हल्दीघाटी का युद्ध सुबह लगभग 9-10 बजे से दोपहर 2-3 बजे तक 5 घन्टे तक चला था। दोनों पक्षों ने रणभूमि में सेना जमाने के बाद कुछ समय तक पहल की प्रतीक्षा की।
राजा मानसिंह पर लिखे गए ग्रंथ मानप्रकाश के अनुसार युद्ध में आक्रमण की पहल महाराणा प्रताप की सेना ने की थी। मेवाड़ व मुगल फौजों में हरावल की लड़ाई का वर्णन :-
युद्धों में सबसे आगे की पंक्ति को हरावल कहा जाता था। मुगल फौज की हरावल में 80 जांबाज योद्धाओं को रखा गया था, जिसकी कमान सैयद हाशिम बारहा ने संभाली। इसी प्रकार मेवाड़ी सेना की हरावल का नेतृत्व पठान हाकिम खां सूर ने किया था।
मेवाड़ी फौज की हरावल में हाकिम खां सूर के अतिरिक्त सलूम्बर के रावत कृष्णदास चुण्डावत, सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया, देवगढ़ के रावत सांगा चुण्डावत, बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़ आदि वीर योद्धा थे।
पठान हाकिम खां सूर ने अपनी फौजी टुकड़ी को आक्रमण का आदेश देते वक्त कहा “आज देखता हूं मुगल फौज का कौनसा सिपाही हाकिम खां के हाथ से उसकी तलवार को अलग करता है, खुदा कसम आज इस पठान की तलवार मरने पर भी हाथ से नहीं छूटेगी”
अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है “दोनों फ़ौजों की जब मुठभेड़ हुई, तो दुनिया से जन्नत जाने का दिन जल्दी आ गया। दो खूनी समन्दरों की भिड़न्त ने सबको हैरान
कर दिया। ज़मीन लाल रंग की लहरों से सन गई। दुश्मनों की हरावल ने शाही फौज की हरावल को दबोच लिया, शाही फौज के बहुत से लोगों के पैर उखड़ गए”
मेवाड़ की हरावल ने ऐसा भीषण आक्रमण किया कि मुगल फौज को सम्भलने का अवसर तक न मिला। मुगल फौज की हरावल का नेतृत्व करने वाला सैयद हाशिम,
जो कि अपनी बहादुरी के लिए मुगलों में बड़ा ख्यातिप्राप्त था, हाकिम खां का हमला नहीं झेल सका और घोड़े से गिर पड़ा। सैयद राजू ने सैयद हाशिम को पुनः घोड़े पर बिठाया।
युद्ध में भाग लेने वाला मुगल लेखक अब्दुल कादिर बदायूनी मुन्तख़ब उत तवारीख में लिखता है कि “राणा कीका ने दर्रे के पीछे से अपने 3000 सिपाहियों को 2 टुकड़ों में बांट दिया। एक टुकड़े का सेनापति हाकिम खां सूर था,
जिसने पहाड़ों की तरफ से निकलकर हमारी फ़ौज पर जोरदार हमला किया। ज़मीन ऊंची-नीची, रास्ते टेढ़े-मेढ़े और कांटों से भरे थे। हाकीम खां के हमले से शाही फौज की हरावल में गड़बड़ी मच गई और हमारी हरावल पूरी
तरह पस्त होकर भाग निकली। शाही फौज की हरावल बनास नदी पार कर भागती ही रही, उन्होंने 5-6 कोस तक पीछे मुड़कर भी नहीं देखा, पता नहीं मौत कहाँ से बरस पड़े। शाही फौज के बाईं तरफ तैनात
राजा लूणकरण कछवाहा अपने साथी राजपूतों समेत भेड़ों के झुण्ड की तरह भागकर हरावल के बीच में से निकलकर शाही फौज के दाहिनी तरफ खड़े बहादुर सैयदों के पीछे जाकर छिप गया”
(इस प्रकार प्रत्यक्षदर्शी मुगल लेखक ने स्वयं मुगल फौज की हरावल के भागने का वर्णन किया है, इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि राजपूतों व पठानों ने मुगलों की अग्रिम पंक्ति की क्या दशा की थी)
अकबरी दरबार पुस्तक में समकालीन मुगल लेखक मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद लिखता है कि “कुरान की एक आयत का मतलब है कि जो बंदा जहाद से भागता है, उसकी तौबा कभी मुकम्मल नहीं होती। बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग यही कहते हैं,
पर जब खुद के भागने का वक़्त आता है, तो पैगम्बरों को भी आगे रखकर भागते हैं। मेवाड़ के खिलाफ इस लड़ाई में जो बादशाही लोग पहले भाग निकले, उन्होंने तो 5-6 कोस तक दम ही न लिया। बीच में एक नदी पड़ती थी, उसको भी पार कर गए। लड़ाई तराजू हो रही थी।”
बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़ का बलिदान :- मुगल फौज की हरावल में केवल जगन्नाथ कछवाहा ही नहीं भागे थे। वीर जयमल राठौड़ के पुत्र ठाकुर रामदास राठौड़ जगन्नाथ कछवाहा के साथ मुकाबले में वीरगति को प्राप्त हुए और जगन्नाथ कछवाहा गम्भीर रुप से घायल हो गए।
अबुल फजल लिखता है कि “जंग के मैदान में जगन्नाथ कछवाहा ने बड़ी बहादुरी दिखाई। जयमल के बेटे रामदास का मुकाबला जगन्नाथ से हुआ, जहां जगन्नाथ के हाथ के
झटके से वह मारा गया। जगन्नाथ भी तकरीबन मरने ही वाला था कि मानसिंह ने फौजी टुकड़ी समेत आगे आकर उसे बचाया और उसे पीछे ले गया”
वीर राठौड़ रामदास के वीरगति पाने के संबंध में एक अज्ञात कवि द्वारा लिखे कुछ दोहे इस तरह हैं :- ससि थाइस तप थाइ सूरिज सीतल, तजै महोदधि वारि तरंग।
मृत भै रामदास रण मेलै, गमण पछम दिसि मंडै गम।। जले चन्द्र सीलो थाइ जगचख, रैणायर साँसतौ रहे। जयमल ढत जाई छांडै जुव, वेणी जल उपराठ वहै।।
आतम इंदु अरक ताढ़ीम अग, सायर छडै लहरी सुबाह। पह मेड़ता चले पारोठो, पमुहै वहै सुरसरी प्रवाह।। सौम सुर सामन्द प्रता सुध, अघट सुभा दाखवै अग।
राम किया मृत सामिधरम रसि, पुनि तोया मिली पूब प्रसंग।। अर्थात मृत्यु के भय से यदि राठौड़ रामदास युद्धस्थल त्याग दे तो चंद्रमा तापयुक्त हो जाय,
सूर्य शीतल हो जाय, समुद्र स्थिर हो जाय व गंगा विपरीत दिशा में प्रवाहित होने लग जाय। लेकिन वीर रामदास ने तो अपने पूर्वजों की भांति युद्धक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)