वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 27)

राजा मानसिंह कछवाहा के नेतृत्व में युद्ध में भाग लेने वाले बादशाही सिपहसलार :- नाथा कछवाहा :- ये आमेर के राजा भारमल के भाई गोपाल सिंह के पुत्र थे। ये कछवाहों की नाथावत शाखा के मूलपुरुष थे।

इन पर नाथावंशप्रकाश नाम का ग्रन्थ लिखा जा चुका है। नाथा कछवाहा 1568 ई. के चित्तौड़ अभियान के समय अकबर के साथ थे। हल्दीघाटी के बाद मांडल के सैन्य अभियान में भी नाथा कछवाहा ने अकबर का साथ दिया।

नाथा कछवाहा के बेटे मनोहरदास कछवाहा ने भी हल्दीघाटी युद्ध में भाग लिया। इस युद्ध में मनोहरदास के भाग लेने का वर्णन नाथावंशप्रकाश ग्रंथ में ही मिलता है।

राव खंगार कछवाहा :- ये आमेर के राजा भारमल के भाई जगमाल के बेटे व राजा मानसिंह के काका थे। ये कछवाहों की खंगारोत शाखा के मूलपुरुष थे। राव खंगार कछवाहा का मनसब 2000 का था। गुजरात के सैन्य अभियान में राव खंगार ने अकबर का साथ दिया था।

राजा मानसिंह कछवाहा

मेहतर खां :- मेहतर खां को चन्दावल का प्रमुख बनाया गया था। राजा मानसिंह ने मेहतर खां के नेतृत्व में पीछे एक और फौज तैयार रखी थी, ताकि जरुरत पड़ने पर काम आ सके। हल्दीघाटी युद्ध में मेहतर खां की भूमिका मुगलों के दृष्टिकोण से अत्यंत उपयोगी साबित हुई।

राजा लूणकरण :- ये कछवाहों की शेखावत शाखा के मूलपुरुष शैखा जी के प्रपौत्र थे। अकबर ने राजा लूणकरण को ‘रायरायां’ का खिताब भी दिया था।

शैख मंसूर :- ये शैख इब्राहिम चिश्ती का दामाद था। इसकी कमान में सीकरी के शैखजादे थे। इन सबके अलावा जो बादशाही सिपहसलार इस युद्ध में थे, उनके नाम कुछ इस तरह हैं :-

खंजारी तुर्क, सैयद राजू, सैयद अहमद खां, गाजी खां बदख्शी, ख्वाजा मुहम्मद रफी बदख्शी, अली मुराद उजबेक, ख्वाजा गयासुद्दीन अली, शाह गाजी खां तबरेजी, शियाबुद्दीन गुरोह, पायन्दा कज्ज़ाक, इब्राहिम चिश्ती, काजी खां, महाबली खां, मुजाहिद बेग,

कमाल खां, पंजु, मीर बख्शी अली आसफ खां, बहलोल खां, मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी, हाथियों का दारोगा हुसैन खां, हरावल का नेतृत्वकर्ता सैयद हाशिम खां, राजा मानसिंह के काका जगन्नाथ कछवाहा, राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह कछवाहा व अन्य।

महाराणा प्रताप

18 जून, 1576 ई. :- राजा मानसिंह को रणभूमि में फौज जमाए हुए एक पहर बीत चुका था। एक समय ऐसा आया कि मुगल सेना को लगा कि महाराणा प्रताप ये लड़ाई आमने-सामने नहीं लड़कर छापामार तरीके से ही लड़ना चाहते हैं।

मुगलों के विचार चल ही रहे थे कि तभी हल्दीघाटी के मुहाने पर धूल का गुब्बार उठा और एक हाथी मेवाड़ का झण्डा लहराता हुआ बाहर निकला। महाराणा प्रताप ने बड़ी तेजी से अपनी फ़ौज को व्यवस्थित तरीके से जमाना शुरू कर दिया।

अकबरनामा में अबुल फजल लिखता है “मेवाड़ी फौज मैदान में जंग के मुताबिक सही नहीं जमाई गई थी, पर राणा ने गज़ब की तेजी दिखाते हुए अपनी फौज को जंग के मुताबिक जमा दी। सर झुकाने या जान देने का बाज़ार खुल गया। यहाँ जान सस्ती और इज्जत महंगी थी”

