वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 31)

हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप द्वारा बहलोल खां का वध :- हल्दीघाटी के युद्ध में एक समय आया जब मुगल फ़ौज हावी होने लगी और महाराणा प्रताप ने यह तय कर लिया कि यदि उन्हें यह युद्ध जीतना है,

तो राजा मानसिंह को मारना ही होगा, क्योंकि जब तक मुगल फौज के सेनापति राजा मानसिंह युद्धभूमि में हैं तब तक मुगलों की पराजय सम्भव नहीं।

महाराणा प्रताप ने यह निश्चय करके चेतक को राजा मानसिंह की दिशा में दौड़ाया। मुगल सिपहसलारों को जब इस बात की सूचना मिली, तो उन्होंने मुगल फौज की सबसे मज़बूत सैनिक टुकड़ी, जो कि सैयदों की थी, उसको राजा मानसिंह के आगे कर दिया।

महाराणा प्रताप तोमर वंश की फौजी टुकड़ी को लेकर सैयदों के सामने आए और महाराणा ने गरजकर कहा कि आज सैयदों की जमात भी प्रतापसिंह को मानसिंह तक पहुंचने से नहीं रोक सकती।

इतना कहकर महाराणा प्रताप ने सैयदों पर आक्रमण किया। राजा रामशाह तोमर के नेतृत्व वाली तोमर वंश की टुकड़ी सैयदों से भिड़ गई। ये वो क्षण था, जब दोनों ही पक्षों की सबसे मज़बूत सैनिक टुकड़ियां आमने-सामने थीं।

राजा रामशाह तोमर ने सैयदों को युद्ध में उलझाए रखा, तब तक महाराणा प्रताप अकेले ही मुगल फौज को चीरते हुए कछवाहों की भारी जमात के बीच हाथी पर सवार राजा मानसिंह के सामने पहुंचे।

राजा मानसिंह के हाथी के ठीक आगे उजबेक जंगजू बहलोल खां घोड़े पर सवार था। महाराणा प्रताप ने बहलोल खां पर ऐसा भीषण प्रहार किया कि महाराणा की तलवार से बहलोल खां, उसके कवच व घोड़े के दो टुकड़े हो गए।

इस भयानक भर्त्सना ने राजा मानसिंह के इर्द-गिर्द खड़े बादशाही सैनिकों में खलबली मचा दी। हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से भाग लेने वाले चारण कवि गोरधन बोगसा ने बहलोल खां के वध का आँखों देखा वर्णन चार दोहों के माध्यम से लिखा है, जो इस तरह हैं :-

1) गयंद मान रै मुहर ऊभौ हुतो दुरद गत, सिलहपोसां तणा जूथ साथै। तद बही रुक अणचूक पातल तणी, मुगल बहलोल खां तणै माथै।।

महाराणा प्रताप द्वारा बहलोल खां के वध का दृश्य

अर्थात आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा के आगे अपने मददगार सवारों समेत खड़े बहलोल खां पर महाराणा प्रताप की तलवार बही।

2) तणै भ्रमऊद असवार चेटक तणै, घणै मगरुर बहरार घटकी। आचरै जोर मिरजातणैं आछटी, भांचरै चाचरै बीज भटकी।।

अर्थात महाराणा उदयसिंह के पुत्र चेटक सवार महाराणा प्रताप ने शरीर को चीरने वाली तलवार को बहुत जोश से भ्रमाकर अपने हाथ के जोर से मिरजा पर मारी, तो 2 ठठेरे की एरण पर बिजली गिरे ऐसे काट कर निकल गई।

3) सूरतन रीझतां भीजतां सैलगुर, पहां अन दीजतां कदम पाछे। दांत चढतां जवन सीस पछटी दुजड़, तांत सावण ज्युहीं गई जाछे।।

अर्थात सूर्य प्रसन्न होने लगा, बड़े-बड़े पहाड़ रक्त से भीग गए, अन्य राजा अपने पैर पीछे देने लगे, उस समय महाराणा की तलवार शत्रु को इस तरह काटते हुए निकल गई, जैसे साबुन को तांत काटती है।

