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक का पिछला पैर बुरी तरह जख्मी हो गया।
महाराणा प्रताप ने फौरन कटारी निकालकर राजा मानसिंह पर फेंकी, परन्तु राजा मानसिंह के झुकने से कटारी हौदे में लग गई।
बाही राण प्रतापसी, बख्तर में बरछी। जाणक झींगर जाल में, मुंह काढे मच्छी।। अर्थात महाराणा प्रताप सिंह ने जो बरछी चलाई, वो कवच के परली तरफ निकलकर ऐसी शोभा देने लगी मानो किसी छोटी मच्छी ने जाल में से मुंह निकाला हो।
महाराणा प्रताप और राजा मानसिंह के आमने-सामने के मुकाबले में महाराणा का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा था, कि तभी राजा मानसिंह की मदद खातिर उनके भाई माधोसिंह को आना पड़ा।
इस घटना को राजा मानसिंह के जीवन पर आधारित ग्रन्थ मानप्रकाश में कुछ इस तरह लिखा है कि “दोनों सेनाएं बहुत देर तक युद्ध की भावना की से नववधू के समान, जो तरुण गज पंक्ति की गति से युक्त तथा चमकती हुई
तलवारों की कांति से उद्दीप्त थीं, मैदान न छोड़ सकीं। राजा मान भुज-प्रताप से क्षण भर में विपक्षियों को छिन्न-भिन्न कर जीतकर अपने प्रताप से वैरी वर्ग को संतप्त
करता हुआ इंद्र के समान शोभित हुआ। राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह ने आकर राजा मान से कहा कि राजन आप तनिक विश्राम कीजिये, इस युद्ध को मैं समाप्त करता हूं”
अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है “जब खलबली और कटाजञ्झ की लपटें उठ रही थीं, किस्मत की आग जल रही थी, तब कुंवर मानसिंह और राणा आमने-सामने आए और दोनों ने बड़ी बहादुरी दिखाई। ऊपर-ऊपर से
देखने पर लग रहा था कि जीत दुश्मन की हो रही है, पर तभी अचानक खुदा की करामात से मदद मिली। पीछे खड़ी मुगल फौज पूरे इन्तज़ाम के साथ मैदान में आ गई और दुश्मन राणा, जो कि बराबर ज्यादा जोर पकड़े था, उसकी हिम्मत टूट गई”
महाराणा प्रताप का सामना राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह से हुआ। माधोसिंह ने चन्दावल की सैनिक टुकड़ी सहित महाराणा प्रताप को घेर लिया। महाराणा प्रताप पूरी तरह से मुगलों से घिरे हुए थे।
ग्रंथ मानप्रकाश में लिखा है कि “माधोसिंह के बाण से अनेक योद्धा छिन्न-भिन्न हो गए, अनेक राजा दीन हो गए, कुछ युद्धभूमि को छोड़कर भाग गए तो कुछ युद्ध करने के लिए कुछ समय खड़े रहे। दिन में रात्रि की कल्पना की
गई। शत्रु का मित्र भी शत्रु ही होगा। शत्रुओं के युद्ध में अस्त हो जाने पर वह दिन रात्रि के समान हो गया, तब माधोसिंह रूपी चंद्रमा उस रात्रि में प्रकाशित हो उठा। माधोसिंह रूपी चंद्रमा के उद्दीप्त होने पर शत्रु अंधकार बन
गए तथा माधोसिंह के पक्ष वाले योद्धाओं के मुख कुमुदनियो के वन के समान खिल उठे। वीरवर्य राणा प्रताप माधोसिंह से लड़ने के लिए सामने आ गया। कर्ण के समान प्रतापी राणा प्रताप अर्जुन के समान शक्तिशाली राजा मान को जीतने की इच्छा से कठोर वचन बोला”
नाथावत कछवाहा राजपूतों पर आधारित ग्रंथ नाथावंशप्रकाश के अनुसार नाथावत राजपूतों के मूलपुरुष नाथा कछवाहा के बेटे मनोहरदास ने जख्मी चेतक पर प्रहार कर दिया।
मुन्तख़ब उत तवारीख में हल्दीघाटी युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक अब्दुल क़ादिर बदायूनी लिखता है “राणा कीका को माधोसिंह ने घेर लिया और राणा पर तीरों की बौछार होने लगी”
ग्रन्थ मानप्रकाश में लिखा है कि “महाराणा प्रताप जब युद्धभूमि छोड़ रहे थे, तब माधोसिंह ने उनको ललकारा। वह मेवाड़ी वीर भी चुनौती स्वीकार करते हुए मुड़कर
आया। वीर प्रताप ने माधोसिंह और राजा मान को बाणों से ढक दिया, ठीक उसी तरह जिस तरह बादल की जलधारा भूमि को ढक देती है, परन्तु मानसिंह इन तीरों के अंधेरे को चीरकर प्रकाशमयी हुआ”
महाराणा प्रताप बुरी तरह से जख्मी हो गए, तभी महाराणा जैसे दिखने वाले राजराणा झाला मान, जिन्हें झाला बींदा भी कहा जाता है, वहां आ पहुंचे और महाराणा के छत्र, चंवर वगैरह धारण कर मुगलों को चकमा देने में सफल रहे।
राजा मानसिंह पर लिखे गए ग्रंथ मानप्रकाश के अनुसार महाराणा प्रताप ने लौटते समय माधोसिंह से कहा कि “माधोसिंह, अधिक प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं
है। भगवान विष्णु की सौगन्ध जब तक राणा प्रताप जीवित है, तब तक तुम्हें जीत का सपना तक नहीं देखने देगा। मैं जल्द ही तुम्हारी और मानसिंह की खुशियाँ छीन लूंगा।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)