वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 26)

हल्दीघाटी युद्ध में सैनिकों की संख्या :- अलग-अलग इतिहासकारों ने सेना की संख्या भी अलग-अलग बताई है और उनके बताए गए आंकड़ों में बड़ा अंतर भी देखने को मिलता है। मनगढ़ंत आंकड़ों के बारे में एक कहावत ठीक बैठती है कि चतुर चौगुणा, मूरख दस गुणा

कर्नल जेम्स टॉड व ख्यातों के अनुसार 80,000 मुगल फौज व 22,000 मेवाड़ी फौज थी। कर्नल जेम्स टॉड व ख्यातों का इतिहास अक्सर बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है।

1568 ई. में चित्तौड़ के विध्वंस में मेवाड़ के कई वीर वीरगति को प्राप्त हो चुके थे, तो महाराणा प्रताप मात्र 8 वर्षों में 22000 की फौज नहीं बना सकते थे।

इसका एक और तर्क है कि जब अकबर ने स्वयं अपने नेतृत्व में चित्तौड़ जैसे सुदृढ़ दुर्ग पर चढाई कि तब उसकी फौज 80,000 थी, तो वह राजा मानसिंह को 80,000 की फौज एक आमने-सामने लड़े जाने वाले युद्ध के लिए नहीं दे सकता था।

हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के सहयोगी मेहता जयमल

मुहणौत नैणसी के अनुसार 40000 मुगल फौज व 10000 मेवाड़ी फौज थी। प्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार के अनुसार 3000 मेवाड़ी फौज व 10000 मुगल फौज थी।

अब्दुल कादिर बदायूनी, अबुल फजल के अतिरिक्त वर्तमान में बहुत से इतिहासकारों के अनुसार 5000 मुगल फौज व 3000 मेवाड़ी फौज थी।

निष्कर्ष :- मुगलों की तरफ से हल्दीघाटी युद्ध में मौजूद अब्दुल कादिर बदायूनी के बताए गए आँकड़ों के अनुसार युद्ध में 5000 कछवाहा और मुगल सवार व 3000 मेवाड़ी सवार थे।

बदायूनी की ये बात सत्य के करीब है, लेकिन मुगल इतिहासकार अक्सर सिर्फ घुड़सवारों की ही गिनती लिखते थे, पैदल फौज की नहीं। बदायूनी ने ये आँकड़े बताते वक्त साफ लिखा है कि 5000 सवार हमारे साथ थे।

इसके अतिरिक्त मुगलों ने आँकड़े छुपाने की कोशिश की है, जैसे अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा है कि “जंग में मुगल फौज की हार करीब थी कि तभी मेहतर खां पीछे खड़ी मुगल फौज को आगे ले आया और नतीजे बदल दिए”

प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचन्द ओझा जी वास्तविकता के निकट पहुंच पाए। उनके अनुसार मेवाड़ी फौज में 3000 घुड़सवार, 2000 पैदल फौज व 100 नक्कारे बजाने वाले व सामान ढोने वाले लोग थे।

5000 की इस मेवाड़ी फौज में अनुमानित 400 भील, 800 अफगान, 3000 राजपूत व शेष ब्राह्मण व चारण थे। मुगल फ़ौज में कछवाहा व मुगलों को मिलाकर 10 हज़ार घुड़सवार व लगभग इतने ही पैदल सैनिक थे।

अब्दुल कादिर बदायूनी ने मेवाड़ी सेना में भीलों का कोई उल्लेख नहीं किया है, क्योंकि ये मेवाड़ी सेना में सबसे पीछे पहाड़ी क्षेत्र में थे। भील अपने उसूलों के पक्के थे, वे समतल मैदान में कभी लड़ाई नहीं लड़ते थे।

यदुनाथ सरकार ने मेवाड़ी फौज में भीलों की संख्या 400 बताई है। हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना और मेवाड़ की भील सेना के बीच कोई विशेष भिड़ंत नहीं हुई, क्योंकि भील मेवाड़ की चन्दावल से भी पीछे थे।

भीलों से भिड़ंत तब होती, यदि मुगल सेना मेवाड़ के पहाड़ी क्षेत्र के भीतर प्रवेश करती, लेकिन मुगल सेना ने ऐसा नहीं किया।

हल्दीघाटी युद्ध का दृश्य

इस तरह मेवाड़ी फौज 5,000 व मुगल फौज लगभग 20,000 थी, पर इन आँकड़ों को देखकर ये नहीं कहा जा सकता कि मुगल फौज मेवाड़ी फौज की मात्र चार गुना थी।

इस फौजी ताकत के अलावा हथियार-हाथियों की संख्या की बात करें तो मुगल फ़ौज का पलड़ा काफी भारी दिखाई देता है। मेवाड़ की तरफ से बन्दूकों का उपयोग नहीं हुआ।

मेवाड़ी फौज में 800 अफगान थे, लेकिन इन्होंने भी बन्दूकों का उपयोग नहीं किया, जबकि मुगलों ने सैकड़ों बन्दूकों का उपयोग किया था। मुगल लेखकों ने भी किसी बादशाही सिपहसालार के बंदूक की गोली लगने का वर्णन नहीं किया है।

मेवाड़ की तरफ से तोपों का उपयोग नहीं हुआ, जबकि मुगलों ने मेवाड़ के खराब रास्तों की वजह से बड़ी तोपें ना लाकर उच्च तकनीक वाली छोटी तोपों का प्रयोग किया।

मेवाड़ की तरफ से रामप्रसाद, लूणा, चक्रबाप, खांडेराव समेत कुल 100 हाथी थे, जबकि मुगल फौज में हाथी सैंकड़ों की तादाद में थे और मुगल हाथी हथियारों से लैस थे, जिनकी सूंड में भी खांडे लगा रखे थे।

रामप्रसाद हाथी

मेवाड़ी फौज में 3,000 घोड़े थे, जिनमें से 300 घोड़े जोशी पूनो नाम के व्यक्ति के थे व शेष अरबी और गुजराती घोड़े थे, जबकि मुगल फौज में घोड़ों की संख्या 10,000 थी।

मेवाड़ की तरफ से ऊँटों का उपयोग नहीं हुआ, जबकि मुगल लेखक मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद लिखता है “हल्दीघाटी की जंग में मुगल फौज में ऊँटों के रिसाले आँधी की तरह दौड़ रहे थे”

महाराणा प्रताप के युद्धकौशल के बारे में एक अज्ञात कवि ने दोहे लिखे, जिनका सारांश है कि “ब्रम्हा कहते हैं कि हे विष्णु, मैं तो मनुष्य घडते घडते थक गया हूँ। अकबर

महाराणा प्रताप से लड़ने के लिए सैनिक भेजने से नहीं रुकता है और महाराणा प्रताप उनका संहार करके उनमें से किसी को जीवित वापिस नहीं जाने देते। राणा युद्ध करते हुए नहीं थकते”

है अकबर घर हाण, डाण ग्रहे नीची दिसट। तजै न ऊंची ताण, पोरस राण प्रतापसी।। अर्थात अकबर के घर में हानि होने के कारण वह चलते समय अपनी दृष्टि नीची कर लेता है, परन्तु ऊंची दृष्टि से देखने वाले महाराणा प्रताप सिंह अपने पुरुषार्थ को नहीं छोड़ते।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

1 Comment

  1. Bhupinder
    May 9, 2021 / 2:07 pm

    Jai mewar

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