(ये महाराणा प्रताप की सैन्य कुशलता थी, अन्यथा इतनी तेजी से फौज को जमाना सम्भव नहीं था, जबकि महाराणा प्रताप ने ऐसा कर दिखाया और मुगल पक्ष को भी हैरान कर दिया)

मेवाड़ी फौज की हरावल :- सबसे आगे हाकिम खां सूर ने हरावल का नेतृत्व किया। इनके साथ हरावल में सलूम्बर के रावत कृष्णदास चुण्डावत, देवगढ़ के रावत सांगा चुण्डावत, सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया, बदनोर के रामदास राठौड़ भी थे।

रणभूमि में महाराणा प्रताप

मुगल फौज की हरावल की जमावट :- सबसे आगे सैयद हाशिम अपने 80 सबसे मजबूत सिपाहियों के साथ था।

उसके साथ हरावल में राजा जगन्नाथ कछवाहा, मोहम्मद रफी बदख्शी, ख्वाजा गयासुद्दीन अली, आसफ खां आदि थे। मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी भी हरावल के खास सैन्य में था।

मुगल फौज का दायां पक्ष व मेवाड़ी फौज का बायां पक्ष :- मुगल फौज के एक तरफ सैयद अहमद व बारहा के भाई थे,

जिनके सामने मेवाड़ी सेना में बायीं तरफ बड़ी सादड़ी के झाला मानसिंह अपने 150 सैनिकों के साथ, देलवाड़ा के मानसिंह झाला व महाराणा के मामा जालौर के मानसिंह सोनगरा थे।

मुगल फौज का बायां पक्ष व मेवाड़ी फौज का दायां पक्ष :- मुगल फौज के दूसरी तरफ गाजी खां बदख्शी, शैखजादा, काजी खां, राजा लूणकरण थे।

इन सभी की अपनी-अपनी फौजी टुकड़ी थी, जिनमें हल्दीघाटी मुहाने पर काजी खां की फौजी टुकड़ी तैनात थी। इनके सामने मेवाड़ी सेना में दायीं तरफ राजा रामशाह तोमर अपने पुत्रों व 300 तोमर साथियों के साथ थे।

हाथी पर सवार राजा मानसिंह

मुगल फौज का मध्य भाग :- मुगल फौज के बीचों बीच राजा मानसिंह कछवाहों की भारी जमात के साथ थे। राजा मानसिंह मर्दाना नाम के हाथी पर सवार थे। राजा मानसिंह के ठीक आगे बहलोल खां नामी उजबेक तैनात था।

मेवाड़ी फौज का मध्य भाग :- मेवाड़ी सेना के बीचों बीच महाराणा प्रताप थे। महाराणा प्रताप के साथ भामाशाह कावडिया, ताराचन्द कावडिया, प्रताप सिंह तोमर आदि थे।

प्रताप सिंह तोमर शुरुआत में घोड़े पर सवार थे व इस युद्ध में हाथियों के दारोगा थे, जो कि युद्ध के आखिरी वक्त में प्रसिद्ध रामप्रसाद नामी हाथी पर सवार हुए थे।

चन्दावल :- मुगल फौज में सबसे पीछे चन्दावल में माधोसिंह कछवाहा, मेहतर खां वगैरह थे। मेवाड़ी सेना में सबसे पीछे राणा पूंजा, पुरोहित गोपीनाथ, महता रत्नचन्द, पुरोहित जगन्नाथ, महासहानी जगन्नाथ, जैसा बारहठ आदि थे।

मुगल फौज में सबसे मजबूत टुकड़ी सैयद अहमद व बारहा के भाईयों की थी। बारहा के सैयद अपने युद्ध कौशल के लिए बड़े प्रसिद्ध थे,

इसलिए इन्हें सेनापति राजा मानसिंह के दाहिनी ओर तैनात किया गया। मेवाड़ी फौज में सबसे मजबूत टुकड़ी तोमर वंश की थी, जो आखिर तक टिकी रही।

राजा रामशाह तोमर

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

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