महाराणा प्रताप

4) वीर अवसाण केवाण उजबक बहे, राण हथबाह दुय राह रटियो। कट झलम सीस बगतर बरंग अंग कटै, कटै पाषर सुरंग तुरंग कटियो।।

अर्थात महाराणा प्रताप के इस बाहुबल की हिन्दू-मुस्लिम दोनों ने ही बड़ी प्रशंसा की। महाराणा के वार से बहलोल खां का टोप कट, शीष कट, बख्तर कट, शरीर कट, पाखर कटकर सुरंग रंग वाला घोड़ा तक कट गया।

एक अन्य कवि ने इस विषय में एक दोहा लिखा :- खल बहलोल खपार, पेल दल लाखां प्रसण। अस चेटक उलटार, पहुंतो उदयाचल पतो।।

अर्थात अनेक शत्रुओं के दल को छिन्न-भिन्न करके व दुष्ट बहलोल खां को मारकर वीर महाराणा प्रतापसिंह अपने चेटक घोड़े को वापिस लौटाकर उदयपुर पहुंचे।

इस संबंध में वीर सतसई में दोहा लिखा है :- जरासंध बहलोल के, वध में यह व्यतिरेक। भीम कियौ द्वै भुजन तें, पातल ने कर एक।।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप

अर्थात महाभारत के जरासंध व हल्दीघाटी के बहलोल खां, दोनों के ही युद्ध में दो टुकड़े हुए। परन्तु भीम ने जरासंध को मारने के लिए अपने दोनों हाथों का प्रयोग किया, जबकि महाराणा प्रताप ने एक ही हाथ से बहलोल खां को चीर दिया।

ग्रंथ वीरविनोद में कविराजा श्यामलदास व दिवेर संग्रहालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार महाराणा प्रताप ने बहलोल खां का वध हल्दीघाटी में नहीं, बल्कि दिवेर में किया था।

लेकिन हल्दीघाटी के प्रत्यक्षदर्शी कवि गोरधन बोगसा जी द्वारा लिखित दोहे इस बात पर मुहर लगा देते हैं कि बहलोल खां का वध हल्दीघाटी में ही हुआ था।

महाराणा प्रताप के समकालीन चारण कवि जाडा मेहडू ने महाराणा प्रताप से सम्बंधित कुछ दोहे लिखे, जिनका सारांश है कि “अकबर के अधीन राजाओं का परिहास

करते हुए महाराणा प्रताप कहते हैं कि हे अकबर के मनसबदार राजाओं, हाथी, घोड़े, सोना आदि प्राप्त कर तुम क्यों मिथ्याभिमान कर रहे हो। तुम अकबर के चाकर मात्र हो, सच्चे राजपूत नहीं। प्रताप अपनी आन और अपने

मान के लिए लगातार लोहा लेता रहा है और लेता रहेगा परन्तु अपने स्वाभिमान के साथ कभी समझौता नहीं करेगा, चाहे इसके लिए कोई भी मूल्य क्यों न चुकाना पड़े”

महाराणा प्रताप

एक अज्ञात कवि ने महाराणा प्रताप के पराक्रम के बारे में कुछ दोहे लिखे हैं, जिनका सारांश है कि महाराणा प्रताप संघर्ष के दिनों में अपनी तलवार में म्यान में नहीं रख पाते,

बल्कि अनवरत युद्ध करते हुए शत्रुओं के शोणित से अपनी तलवार को लिप्त रखते हैं। इस प्रकार महाराणा प्रताप अपनी तलवार से शत्रुओं का विनाश करते हुए पृथ्वी व धर्म की रक्षा करते हैं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

2 Comments

  1. Amit Kumar
    May 10, 2021 / 11:50 am

    बहुत ही सुंदर है ये वर्णन।

  2. Arun sa
    May 12, 2021 / 4:38 am

    Shi h hukm acha kam kar rahe ho 👍👍

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